Friday, June 29, 2012

अनाथ



अस्सी बरखक सोमनाथजी  भरल-पुरल संसार छोरि अपन प्राण विशर्जन कए लेला | सभ मनोकामना पूर्ण तैयो सांसारिक मोह मायासँ बान्हल, सभ कियो हुनक मृत देहकेँ चारू कात घेरने, दुखी, व्याकुल, कनैत |
दूटा बेटा, दुनूक पुतौह, पोता-पोती सभ संगे, खाली बड़का बेटा मुंबईमे नोकरी करैत | हुनको तीन चारि दिन पहिले   सोमनाथजीक  बिगरल स्वास्थकेँ बाबत फोन भए गेल रहनि आ ओ गाम हेतु बिदा सेहो भए गेल रहथि | आब कोनो घड़ी आबि सकैत छलथि |
सोमनाथजी बड़का बेटाक आगमन | हुनका आबैत देरी सभ समांगक कननारोहटमे बिरधि भए गेलनि | हुनकर छोट भाइ  हुनका देखते देरी  भरि  पाँज  कए  पकरि कनैत, "भईया --- बाबू छोरि चलि गेला हुं-हुं ..... आबकेँ देखत ... "
बड़का छोटकाकेँ करेजसँ लगेने हुनक पीठकेँ सिनेहसँ सहलाबैत, "नै रे तूँ  किएक कनै छें, तोरा लेल तँ एखन हम जीबैत छीयौक तोहर सभ  कीछु  | अनाथ तँ आइ  हम भए गेलहुँ, माए चारि बर्ख पहिले चलि गेली आ आइ बाबूओ...."
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जगदानन्द झा 'मनु'

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