Thursday, July 12, 2012

मसोमात


चारि बरखक बाद, गामक माटि-पानि जेँ देहमे बहि रहल अछि हिलकोर मारलक  तँ सभ काज-बाज छोरि नोकरीसँ सात दिनक छुट्टी लए  कए गाम बिदा भेलहुँ | जेना-जेना गामक दुरी  कम भेल जए तेना-तेना हृदयक बेग आओर गामक माटिक गंध दुनू तेज भेल जए | ट्रेन आ बसक यात्रा क्रमसँ  खत्म भेला बाद गामक चौकसँ पएरे गाम हेतु बिदा भेलहुँ जेकर दुरी करीब एक किलोमीटर रहै | ओनाहितो असगर, समानक नामे  कन्हापर एकटा बैग आ दोसर गाम देखक लौलसा, रिक्सा छोरि पएरे चलैक लेल प्रेरित कएलक |
अपन  टोलमे प्रबेश करिते सभसँ पहिले छोटकी काकी पर नजैर परल | ओना गामक सम्बन्धमे ओ हमर बाबी लगैत छलथि मुदा गाममे सभ कियो हुनका छोटकी काकी कहि सम्बोधित करैत छलनि तइँ हमहूँ  हुनका छोटकी   काकी कहैत छलियैन | उज्जर पढ़िया सारी पहीरने आँचरसँ माथ आ एकटा खूटसँ नाक तक मुँह झपने | रस्तासँ आँगन जाइत  घरक कोन्टापर ओहो हमरा देखलथि, जा हुनका गोर लागि आशीर्वाद लेलहुँ |
"केँ... बच्चू" छोटकी काकीकेँ मुँहसँ खडखराइत अबाज निकलल
"हाँ काकी "
"कहीया एलअ"
"एखन आबिए रहल छी काकी "
"एसगरे एलअ हेँ "
"हाँ "
"आ दिल्लीमे कनियाँ, धिया-पुता सब ठीक"
"अहाँक आशीर्वादसँ सभ कुशल-मंगल, अहाँक की समाचार नीके छी ? "
ई प्रश्न सुनिते हुनका आँखिसँ नोर झहरअ लगलनि नोर रोकैक असफल प्रयास करैत, " कि बौआ, एहि मसोमातकेँ की नीक आ की बेजए, बेजए तँ ओहि दिन भए गेलहूँ जहिया अहाँक काका नबाड़ियेमे छोरि स्वर्ग चलि गेला, आब तँ एहि बुढ़ारीमे कियोक धूओ नहि देखए चाहैए, देखलासँ सभकेँ अमंगल होएत छैक | नहि जानि बिधाता एहि अभागनिकेँ आओर कतेक ओरदा देने छथि | आइ  महीनोंकेँ बाद ककरोसँ दूमुँह गप्प केलहुँ आ कियो हमरो द पुछलक ....."
ई  कहैत काकी अपन नोरकेँ नुकबैत कोन्टासँ अँगना दीस चलि गेली आ हमहूँ  गामक जिनगीक, बिधबा, मसोमात, बुढ़ारी सोचैत आगु  बढ़ि गेलहुँ |  

*****
जगदानन्द झा 'मनु'
   

No comments:

Post a Comment