Tuesday, June 26, 2012

विहनि कथा-सरधुआ



धम्म. . . . | हम चौँक गेलौँ तखने फेर चिन्हार सन आबाज आएल ,"सरधुआ , श्राद्ध क' देबौ"
हम झट पिछु घुमलौँ हमरा सामने लिची आ आमसँ लुबधल गाछी छोड़ि और किछु नै छलै |
हम जखन 7 वर्षक रही त' एहि गाछी मे देखने रही , उज्जर केश आ मात्र एकटा साड़ी मे सोन काकी के । हुनक नामे मात्र सोन छलै बाँकी पूरा देह खूनक कमीसँ उज्जर चानी भ' गेल छलै । देखने छलौँ बम्बइ आम त'र खोपड़ी मे ईटा जोड़ि जलखइ बनबैत । माए कहैत छली जे बड़का जमीनदारक बेटी आ कनिया छथि सोन काकी |

जखन जखन गाछी मे धम्म. . .होइ हम सब छौड़ा आम लूझ' लेल दौड़ै छलौँ आ तखने सुनै छलौँ ," सरधुआ ,श्राद्ध क' देब. .."
तहिया एकर अर्थ नै बुझैत छलौँ तेँए हुनक इ बाजब नीक लागैत छल । हुनक चारू बेटा सबटा जमीन अपन नामे करएबाक लेल सोन काकी के जीबिते जड़ाएबाक कोशिश केने छल तहिये सँ एहि गाछी मे रहि रहल छथि सोन काकी , आ शाइद हिनक बेटा समय सँ पहिले काकी के श्राद्ध कर' चाहै छल7आ तेँए इ सब के गारि पाढ़ै छथि ," सरधुआ ,श्राद्ध क' देब . . .

आइ 15 वर्षक बाद गाम जा रहल छी । आम पाकबाक समय छै ।गाछी देख पहिलुक सब बात मोन पड़ि रहल छल । भूख सँ तड़पैत सोन काकीक मुँह आ हुनक प्रतीग्या जे हमरा घाटक डोम आगि देत से मंजुर,मुदा कोनो हालत मे बेटा हमर लाश नै छूअत ।
तखने गाछी मे आबाज पसरलै , धम्म . . .
हम बैग राखि गाछी दिश दौड़लौँ । तखने शाइद भ्रम मे आबाज एलै सरधुअ . . .

अमित मिश्र
21/05/12

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