Tuesday, December 22, 2015

व्यंग्य कथा

व्यंग्य कथा
एकटा मैथिली व्यंग्य श्रृंखला लिखि रहल छी। नाम छै "लाल कक्काक उकाठी"। आइ ओकर पहिल अध्याय प्रस्तुत अछि।
आइ लाल कक्का घूमैत घामैत पछबाय टोल दिस चलि गेलाह। ओतय बुधियार बाबा अपन मकान बनबाबैमे व्यस्त छलाह। पिलर पर मकान बनैत छलै। मुदा पिलर आ देबाल दुनू टेढ़ देखि क' लाल कक्का ठमकि गेलाह आ बुधियार बाबाकेँ कहलखिन-"यौ अहाँक मकान खसि पड़त। पिलर आ देबाल दुनू टेढ़ भेल अछि। एना किए बना रहल छी।" बुधियार बाबा जबाब देलखिन-"किछु नै हेतै। एक नम्बर ईंटा आ असली सीमटीक मदतिसँ मकान बना रहल छी।" लाल कक्का-"मुदा टेढ़ बाकुच देबाल आ पिलर रहत तँ कखनो खसि पड़त ई मकान। आ लोक की कहत जे भानुमतिक कुनबा जोड़ि लेने छी अहाँ।" बुधियार बाबा खिसिया क' बाजलाह-"अहाँ परम्परावादी लोक बूझना जाइत छी। हम ऐ अनुशासनकेँ नै मानैत छिए। जखने नीक ईंटा आ सीमटी भेंटल की ओकरा कहुना क' जोड़बा दैत छिए। भले ओ सूगरक खोभारी बनि जाय वा मालक बथान। रहतै तँ ओ मकाने ने।" लाल कक्का जबाब देलखिन-"हम परम्परावादी नै छी। बाबा झोपड़ीमे रहैत छलाह। बाबूजी खपड़ाक मकान बनेने छलाह। हम ढलाई बला मकान बनेलहुँ। मुदा देबाल सभक सोझे छलै। कनी अनुशासनक जरूरी तँ सब चीजमे छै ने यौ।" आब बुधियार बाबा बमकि उठलाह आ बाजलथि-"मास्टरसँ रिटायर हम भेलहुँ मुदा अहाँ हमरा मास्टरी झाड़ि रहल छी। जखन कि हम अपने मास्टर रहितो कहियो मास्टरी नै झाड़लौं। अहाँ हमर मकानक समीक्षा करबामे अक्षम छी। तैं एतयसँ जाउ।" आब लाल कक्काकेँ बुझबामे आबि गेल छलनि जे बुधियार बाबाक छात्र सब भोथ किए छलाह। कियाक तँ ओ कहियो मास्टरी झाड़बे नै कएने हेथिन। बिना बहस कएने लाल कक्का ओतयसँ घसकि गेलाह। मुदा ई चिन्तन करैत गेलाह जे बुधियार बाबा जँ अनुशासन नै मानैत छथिन तँ कहीं ओ काल्हि नंगटे गाममे घूम' नै लागथि। फेर सोचलनि जे मालो जाल तँ नंगटे घूमैत छै। कियो ओकर नोटिस कहाँ लैत छै। भ' सकैत छै जे आब मनुक्खो नंगटे घूम' लागत आ लोक नोटिस नै लेतै। ओना लाल कक्का टेढ़ बाकुच मकानक चिन्ता सेहो करैत गेलाह जे कहीं मकान खसि पड़लै तँ एक दू टा अकाल मृत्यु भइये जेतै। संगे इहो कल्पना करय लागलाह जे कहीं देखा देखी गाममे सभ टेढ़े बाकुच मकान नै बनाब' लागै। ई सब सोचैत गाम पर पहुँचलाह तँ बेटा कहलकनि-"बाबूजी एक नम्बर ईंटा आ सीमटी आनि लेने छी। कहियासँ शुरू करू मकानक जीर्णोद्धार।" लाल कक्का सिहरि गेलाह कियाक तँ हुनकर पुत्र बुधियारे बाबाक छात्र छलनि।

Tuesday, December 8, 2015

बिहनि कथा

बिहनि कथा
फोन
सावित्री भोरेसँ चिन्तित छलीह। दू दिनसँ बेटासँ कोनो गप नै भेल छलैन्हि। बेटा रमेश बंगलौरमे इंजीनियर छलाह।हुनका फुरसति कम होईत छलैन्हि। तैं ओ गाम नै आबैत छलाह। माता पिता सालमे एक दू बेर बंगलौर प्रवास क' कए हुनकासँ भेंट क' आबैत छलखिन्ह। मुदा फोन पर प्रतिदिन एक बेर गप भ' जाईत छलैन्हि। जहिया गप नै होइन्हि तहिया माताजी चिन्तित भ' जाईत छलखिन्ह। पछिला दू दिनसँ नै रमेशक फोन आएल छल आ नै ओ माएक फोन उठबै छलाह। तैं माए एते चिन्तित छलीह। ओ रमेशक बाबूकेँ कहलखिन्ह जे एक बेर फेरसँ फोन लगबियौ ने। ओ फेरसँ फोन लगा क' सावित्रीक हाथमे फोन द' देलखिन्ह। ऐ बेर रमेश फोन उठा लेलक। मुदा फोन उठबिते माएसँ कह' लागल जे दू दिनसँ आफिसक काजसँ अलगे परेशान छी आ अहाँक फोनसँ अलगे। माए कहलखिन्ह जे बउआ कमसँ कम एक बेर रोज अपन समाचार बता देल करू तँ हम निश्चिंत रहब। अहाँ परदेसमे रहै छी ने। पुत्र कहलखिन्ह जे नो न्यूज इज गुड न्यूज होइत छै से नै बूझै छिही। ई छुछका मोह देखेनाइ बन्न कर आ फोन राख। एखन ऊपरसँ टीम आएल छै आ बड्ड काज अछि। ई कहैत ओ फोन काटि देलक। माएक मुँह अप्रतिभ भ' गेलै। मुदा ओ अपन भावनाकेँ सम्हारैत फोन अपन पतिकेँ घूमबैत बाजलीह जे बउआ नीके छथि। हम हुनकर आवाज सुनि लेलियैन्हि। ई फोन बड्ड नीक होईत छै। जँ ई नै रहितै तँ बउआक कुशल क्षेम कोना बुझितौं। ई कहैत ओ भनसाघर दिस नोरियाएल आँखिये बढ़ि गेलीह।
ओम प्रकाश, बिहनि कथा

Friday, July 31, 2015

Umesh Mandal_सगर राति दीप जरय :: १९ सितम्‍बर २०१५._Nirmali


सगर राति दीप जरय :: १९ सितम्‍बर २०१५

मिथिलाक प्रसिद्ध साहित्‍य गोष्‍ठी- सगर राति दीप जरयक ८७म आयोजन निर्मलीमे होएत ई निर्णए तँ पछिले गोष्‍ठीमे भऽ गेल छल, जे समाचार अपने लोकनिकेँ प्राप्‍तो अछि। मुदा कहिया होएत आ निर्मलीमे केतए होएत ई साफ नइ भेल रहए, जे अझुका बैसकमे भऽ गेल।
आइ सॉंझमे निर्मलीक स्‍थानीय साहित्‍य प्रेमी सबहक बैसक भेल। जइमे श्री विनोद कुमार, श्री सत्‍य नारायण प्रसाद, श्री सुरेश महतो, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री राम विलास साहु, श्री राम प्रवेश मण्‍डल, श्री राजाराम यादव, श्री मनोज शर्मा, श्री रामलखन भंडारी एवं श्री सुरेन्‍द्र प्रसाद यादव आदि महतपूर्ण व्‍यक्‍ति सभ रहथि।
सगर रातिक कथा गोष्‍ठीक इतिहासक संग सुन्नी-हकारक महतपर विचार-विमर्श चलल। ऐ विशेषताकेँ अक्षुण्ण राखल जाए ई बात श्री राजदेव मण्‍डलजी कहलनि। सभ कियो निर्णए लेलनि जे अगिला गोष्‍ठी ऐतिहासिक हुअए।  संगे दिन-तारीख आ स्‍थानक चयन सेहो भऽ गेल जे निम्‍न अछि।
अपने लोकनि (कथाकार, आलोचक) सादर अमंत्रित छी।
दिन- शनि
तारीख- १९ सितम्‍बर २०१५
स्थान : श्यामा रेसिडेन्सी कॉम विवाह हॉलएस.बी.आइ. केम्पस- निर्मली (सुपौल)

Sunday, July 5, 2015

देह

लगभग एक वर्ष बाद लघुकथा लिखबाक प्रयास केलहु ।ई लिखबाक हिस्सक छुटि गेल छल ।केहन बनलै से जरूर बताएब ।
लघुकथा - 186
देह

लालबाबूकेँ देख कऽ आबि रहल छी ।बुझू तऽ अंतिमे दर्शन छल ।आब बचबाक कोनो चान्स नै छै ।बड पैघ हैमरेज भेल छै ।एकटा आँखि बाहर भऽ गेल छै ।देखिते मोन हौरऽ लागल तेँ हाॅस्पिटलसँ चलि एलियै ।आबिते कनियाँ गहूँम पिसेबाक लेल कहि देलनि ।हमर मोन कोनादन कऽ रहल छल ।देहमे शक्ति नै बुझना जाइत छल ।हम दबले अबाजमे कहलियनि, " हे यै, आइ हमरासँ गहूँमक बोरा नै उठाएल हएत ।आइ छोड़ू ।साँझमे भाते बना लेब ।"
ई सुनिते कनियाँ तामसे चिकरऽ लागली ," बुझल अछि ने जे हमरा सोहारिये नीक लगैत छै ।एते टा चकत्ता सन देह पोसने छी तखनो बोरा नै उठत !"
बुझू तऽ ई सुनिते हमर रोआँ भुलकि गेल ।लालबाबूक कल्हुका बलिष्ठ देह आ अझुका मरनासन्न देह देख अपन कनियाँक अज्ञानतापर आश्चर्य भऽ रहल छल ।आखिर देह कते दिन एक समान रूपसँ संग दै छै ?

अमित मिश्र