Thursday, May 26, 2016

प्रतिभाशाली

"प्रतिभाशाली लोक पोस नै मानै छै" ई बात बहुत बेरसँ एकटा बूढ़ साहित्यकार युवा साहित्यकारक पक्षमे बाजि रहल छलाह. ओ फेर तर्क देलाह जे सुच्चा रचनाकर्मी स्वतंत्र होइत छै ओकरा केकरो गुलामी नै करबाक चाही. सभामे सभ हुनकर तर्कसँ हारि गेल छल.
बूढ़ साहित्यकार घर एला तँ किछु सुनसान लगलनि. बूढ़ीकेँ सोर पाड़लनि. बूढ़ीकेँ एबासँ पहिनेहे एकटा बेटा आबि कहलकनि "आब हम भिन्न होबए" चाहैत छी. बूढ़ साहित्यकार बिना किछु बजने अंगनासँ निकलि गेलथि.

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