अस्सी बरखक सोमनाथजी
भरल-पुरल संसार छोरि अपन प्राण विशर्जन कए लेला | सभ मनोकामना पूर्ण तैयो सांसारिक मोह
मायासँ बान्हल, सभ
कियो हुनक मृत देहकेँ चारू कात घेरने, दुखी, व्याकुल, कनैत |
दूटा
बेटा, दुनूक पुतौह, पोता-पोती सभ संगे, खाली बड़का बेटा मुंबईमे नोकरी करैत |
हुनको तीन चारि दिन पहिले सोमनाथजीक बिगरल स्वास्थकेँ बाबत फोन भए गेल रहनि
आ ओ गाम हेतु बिदा सेहो भए गेल रहथि | आब कोनो घड़ी आबि सकैत छलथि |
सोमनाथजी बड़का बेटाक आगमन |
हुनका आबैत देरी सभ समांगक कननारोहटमे
बिरधि भए गेलनि | हुनकर
छोट भाइ हुनका
देखते देरी भरि पाँज कए पकरि कनैत, "भईया --- बाबू छोरि चलि गेला हुं-हुं ..... आबकेँ
देखत ... "
बड़का
छोटकाकेँ करेजसँ लगेने हुनक पीठकेँ सिनेहसँ सहलाबैत, "नै रे तूँ किएक कनै छें, तोरा लेल तँ एखन हम जीबैत छीयौक तोहर सभ कीछु | अनाथ तँ आइ हम भए गेलहुँ, माए चारि बर्ख पहिले चलि गेली आ आइ बाबूओ...."
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जगदानन्द
झा 'मनु'
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