Tuesday, April 8, 2014

कथोप-कथन

जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक चारि‍ गोट लघु कथाक कथोप-कथन

भोँटक गहमी
मास्‍सैव, ओना पछि‍ला भोँट नीक जकाँ मनो ने अछि‍, मुदा ऐबेर तँ बहुत गहमा-गहमी देखै छि‍ऐ, से की?”
मास्‍सैव, अपन देश जनतंत्र छि‍ऐ, तखनि‍ कि‍ए प्रधानमंत्री के बनत से पहि‍ने लोक गर्द करै लगैए?”
बौआ, अखनि‍ सवाल अबैक समए अछि‍, तँए तोहर सवाल कागतपर लि‍खि‍ कऽ रखि‍ लेलि‍अ। पछाति‍ बुझा देबह।
मास्‍सैव, लाउडस्‍पीकरपर प्रति‍बंध लगि‍ गेल अछि‍, मुदा गाड़ीक-गाड़ी बाजा बाजि‍ रहल अछि‍ से एना कि‍ए अछि‍?”
कि‍ए अछि‍ कि‍ए नै रहत, ई वि‍चारणीय प्रश्न छी। हमर संसद तँ यएह भेल, तोहीं सभ ने काल्हि‍ पटना-दि‍ल्‍ली संसदोमे बैसबहक, कानूनो बनेबहक। आ कानून बना लागुओ करबहक।
आइ भरि‍ प्रश्न रखैक छह, काल्हि‍ सबहक बीच वाद-वि‍वाद करेबह, जँ समए बँचत तँ काल्हि‍ये नै तँ परसू, छुटल-बढ़ल सभ सवालक रस्‍ता बुझा देबह। अखनि‍ एतबे बूझि‍ लैह जे साम्राज्‍यवादी जालमे फँसल जा रहल छी।
भँसैत नाह
यात्री भाय, समधान भऽ जाउ, भऽ सकैए बीचमे कहीं भकमोड़ ने लऽ लि‍अए। अपन-अपन भार अपना-अपना ऊपर रहल। हमर केकरो ने।
जखनि‍ नाहमे सवार भेलौं तखनि‍ ओइ पार गेने बि‍ना नै छोड़ब।
कि‍यो करए आपले माएले ने बापले।
पान पराग
जगरनाथ, पान-पराग सठि‍ गेल अछि‍, दोकानसँ नेने आबह।
अखनि‍ दोकान खुजल हएत कि‍ नै?”
चाहवाली तँ अहूसँ पहि‍ने उठि‍ कऽ दोकान खोलि‍ दइ छै।
दोकानमे पराग कीनि‍, सैति‍ कऽ जीबीमे रखि‍ लीहऽ आ घुमती काल मि‍स्‍त्री सभकेँ देखने अबि‍हऽ जे उठल कि‍ नै।
सभटा झूठ-फूस बजनाहार सभ छी।
भाय, काज तँ सभ करबे करैए कि‍यो मूडसँ करैए कि‍यो भाँज पुड़बैए।
हौ, केकरो सीमा-नांगरि‍ नै छै। ने डाक्‍टरक कहने हएत आ ने नै हएत, होइ छै अपना कि‍रतबे। जँ ओकरा केने हाइतै तँ अपने कि‍ए सि‍गरेट पीब कऽ छाति‍ए जरा लइए?”
बौआ, तूँ नोकर छहक, जा कऽ डाक्‍टर साहैबकेँ कहि‍हनु जे छहटा पान-पराग खर्च अछि‍, से अपन रोजमे सँ लगैए।
मि‍स्‍त्री सभ उठल कि‍ नै?”
बाबा, मि‍स्‍त्री सभ उपराग दइए?”
अहाँ सबहक चाह सेरा कऽ पानि‍ भऽ गेल आ अहाँ सभ ओछाइनो ने छोड़लौं हेन?”
ऐ कोढ़ि‍याकेँ देखै छि‍ऐ, एहेन खेबैया अछि‍ तँ राति‍एमे ओरि‍या कऽ कि‍ए ने रखि‍ लइए?”
कथी‍ रखि‍ लइत?”
अहीले ओछाइन नै छोड़ैए।
डाक्‍टर साहैब, भरि‍ दि‍नमे छहटा पुरि‍या खाइ छी।
केते दि‍नसँ खाइ छह?”
से कि‍ कोनो दि‍न-महि‍नाक लि‍खा-पढ़ी करै छी, भरि‍ दि‍नक कमाइसँ भरि‍ दि‍न जीब लेलौं, तँ ऐसँ बेसीक आशा अनेरे कि‍ए करब। पहि‍ने शि‍खर खाइ छेलौं, रेडि‍यो-अखबार थोड़े पढ़ै छी जे आन ठीनक बात बुझबै, मुदा जइ दि‍न गामेमे एक गोरे शि‍‍खर खाइत-खाइत मरि‍ गेल तइ दि‍नसँ हमहूँ छोड़ि‍ देलि‍ऐ।
देखि‍यौ, जहि‍ना तमाकुलक रंग-रंगक वस्‍तु बना ओकर शक्‍ति‍केँ कम-बेसी कऽ लोककेँ पोलहा-पोलहा खेबाक चहटि‍ लगबैए तहि‍ना तँ चाहो अछि‍ए, तहूमे जँ कौफी फेँटि‍ देलि‍ऐ तँ आरो बेसी रंग चढ़ा दइ छै। तेतबे कि‍ए, एकटा संगी छथि‍ ओ चाहेमे अफीम फेँटि‍ दइ छथि‍। खैर छोड़ू ऐ बातकेँ?”
डाक्‍टर साहैब, अखने कनी पहि‍ने तमाकुलक खि‍धांस रेडि‍योमे सुनलौं...?”
अहाँ तँ रेडि‍योक समाचार कहै छी, सत् बजैए कि‍ फूसि‍ तइ पाछू अनेरे कि‍ए बौआएब। डाक्‍टर बाबा पढ़बै काल तीन दि‍न कहलथि‍ हेन।
बाबा, अहाँक पएर छूबि‍ कहै छी जे आइ दि‍नसँ पान-पराग नै खाएब।
बौआ जगरनाथ, जखने जागी तखने परात। अखनि‍ धरि‍ जे तोहर नि‍श्छल निर्मल जि‍नगी रहलह, ओहने हमरो भेटए, तँए तोड़े सप्‍पत खा, आइसँ पान-पराग छोड़ि‍ देब।
बाबा, अहाँ जे एते कमेलि‍ऐ से अहीले तीनमहला छोड़ि‍ एकमहलमे बुढ़ाड़ी बि‍‍ताएब?”
तीनि‍येँटा कोठरीक मकानमे रहब नीक लागत?”
से ते मनमे हेबे करत, मुदा ओही मनकेँ रबाड़ि‍ पकड़ि‍ अपन जि‍नगीक संग रगड़बै। तहूमे दुइए परानी भेलौं आ तेसर जगरनाथ भेल। अनेरे कम्‍पाउण्‍डर-नर्स इत्‍यादि‍ रखैक कोन जरूरत अछि‍। जे रोगी औत ओकरा देखि‍-सुनि‍ लेबै। तइले बेसी घरक खगते कोन अछि‍। चारूकात छहर देबाल जोड़ि‍ घेरि‍ देबै, अपना रहैक, खाइ-पीबैक आ नहाइ-धोइक घर सहि‍टमे बनल रहत तइसँ कि‍ए आसकति‍ हएत। आसकति‍ तँ ओइठाम होइ छै जैठाम नि‍च्‍चाँ-ऊपर सीढ़ी टपए पड़ै छै।
जँ कहि‍यो बेटा-पुतोहु औता, तखनि‍ ओ सभ केतए रहता?”
ऊपरमे तँ खालीए रहत कि‍ने, अबैए काल वि‍चारि‍ लेता जे केते समए रहैक अछि‍ तइ हि‍साबसँ अपन ओरि‍यान केने औता।
मन-तन खराप हएत, तखनि‍ कि‍ करबै?”
अपनो ने डाक्‍टरो छी। आन रोगीक बात नहि‍योँ बुझबै कि‍एक तँ बहुत बात बहुत रोगी बाजि‍तो ने अछि‍, मुदा अपन देहक पीड़ाक अनुभव तँ अपने हएत। तइ हि‍साबसँ हि‍फाजत केने तँ काज चलि‍ सकैए। तखनि‍ तँ ई देहे काँच-माटि‍क बनल अछि‍, एकर केते बि‍सवास।
बाबा, अपने काजकेँ पछुअबै छि‍ऐ जेतेकाल गप-सप्‍प करबै तेते देरी हएत।
सि‍रमा
बाबा, पुरनाकेँ बदलि‍ दि‍यौ, सभ कि‍छु नवका अनलौं अछि‍।
बाउ मुरारि‍, अपना जनैत तँ नीके जानि‍ अनने छह, तँए बदलबे करब। मुदा...?”
बौआ, जे लूँगी फटि‍ जाइए ओकर सि‍रमो खोल बना लइ छी आ रूमालो बना लइ छी, तँए पाँच तह अछि‍। सालमे एकबेर जुड़शीतल दि‍न खीचि‍ कऽ खोलो सुखा लइ छी आ पेटमे जे देने छी तेकरो रौद लगा लइ छी।
बौआ, जइ दि‍न ई चद्दरि‍ कीनलौं, ओही दि‍न एकटा केसमे सजा भऽ गेल, दुनूक (अपनो आ चद्दरि‍ओक) बीच पहि‍ल भेँट जहलेमे भेल। अखनो मन अछि‍ जे नि‍रदोस चद्दरि‍ संगे जहल कटलक, केना बि‍सरि‍ जेबै?”
बाबा, प्रेम कहलि‍ऐ?”
हँ-हँ, जे सालमे गाहीक गाही कपड़ा कीनत ओ केकरासँ प्रेम करत, प्रेम तँ ओ भेल जे जि‍नगी भरि‍ प्रेमसँ संगे रहल। जीबैतमे जे रहल से तँ रहबे कएल, जे मुइला पछाति‍ओ सि‍रमेमे रखने छी।
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍क इति‍हास-बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ बँकि‍योहोक कहि‍ए दि‍यौ?”
बौआ, जहि‍एसँ धोती पहि‍रैमे नीक लागए लगल तहि‍एसँ फाटब शुरू भेल। मुदा बात दोसर दि‍स बहकि‍ जाएत।
ईहो कीनने छि‍ऐ?”
नै, ई धोती जहलेमे देने रहए।
बौआ, जि‍ला भरि‍क लोक कोसी नहरि‍ आ पनि‍बि‍जली डैमक संग मैथि‍ली भाषाक मांग करैत जहल गेेलौं। पनरह दि‍न रखलक। सोलहम दि‍न एक-एकटा धोती दऽ वि‍दा केलक, वएह धोती छी।
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍-धोतीक बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ लूँगीओ-गमछाक कहि‍ दि‍यौ।
बौआ, ईहो जहलेक छी। अपन कीनल लूँगीक सि‍रमाक खोल छी आ जहलक लूँगीकेँ पेटभर देने छि‍ऐ।
बाबा, नवका सि‍रमा नै लेबै?”
हँ हौ, कि‍ए ने लेब मुदा चारूक एक-एकटा कोन काटि‍ नवकाक पेटमे भरि‍ दहक, जाबे जीबैत रहब ताबे माथ टेकने रहब।



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