Monday, September 1, 2014

शेफाली, फुलपरासवाली आ हम ( डा. कीर्ति नाथ झा)

शेफाली, फुलपरासवाली आ हम


जहि‍आ ओ लोकनि‍ जीबै छला तहिआ तँ ने एहेन प्रसि‍द्ध रहथि‍ आ ने कि‍छु सुनबाक पढ़बाक तेना भऽ कऽ साधन रहै। आब सुनै छि‍ऐ एक गोटे ‘मुक्ति‍’ लि‍खने छला तँ केकरो पढ़ि‍ कऽ ठकमुड़ी लागि‍ गेलनि‍ आ दोसर गोटे ‘फुलपरासवाली’ लि‍खलनि‍ तँ कहाँ दन ‘मुक्‍ती’बला नोटि‍स नै लेलखि‍न। माने दूध-भात। जे कि‍छु। आब कि‍ताब आ पोथी सेहो खूब छपै छै आ लोक कि‍नि‍तो अछि‍। मुदा हमरा लोकनि‍ रामायण-महाभारत पढ़ब आकि‍ नव-नव कि‍ताब। मुदा ओइ दि‍न संयोगेसँ टी.भी खूजल छेलै आ दू गोट गोट भऽ सकैए परफेसर छल हेता- बड़ीकाल धरि‍ एक दोसरासँ बहस करैत रहथि‍ माने ‘शेफाली’ नीक केलनि‍ आकि‍ ‘फुलपरासवाली’। धुर, एहन गप-सप्‍प केतौ एतेक खूजि‍ कऽ होउ। धि‍या-पुता तँ अबधारि‍ कऽ आरो रस लेत। बीचमे एक गोटे आैर छला जे बीचमे एकबेर टि‍पलखि‍न ि‍क तँ, कि‍यो कहने छेलखि‍न, जे हि‍नका लोकनि‍क खीसा मर्यादाक बाहरक गप थि‍क।
मुदा नै जानि‍ ओ बुढ़ी लोकनि‍ आइ जीबैत रहि‍तथि‍ तँ की कहितथि‍न। मोने अछि‍, मैयाँकेँ पुछने रहि‍यनि‍, मैआँ अहाँ कहि‍आ वि‍धवा भेलि‍ऐ?” तेतबे वयस रहए जे ई नै बुझि‍ऐ जे एहेन गप पुछबाक नै छि‍ऐ।
आ जेहने हम तेहने मैयाँक जवाब-
जहि‍ए बि‍आह भेल तहि‍ए राँड़ भऽ गेलि‍ऐ।
दूरस्‍थेसँ माए ई गप-सप्‍प सुनलनि‍ तँ दबाड़ि‍ कऽ भगा देलनि‍। मुदा हमरा ले धनि‍ सन। हम तँ मैयाँसँ बस कि‍छु गप करैले कि‍छु फुछने रहि‍यनि‍। देखि‍यनि‍ उज्‍जर धोती, काटल केश, चुड़ी-सि‍नुर-ठोप-ठीका कि‍छु ने। तैपर हम आवेशसँ कखनौं आलताक ठोप करबाक लौल करि‍यनि‍। कहि‍यो चुड़ी पहि‍रबाक। गरमी मासक दुपहरि‍यामे जखनि‍ मैयाँ अपन टेकुरी लऽ कऽ जनौ कटैले बैसै छेली तँ हम सहटि‍ कऽ लग जाइ। 
कि‍छु-कि‍छु छोट काज कऽ दि‍यनि‍। ओहो कखनो मि‍सरी, कखनो एकटा छोहाड़ा तरहथ्‍थीपर रखि‍ देथि‍। नाति‍न आ मैयाँक अही संग बहि‍नाक आपक्‍तामे तँ ओ बुझा कऽ कहने रहथि‍-
है चुड़ी सि‍नुर वि‍धवा नै करै छै।
नेना तँ रहबे करी। पुछलि‍यनि‍-
अहाँ वि‍धवा छि‍ऐ।
ओ कहलनि‍-
हँ।
हम पुछलि‍यनि‍-
कहि‍आसँ?”
बस हुनकर जवाब देल छेलनि‍ आकि‍ माँ सुनि‍ते छेली गप-सप्‍प, दबाड़ि‍ कऽ वि‍दा केलनि‍।
मुदा बि‍आहो दि‍न लोक वि‍धवा भऽ सकै छै से पछाति‍ बुझलि‍ऐ।
हमरो सरकार तँ हालहि‍मे गेलाहे मुदा हम? जे कि‍छु सुनि‍ऐ, तइसँ एतबे मोन अछि‍ जे घर डेरा बड़ ऊँच रहनि‍, आ जाति‍ बड्ड पैघ। कि‍दुन सुनि‍ऐ बाबू कहथि‍न-
शुद्ध गहुमनक पोआ छला, सरकार।
ठीके छल हेता। मुदा जहि‍या हुनकर पाला पड़ल रही दाढ़क डाँस बुझबाक वयए नै छल। मुदा आब जखनि‍ बीख भरि‍ देह नि‍जाएल अछि‍ तँ बुझै छि‍ऐ। ओ साँप तँ नै छला मुदा हुनकर बीखक असरि‍सँ की कहि‍यो उबरि‍ सकलौं।
अपना तँ बोध एतबे रहनि‍ जे साबुन आ बर्फीक अन्‍तर नै बुझथि‍न। झोंक एलापर कथीमे दाँत काटि‍ देता तेकर कोन ठेकान। कखनो बाटीक दालि‍केँ बड़की पोखरि‍ कहथि‍न आ फोड़नक मरचाइकेँ पोखरि‍क माँछ।
बि‍आह भेलापर लोककेँ तँ खूब मोन लगै। हम आब बुझै छि‍ऐ, लोक, देखि‍ कऽ माँछी केना गि‍ड़ै छल तहि‍या।
मुदा सोचै छी हम के छी? ‘शेफाली’ कि‍ फुलपरासवाली? एक गोटे उड़हरि‍ कऽ मुक्त भेली। दोसर अपन मोनक सक्कसँ इज्‍जति‍ बँचौलनि‍।
मुदा इज्‍जति‍? रसि‍आरीवाली काकी जीवन भरि‍ इज्‍जति‍ बँचौने रहली मुदा मगज तँ फि‍रि‍ए गेलनि‍। केतए-केतए ने गोहरि‍आ बनि‍ कऽ गेली। केतेक ने इलाज करौलनि‍। कि‍छु भेलनि‍ नै। पछाति‍ जखनि‍ सभ कि‍छु समन भऽ गेलनि‍ तँ लगलनि‍ जे अनकर आगि‍ बाँचए नै देत आ आखि‍री आबि‍ कऽ अपनेसँ अगि‍ लगा कऽ मरि‍ गेली।
मुदा हम? हमरा सरकारक सरकारीक वंशकेँ जे ऊक देखौलकनि‍ तेकर मरला उत्तर मुखबत्ती लगा कऽ शरीर वलानमे भँसौल गेलै।
यएह बलान तँ थि‍की। अपने नोत पुरैले गेल रहथि‍। आ हम एसकरि‍ए रही। मड़रटा मनेजर-हरवाह-कमति‍आ-ओगरवाह सभ छला। बड़ जोर बाढ़ि‍ आएल रहै। आ हमरा मथदुखीक राेग धऽ नेने छल। सभ राति‍ पहि‍ने दहि‍ना कात कपारसँ शुरू हुअए। फेर कनपट्टी होइत माथक पाछूसँ गरदनि‍ धरि‍ जाए। गरदनि‍ तर केत्ताबेर गेड़ुआ दहि‍ना-बामा करी। चैन नै हुअए। शंकर बाम-कृष्‍णधारा- वि‍क्‍स सभ लगाबी। रसे-रसे हुअए माथ दुखाएब दोसरो दि‍स ने पसरि‍ जाए। तखनि‍ भरि‍ देहमे खौंत, पसेना। मोन आऊल। छट-पटी लगि‍ जाए। बाबूक लि‍खौल-
सर्व बाधा प्रशमन....। केर श्‍लोक पढ़ि‍ अपने हाथ अपने माथपर ली। मुदा भरि‍ राति‍ पहाड़ भऽ जाइत छल। आ दि‍नमे जे नि‍न्न हुअए से आँखि‍ नै खुजए। तहि‍या डाक्‍टर बुझी कि‍ वैद गोनर मि‍सरटा छला। नाड़ी देखथि‍ मथाहाथ दथि‍। एक दि‍न एकटा जड़ी सेहो लत्तामे बान्‍हि‍ कऽ देलनि‍ जे गाड़ामे बान्‍हि‍ लेथु। मुदा कोन भूत छल छूटए नै। एक दि‍न आजि‍ज भऽ ओहो मथाहाथ देब मना करि‍ देलनि‍। कहलखि‍न-
कि‍ तँ नवटोल भगवती स्‍थानमे भगतासँ भाउ कराबथु।
तहि‍या कि‍ से सनस्‍था रहै। जैतौं अपने मोने।
दर-देआदक हवेली डौढ़ी सेहो कि‍ लग-लग रहै। एक दि‍न राति‍मे फेर असाद्ध मथदुक्‍खी धेने छल। कोठलीमे कुहरैत छेलौं। कहबो केकरा कहि‍ति‍ऐ? गोनर झा सेहो जवाब दऽ देने छला। सासु छेली नै। हमरा भेल जेना कि‍यो आस्‍तेसँ कहलकैए-
बौआसीन!
अकानलि‍ऐ। तँ ठीके जेना कि‍यो हाक दैत हो।
रोइआँ भुलकि‍ गेल। हनुमान जीक नाम लेलौं। दमसि‍ कऽ कहलि‍ऐ-
के छी?”
-    हम, बौआसीन, लोटना!
-    की छि‍अनि‍?”
-    बड़ कुहरै छथि‍न! गोनर मि‍सरकेँ हाक दि‍अनि‍?”
-    नै।
-    एना कोना रहथि‍न। बड़ तरद्दुत् होइए।
-    मरए देथु हमरा।
-    बलानक पानि‍सँ ओसरा धरि‍ छइहे। मरि‍ जाएब तँ कहि‍हथि‍न फेक दइ जेता।
लोटना, लागल जेना गुम्‍म भऽ गेल छला। मुदा गोंगि‍आइत बाजल रहथि‍, से मोने अछि‍-
डोमा जे भाव खेलाइ छेलै, से हम देखने छि‍ऐ। हमरो तँ मथाहाथ देब सि‍खौने छल। लाजे कहलि‍यनि‍ नै। टोलपर सभ जनी-जाति तँ हमरेसँ माथा-हाथ दि‍अबै छै, जखनि‍ डोमा-भैया गाम-गमाइत जाइ छै।‍
मोन आउल-बाउल छल। प्राण अवग्रह छल। सोचए लगलौं जेकर सोझा पएर नै उघार भेले तेकरा सोझा माथपर सँ नूआ केना उतारब। आ केना मथा हाथ देत।
मुदा प्राण अवग्रहमे छल। की करि‍तौं? कहलि‍ऐ-
केकरो कहि‍हथि‍न नै।
‘जानथि‍ भगवान। बौआसि‍न, एक चुरुक नारि‍केरि‍क तेल देथु।
आ हम बाहरक कोठलीक लाथे हमर कोठलीक जे केबाड़ रहै, खोलि‍ देने रहि‍ऐ। मुदा बि‍छौनसँ उठबाक हूबा नै छल। लगमे नारि‍केरक तेलक बोतल राखि‍ देने रहि‍ऐ। डि‍बि‍आक इजोतमे हम आँखि‍ मुननहि‍ आँगुरसँ इशारा कऽ देने रहि‍ऐ।
हमरा एतबे मोन अछि‍, लोटना एक चुरुक तेल कपारपर ढारि‍ कऽ मलए लागल छला। फुसुर-फुसुर कि‍छु पढ़ि‍तो छला। तेतबे मोन अछि‍। ओकर पछाति‍ कखनि‍ नि‍न्न भऽ गेल आ ओ कखनि‍ कोठलीसँ बहार गेला से मोन नै अछि‍। मुदा एतबा मोन अछि‍ जे ने हमर मथदुक्‍खी छूटल छल आ ने फेर कहि‍यो गोनर झा हमरा मथाहाथ देबए हमर अँगना पएर देलनि‍। ईहो सत्ते जे ने ओइ बलानक बाढ़ि‍मे हमर देहे भँसि‍आएल। आ ने कहि‍यो हमरा लोटनाक मथाहाथ देबाक गुणपर संदेहे भेल। हम की छेलौं? की छी? मोने जनैए।
लोटना नि‍:संतान नै छला तैयो मुखबत्ती लगा कऽ बलानमे भँसौल गेला। सरकार नि‍:संतान छला मुदा संतति‍क हाथे वृषोत्‍सर्ग श्राद्ध भेलनि‍। मुदा हम? हम ‘शेफाली’ छी, की फुलपरासवाली?   

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Dr K N Jha 
MBBS (Honors),MS
Professor of Ophthalmology
Mahatma Gandhi Medical College & Research Institute
Pillaiyarkuppam, Pondicherry- 607402 ( India)

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