Monday, September 1, 2014

छुतहरि (दुर्गानन्‍द मण्‍डल)

83म सगर राति‍ दीप जरय'मे सखुआ-भपटि‍याहीमे पठि‍त लघु कथा- 

छुतहरि

सि‍मराक शि‍वनन्‍दन बाबूक दोसर बालक राजाबाबू, नाओंक अनुरूप राजकुमारे सन लगै छल। बेस पाँच हाथ नमहर, गोर-नार, भरल-पूरल देह, पहि‍रन-ओढ़न सेहो राजकुमारे सन। वि‍धाताक कृपासँ हुनक पत्नी देखए-सुनएमे सुन्‍दरि‍। मध्‍यम वर्गीए परि‍वारमे जनम। नैहर सेहो भरल- पूरल। राजाबाबूक बि‍आह नीक घरमे भेल। कोनो तरहक कमी नै। जेते जे बरि‍याती गेल रहथि‍, सभ कि‍यो खान-पानसँ प्रसन्न रहथि‍। बड़-बढ़ि‍याँ घर-परि‍वार छल। राजाबाबू बि‍आहक पछाति‍ओ अध्‍ययन जाड़ीए रखलनि‍। नीक-नहाँति‍ पढ़ैले पटनामे नाओं लि‍खा डेरा रखलनि‍। छुट्टी भेलापर गामो चलि‍ अबै छला। गाड़ी-सवारी भेने गाम आबए-जाएब कठीन नै छल। अहीक्रममे राजाबाबूकेँ पहि‍ल सन्‍तानक रूपमे एकटा बालक- अनील आ एकटा कन्‍या सुधाक जनम भेल। माए-बापक अनुरूप दुनू बच्‍चो तेतबए सुन्‍दर छल। क्रमश: दुनू बच्‍चाक टेल्हुक भेलापर ज्ञानोदय झंझारपुरमे नाओं लि‍खा देलखि‍न। बच्‍चा सभ ओतै रहि‍ पढ़ए-ि‍लखए लगल।
एमहर पटनामे रहैत राजाबाबूक संगति‍ खराप हुलगलनि‍। जइसँ ओ दोस्‍ती-यारीमे पीबए लगला। एक दि‍नक गप छी, गाम एलाक बाद अधरति‍यामे जोरसँ हल्‍ला भेल जे राजाबाबू पेटक दर्दे चि‍चि‍या रहल छथि‍। राति‍क मौसम देखि‍ गामक डाक्‍टर बजौल गेला। सुइया-दवाइ दऽ आगू बढ़ैक सलाह देलखि‍न। बि‍मारी उपकले रहनि‍। पत्नी वि‍शेष जतनसँ पथ-परहेजसँ राखि‍ दुइए मासमे दुखकेँ कन्‍ट्रोल कऽ लेलनि‍। एमहर राजाबाबूक मन ठीक होइते फेर जि‍द्द कऽ पटना चलि‍ गेला। परि‍कल जीह केतौ मानल जाए, पुन: वएह रामा-कठोला। गाम आबथि‍ आ भैया जे पाइ दन्‍हि‍ आकि‍ नै दन्‍हि‍ तँ पत्नीएक गहना-जेबर बन्हकी लगा-लगा पीबए लगला। कहबीओ छै चालि‍-प्रकृत-बेमए ई तीनू संगे जाए। छओ मास ने तँ बि‍तलै आकि‍ वएह पुरने दुख राजाबाबूकेँ उखड़लनि‍। मुदा ऐबेरक दर्द बड़ तीव्र छल। सुतली राति‍मे राजाबाबू अपना बि‍छौनपर छटपटए लगला। पेट पकड़ने जोड़-जोड़सँ चि‍चि‍यए लगला। नि‍सि‍भाग राति‍ रहने हो-हल्‍ला सुनि‍ लोक सभ जागल। लोकक लेल अँगनामे करमान लगि‍ गेल। दर्दक मारे राजाबाबू पलंगपर छटपटा रहल छला। एकबेर बड़ी जोड़सँ दर्दक बेग एलै आ राजाबाबू खूनक उन्‍टी करैत सदा-सदाक लेल शान्‍त भऽ गेला।
अँगनामे कन्ना-रोहट उठि‍ गेल। टोल भरि‍क लोक सभ जागि‍ गेल। मुदा राजाबाबू तँ सभसँ रि‍स्‍ता–नाता तोड़ि‍ परमधाम चलि‍ गेल छला। परात भेने बि‍ना बजौने सभ आदमी मि‍लि‍ बाँस काटि‍, तौला-कराही, सरर-धूमन आ गोइठापर आगि‍ दऽ राजाबाबूक पहि‍ल सन्‍तान अनील हाथमे दऽ अपने आमक गाछीमे राजाबाबूकेँ डाहि‍-जारि‍ सभ कि‍यो घर घुमला।   
कौल्हुका राजाबाबू आइ अपन महलकेँ सुन्न कऽ पत्नीकेँ कोइली जकाँ कुहकैले छोड़ि‍ चलि‍ गेला। पत्नीक वएस मात्र पचीसेक आस-पास, सन्‍तानो तँ मात्र दुइएटा। मुदा अपन कर्मक अनुसार आइ कोइली बनि‍ कुहैक रहल छथि‍। काल्हि‍ तक जे सोल्हो सिंगार आ बत्तीसो आवरण केने साक्षात् राधाक प्रति‍मूर्ति मेनका आ उर्वशी सुन्नरि‍ छेली ओ आइ उज्जर दप-दप साड़ी पहि‍रि कुहैक रहल छलि‍। केतए गेलनि‍ भरि‍ हाथ चुड़ी, केतए गेलनि‍ भरि‍ माङ सेनुर...। सभटा धूआ-पोछा गेल। केकरो साहसे ने होइ जे सामने जा बोल-भरोस हुनका दैत। समुच्‍चा टोल सुनसान-डेरौन लगैत। तही बीच छह मास धरि‍ ओकर कुहकब केकरा हृदैकेँ ने बेधि‍ दैत। केना ने बेधि‍ दैत!
आखि‍र वेचारीक वएसे की भेलै। मुदा छओ मास तँ भेले ने रहै आकि‍ ओ घरसँ बाहर, आँगनसँ डेढ़ीआ आ डेढ़ीआसँ टोला-पड़ोसामे डेग बढ़बए लगली। जे कहि‍यो हुनक पएरो ने देखने रहनि‍ ओ आब मुहोँ देखि‍ रहल अछि‍। हुनक हेल-मेल सभसँ पढ़ल जा रहल छन्‍हि‍। आब तँ ओ अपना घरमे कम आनका आँगनमे बेसी समए बि‍तबए लगली। सासु-ि‍दयादि‍नीक गपकेँ छोड़ि‍ अनकर गपपर बेसी धि‍यान दि‍अ लगली। नीक आ अधला तँ सभ समाजमे ने लोक रहै छै। से आब कि‍छु लोक हुनका गुरु मन्‍तर दि‍अ लगलखि‍न। आ ओहो नीक जकाँ धि‍यान-बात दि‍अ लगली। जहि‍ना कहबी छै जे खेत बि‍गड़ि‍‍ गेल खढ़ बथुआ सन ति‍रि‍या बि‍गड़ए जँ जाइ हाट-बजार...। जे काल्हि‍ तक ओकर उकासीओ ने कि‍यो सुनने छल से आइ तँ ओ उड़ाँत भऽ गेलि‍। बि‍ना कोनो धड़ी-धोखाक गामक मुखि‍या-सरपंचक संग हँसि‍-हँसि‍ बजै-भुकए लगली। गामक राजनीति‍मे हाथ बँटबए लगल। गामक उचक्का छौड़ा सभ संगे हाट-बजार करए लगल।
एतबे नै, ओ अपन जीवन-यापनक बहाना बना ब्‍यूटीपार्लर सेहो जाए लगली। सत्संगे गुणा दोषा रंगीन दुनि‍याँ आ वातावरणक प्रभाव ओकरापर पड़ल लगल। ओकर अपन वैधव्‍य जि‍नगी पहाड़ सन लागए लगलै। आब ओ चाहए जे ई उजरा धूआ-साड़ीकेँ फेकि‍ रंगीन दुनि‍याँमे चलि‍ आबी। ओ रसे रसे-रसे उजड़ा साड़ी छोड़ि‍ हल्का छि‍टबला साड़ी पहि‍रए लगल। मन जे एते एकरंगाह रहै से आब सभरंगाह हुअ लगलै। रूप-गुण लछन-करम सभ बुझू जे बदलए लगल। आब ओकर मौलाएल गाछक फूल खि‍लए लगल। एक दि‍न मुखि‍याकेँ कहि‍-सुनि‍ इन्‍दि‍रा अवास स्‍वीकृति‍ करौलक आ बि‍च्‍चे आँगनमे घर बना लेलक। आब जे कि‍यो छौड़ा-माड़रि‍ भेँट-घाँट करए आबए तँ ओ ओही घरमे बैसा चाह-पान करए लगल। चाहो-पान होइ आ हँसी चौल सेहो। एते दि‍न जेकरा भाफो नै नि‍कलै तेकर आब हँसीक ठहाका दरबज्‍जोपर लोक सुनए लगल। गामक आ टोलक बि‍स्‍कुटी लोकक चक्कर-चाि‍लमे पड़ि‍ ओ भैंसुरसँ अरारि‍ कऽ अपन हक-हि‍स्‍सा लेल लड़ए लगली। लड़ि‍-झगड़ि‍ सर-समाजकेँ बैसा पर-पंचायत कऽ ओ बाध-बोनसँ लऽ चर-चाँचर, वाड़ी-झारी एतबे नै डीह तक बाँटबा लेलक। आब तँ कहबी परि‍ भऽ गेल जे अपने मनक मौजी आ बहुकेँ कहलक भौजी। जखनि‍ जे मन फुड़ै तखनि‍ सएह करए। कि‍यो हाँट-दबार करैबला नै। कारणो छेलै, जँ कि‍यो कि‍छु कहैक साहसो करए तँ अपन इज्‍जत अपने गमा बैसए। आब तँ ओ चर्चेआम भऽ गेलि‍। अही बीच ओ एकटा छौड़ाक संग बम्‍बै पड़ा गेल। आहि‍ रे बा! परात होइते घोल-फच्‍चका शुरू भेल ‘कनि‍याँ केतए गेली केतए गेेली’ आकि‍ दू दि‍नक बाद मोबाइल आएल जे ओ तँ बम्‍बैमे अछि‍ फलल्‍मा छौड़ाक संग। ओना गामोसँ मोबाइल कएल गेल जे कनि‍याँ गाम घूमि‍ आबथि‍। मुदा ओ तँ अपने सखमे आन्‍हर।
कि‍छु दि‍नक बाद जेना-तेना पकड़ि‍-धकड़ि‍ ओइ छौड़ाक संग गाम आनल गेल। मुदा ओ तखनो सबहक आँखि‍मे गर्दा झोंकि‍ कोट मैरेज कऽ लेलक तेकर बादे गाम आएल। एतेक भेला बादो गामक समाज बजौल गेला। सभ तरहेँ सभ कि‍यो समझबैक परि‍यास केलनि‍। मनबोध बाबा जे गामक मुँहपुरुख छथि‍ ओ ओकरा बुझबैत कहलखि‍न-
सुनू कनि‍याँ, अखनो कि‍छु ने बि‍गड़लै हेन, आबो ओइ छौड़ाक संग-साथ छोड़ि‍ गंगा असलान कऽ समाजक पएर पकड़ि‍ लि‍औ। जे भेलै से भेलै। सभ अहाँकेँ जाति‍मे मि‍ला लेत। जाति‍ नाम गंगा होइ छै।
मुदा मनबोध बाबाक बातक कोनो असरि‍ ओकरापर नै पड़लै। ओइ छौड़ाक संग-साथ छौड़ैले तैयार नै भेल। अन्‍तमे गौआँ-घरूआक संग मनबोध बाबा ओकरा जाति‍सँ बाड़ि‍ आँगनासँ ई कहैत‍-
“एकरा आँगनमे राखब उचि‍त नै ई कनि‍याँ कनि‍याँ नै छुतहरि‍ छी छुतहरि‍...।”
हम ओत्तै ठाढ़ भेल कि‍छु ने बाजि‍ सकलौं, कि‍छु ने कऽ सकलौं। की नीक की अधला से तखनि‍ नै बूझि‍ पेलौं जे आइ बूझि‍ रहल छी अखनो समाजकेँ समाढ़ गहि‍आ कऽ पकड़ने अछि‍।

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