“एखन ओ कतए अछि, कोना अछि, की करैत अछि, हमरा किछु पता नै, बस एतबेए बुझल अछि जे आइ ओकर जन्म दिन छैक |”
पचपन बर्खक, उज्जर
सारीमे लपटल बूढ़ बिधबा माएक दिमागक ई गप्प | एककेँ बाद एक खोल हुनक इआदक केथरीसँ निकैल-निकैल कए इन्द्रधनुषी
आकाशमे हिलकोर मारि रहल छल | बैसल, हुनक सामने माटिक एकचूल्हीयापर चढ़ल भातक
हाँड़ीसँ बरकैकेँ खड़-खड़-खड़केँ अबाज आबि रहल छल | भात जड़ि कए कोयला भऽ गेल रहति जँ
चेराक आँच अपने जड़ैत-जड़ैत चूल्हासँ निकैल कए बाहर नहि जड़ए लगितै |
“पन्द्रह बर्ख पहिने
कहि गेल दिल्ली जाइ छी, खूब पाइ कमाएब | नीक घर बनाएब | तोरा नीक नीक सारी कीन कऽ आनि
देबौ | बाबूक लेल सुन्नर साईकिल कीनब | मुदा ! सभ बिसैर गेल | शुरू-शुरूमे दू-तिन मासपर
चिठ्ठीयो आबेए, छह महिना बरखपर किछु पाइयो आबेए मुदा बादमे सभ बन्द | कोनो खोज
खबरे नै | ओकर गेलाक छह बरखक बाद बलचनमा मुँहे सुनलहुँ जे ओ दिल्ली बाली मेमसँ
बियाह कए लेलक | आर कोनो समाद नाहि | बापोकेँ मुइला आइ पाँच बरख भऽ गेलन्हि,
ओइहोमे नहि आएल | ओकरा तँ बापक दिया बुझलो हेतै की नै---- | आइ ओकर जन्म दिन छैक,
लऽगमे रहैत तँ बड्ड रास आशीर्वाद दैतियैक मुदा दूरे बड्ड अछि | जतए अछि खुश
रहेए.... जुग-जुग जीबए... हमर लाल |”
***
जगदानन्द झा ‘मनु’
No comments:
Post a Comment