Wednesday, October 30, 2013

जीउलाह

162. जीउलाह

कम्पनीमे छुट्टी भेलाक बाद वरिय कलर्क राघो बाबू अपन केबिनसँ बहरेलनि ।बाहर आबिते सहकर्मी सब संग भऽ गेलनि ।जुनियर कलर्क बिसो बाबू कहलनि "चलू राखो बाबू आइ पार्टी भऽ जाए ।"
"कतऽ जेबै आ कथीक पार्टी ?" राघो बाबू कथा बुझबाक प्रयास करैत कहलनि ।
बिसो बाबू फरिछाबैत कहलनि "अरे बेसी चाट-पकौड़ी, दू-चारि पीठ मिठाई आ चाह ।सुनलियै हें जे नाकापर बला दोकानमे बड नीक बनबै छै ।"
राघो बाबूक मुँह लटकि गेलनि ।लागै जे किओ बनल-बनाएल काजपर पानि ढारि देने होइ । नकारात्मक उत्तर सूनि बिसो बाबू पोल्हबैत कहलनि "एना किए मना करैत छी ?एँ यौ नेनपनमे तँ अहाँ एकर प्रेमी छलियै ।नीक चीज तँ खोजिते रहैत छलियै ।अहाँ एहन जीउलाह आदमी चाट-पकोड़ीकेँ कोना मना कऽ सकै छै !"
"यौ भाइ, पहिने हम एसगर रहियै तँ जीउलाह बननाइ भारी नै छलै मुदा आब . . .आब तँ जिम्मेदारी माँथपर छै । अपने नीक-नीकुत खेबै की बेटा-बाटीकेँ खुएबै ?" ई कहि डेरा दिस चलि देलनि ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 22, 2013

जिम्मेदारी

161. जिम्मेदारी

"हे कने बाँहिमे तँ आउ ।"
"दुर जाउ ।अहाँकेँ केहनो लागैत नै अछि जे जखने-तखने शुरू भऽ जाइ छी..."
"... आ अहाँक पड़ाइत रहै छी ।हे यै अहाँ हमर कनियाँ छी, मुदा देखियौ तँ हमरे कुकुर, हमरेपर झाँउ-झाँउ !"
"और नै तँ की !अहाँकेँ किछु लागैत अछि ?आब बौआक जिम्मेदारी माँथपर छै ।अहाँपर धियान देलासँ वर्तमान सुधरत मुदा बौआपर धियान देलासँ अपना दुनू प्राणीक भविष्य सुधरत ।"
"हँ, से तँ अछि ।ठीक छै जाउ, बौआकेँ देखियौ गऽ ।"

अमित मिश्र

Monday, October 21, 2013

फाटल पन्ना

160. फाटल पन्ना

"हे अहाँक बारेमे बड सूनि रहल छी ।अपन जुआन पत्निकेँ छोड़ि दोसर संग...ई सब नीक नै भेल ।"सुनीता अपन पति सुकेशकेँ उपराग दैत कहलनि ।ई सुनिते सुकेश तामसे लह-लह करऽ लागल "हम कमाइ छी ।हम जे करी ओइसँ अहाँकेँ की ?" बात बिगड़ैत चलि गेल ।रिश्तामे खटास बढ़ैत-बढ़ैत तलाक धरि पहुँचि गेलै ।आब सुकेश अपन प्रेमिका संग रहऽ लागल ।
" यै मृगनैनी अहाँ एतेक टाका बेकारमे व्यर्थ करैत छी ।बुझू तँ काल्हिये हार किनलौं आ फेर आइये... "सुकेश अपन प्रेमिकाकेँ कने दबारैत कहलक ।ई सुनिते प्रेमिका सुकेशपर टूटि पड़ल "एना जुनि बाजल कर ।तूँ हमरा आनलें हम अपना मोने थोड़े एलियौ ।" झगड़ा बढ़ि गेल ।बाता-बातीक बीचमे एक-दू थप्पर सुकेशकेँ लागियो गेलै ।राति भरि सूति नै सकल ।सुकेशकेँ लागऽ लागलै जे सुनीताकेँ जिनगीसँ दूर भेलासँ ओकर जिनगीक सबसँ सुन्नर पन्ना फाटि गेल छै ।

अमित मिश्र

Sunday, October 20, 2013

आगि

159. आगि

- "ब्रह्मदेव भाइ एकटा बात सुनलहो ?रमेशबा माए-बापकेँ छोड़ि कऽ पड़ा गेलै ।"
- "हँ हौ खेखन भाइ, बात तँ हमरो कान धरि आएल छलअ...सुनलियै जे कोनो छौड़ीकेँ संगे लऽ गेलैए ।"
- "बुझहो तऽ, जे छौड़ा मूड़ी गोंति कऽ चलै छलै से एहन काज केलकै ।"
- "अनर्थ कऽ देलकै छौड़ा ।बाभन भऽ कऽ चमाइनक संग पड़ेलै ! एँ हौ पिरथी भाइ...एते तागत कोना आबि गेलै रमेशबामे ?"
- "हे हौ खेखन तूँहूँ बुड़बके बला गप करै छहो ।छौड़ाक देहमे आगि लागल छलै...प्रेमक आगि...ई आगि जाति-पाति थोड़े देखै छै । ई आगि सबटा बन्हकेँ जड़ा दै छै... ई तँ खूनक सम्बन्धोकेँ सुड्डाह कऽ दैत छै ।बुझलहो ने...हँ ।"

अमित मिश्र

Saturday, October 19, 2013

चक्कर

158. चक्कर

"रौ छौड़ा देखै की छहीं अल्हुआ ?अरे मैगियाक नाक-कानमे जे चमकौआ सोना छै से झीक ले...अरे मरदाबाकेँ छोड़िहें नै...रासा लऽ कऽ बान्ह ।" पिपरक गाछ तरसँ पूर्वमुखिया जी शेर जकाँ चिकरैत बाजलनि ।चेला सब आदेशक पालन केलक ।महिलाक नाक-कान शोणित चुआबऽ लागल ।
"सार मरदाबा अपने विधवा भाउज संग चक्कर चलबैत अछि... आ थू" पूर्वसरपंचक मूँहसँ निकलल एक लोइया थूक घासपर पसरि गेल ।ओ ठोर टेढ़ करैत बाजलनि "रौ दुनूकेँ कहीं एकरा चाटै लेल...तखने प्रायश्चित हेतै ।" मरद कहैत रहल जे ओ हमर माए सन छथि मुदा... चेला सब आदेशक पालन करैत जबरदस्ती दुनूसँ थूक चटबेलक ।पंचायत समाप्त भेल ।पूर्व सरपंज आ मुखियाक जय जयकार हुअ लागल ।"आइ-काल्हि तँ चक्कर चलबै बलाकेँ मारि देल जाइ छै ।धन्य नेता जी जे जान बचा देलखिन ।"
मुदा...मुदा दुनू देउर-भाउजकेँ ई अपमान सहन नै भेलै ।दुनू रातिमे फसरी लगा लेलक ।लोकक शक विश्वासमे बदलि गेलै ।आब एकरा दुनूमे चक्कर छलै वा नै, मुदा अगिला चुनावमे दुनू नेताक चक्कर जरूर चलि गेलै ।

अमित मिश्र

Saturday, October 12, 2013

छागर

157. छागर

एकटा गाय आ एकटा पाठी एक्कै खुट्टापर बान्हल छलै ।पाठीकेँ नहाएल जा रहल छलै ।ई देखि गाय पुछलकै "भाइ ई की भऽ रहल छै ?"
पाठी कहलकै "हमर दीर्घ यात्राक ओरियान भऽ रहल छै ।"
"अच्छए भाइ एक बात बता, एते दिन लोक तोरा खस्सी आ पाठी कहै छलौ मुदा आइ तोहर नव नाम सूनि रहल छियौ 'छागर'...से किए ?"
"नै बुझलहीं बहिन, एते दिन धरि मनुखक नामे कटि कऽ मनुखक पेट भरै छलियै आ आइ मनुख देवताक बहन्ना बना कऽ काटत तेँ ई विशेष नाम देल गेल छै...बहिन,एक टा बात बड सतबै छै ...भगवतीक चरणमे मरनाइ तँ पुण्येक गप भेलै मुदा हमरा अपन भोजन बनबै लेल देवी कहाँ आबै छथिन्ह...हमरा तँ सब दिन जकाँ मनुखे खाइत छै तखन एते ताम-झामक कोन प्रयोजन ?"छागरक दुनू नैनसँ गंगा-यमुना बहऽ लागल छलै ।ओ अपनाकेँ सम्हारैत आगू बाजल "बहिन, राक्षस तँ पापी छल तेँ ओकर संहार कऽ भक्षण कएल गेल...मुदा हम ककरा कोन कष्ट देलियै जे हमरा राक्षसे जकाँ काटल जाइत अछि ।बहित एकटा बात सन्तोष दैत अछि जे देवीक नजरिमे सब बराबर छै ।आइ जे हमर प्राण लेत काल्हि ओकरा देवी नै छोड़थिन... ।"छागर बाजिते छल तखने ओकर मालीक ओकर डोरी पकड़ि बलि-वेदी दिस चलि देलक ।

अमित मिश्र

अधिकार

महानगरमे, आजुक समयानुसार एकल परिवार। सभ अपना अपनामे। एक भाँइ कतौ तँ दोसर कतौ। बाबू गाममे तँ माए किनको एक भाँइ लग। एहने परिवेश आ मकड़जालमे ओझराएल परिवारक एकटा माए अप्पन बेटासँ, ई की नी० (नी० माएक पोती) काल्हिसँ अस्पतालमे भर्ती छै आ तू सभ हमरा कहबोसँ गेलअ।
बेटा चुप्प, माए आगू, बूझलीऐ आबैक पुरसैत केकरो लग नहि छैक, कनी एकटा फ़ोनो तँ करबा चाही
बेटा, की कहितीयै ? कोनो तरहक सुख तँ हम अहाँ सबहक जीवनमे कहियो दऽ नहि पएलहुँ, दुख कहि अहाँ सबहक मोनकेँ दुखी करैक हमरा कोन अधिकार अछि।  

Thursday, October 10, 2013

जनी जाति

156. जनी-जाति

"अहाँ जे एना मूँह फुलेने छी से नीक बात नै ।जनी-जातिकेँ एतेक गुमान नीक नै लागैत छै ।"पति अपन रूसल पत्नीपर खौंझ कऽ कहलक ।
पत्नी चोट्टहि उत्तर देलक "एना जुनि बाजू ।नारी मने की ? खाली गारि-मारि सहैत रहू ।हमहूँ एहि समाजक छी ।हमरो सब किछुक करबाक अधिकार अछि ।हमर मरजी, हम रूसी वा कानी ।"
"आहि रे बा !समाजक चर्चो करैत छी आ समाजकेँ चिन्हितो नै छी ।एँ यै बूझल नै अछि जे ई समाज पुरूष प्रधान अछि नारी प्रधान नै ।"
"जाउ जाउ, हमरा बेसी समाजक परिभाषा नै सिखाउ ।जँ पुरूखे प्रधान छै तखन नारीक जरूरत किए पड़ै छै ?बच्चा जनमाबी हम, घर सम्हारी हम, गारि-मारि सही हम, आ प्रधान बनत पुरूक !हे आब ई सब चलै बला नै अछि ।"पत्नीक तमसाएल मुँह देख पति अपना आपकेँ डेराएल सन अनुभव केलनि ।"यौ आब मौगीए सब कामा कऽ पुरूखक पालन करै छै, पुरूखक संग डेग मिलबैत अछि ।यौ आब समाजमे जनी नामक कोनो जाति बचले नै अछि ।आब एक्कै जाति अछि, मनुखक जाति ।बुझलौं ने ?"
पत्नीक तर्क सूनि पति सन्ट भऽ गेलथि ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 8, 2013

अनमोल झा जीक विहनि कथा संग्रह “टेकनोलजी”क समीक्षा, समीक्षक – जगदानन्द झा ‘मनु’

मिथिला संस्कृतिक परिषद, कोलकत्ता द्वारा प्रकाशित श्री अनमोल झा जीक लघुकथा संग्रह टेकनोलजी एखन हमरा हाथेमे अछि। पाँछाक तीन दिनसँ लगातार एकरा पढ़ि रहल छी। सुन्नर कवर पेंजसँ सजल तेहने भीतरक कथा सभ एकसँ एक उपरा उपरी।
सबसँ पहिने अनमोल जीकेँ एहि --- कथा संग्रह हेतु बहुत बहुत बधाइ आ संगे संग मंगल कामना जे मैथिली साहित्यमे दिनो दिन ओ शुक्ल पक्षक चाँन जकाँ उदयमान होइत रहथि।
मिथिलांचल टुडे टीमक तरफसँ हमरा एहि पोथीक समीक्षा केर दायित्व भेटल। हमरा लेल ई कठिन काज आ ओहूसँ बेसी कष्टकर छल बिना कोनो पक्ष बिपक्षमे गेने तटस्थ एहि पुस्तककेँ समीक्षा केनाइ। हमरामे कौशल आ शहास दुनूक अभाब मुदा माँ सरोस्वती आ गुरुदेवकेँ सुमिरैत अपन आँखिकेँ पोथीक पन्नापर आ कलमकेँ कागदपर चलबए लगलहुँ।
अनमोल जीक समर्पण देख मोन गदगद भए गेल। जतए आजुक नव पीढ़ी अपन माए बाबूकेँ बोझ बुझि रहल अछि ओहिठाम अनमोल जीक ई पोथी हुनक पूज्य बाबूजीक श्रीचरण कमलमे समर्पित अछि। नवका पीढ़ी लेल ई एकटा नव रस्ता काएम करत।
आगू पोथी पढ़ैसँ पहिने एकटा बात मोनकेँ कचोटलक, जे अनमोल जीक एहिसँ पहिने दूटा विहनि कथा संग्रह प्रकाशित भए चुकल अछि। हुनक नाम मैथिली साहित्यमे एकटा स्थापित विहनि कथाकारकेँ रूपमें लेल जा रहल अछि तकर बादो ओ अपन एहि नव विहनि कथा संग्रहकेँ, विहनि कथा संग्रह नहि कहि लघु कथा संग्रह कहि रहल छथि। जखन की आइ विहनि कथा एकटा स्थापित विधाकेँ रूपमे मैथिली साहित्यमे स्थापित भए चुकल अछि। विहनि कथा आब कोनो तरहक परिचय लेल मोहताज नहि अछि। श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी अपन विहनि कथा संग्रहपर टैगौर पुरस्कार जीत कए दुनियाँक बड़का-बड़का भाषाकेँ एहि दिस सोचै लेल बिबस कए देलखिन्ह। अंग्रेजी एकरा  "सीड स्टोरी" कहि सम्बोधित केलक। हिंदी अंग्रेजीमे जकर कोनो स्थान नहि ओहेन एकटा नव बिधाक अग्रज मैथिली साहित्य आ ओ बिधा, विहनि कथा
विहनि कथा आ लघु कथामे बहुत फराक अछि। विहनि अर्थात बिया। बिया वटवृक्षकेँ सेहो भऽ सकैए आ सागक सेहो। तेनाहिते मोनक बिचारक बिया जे कोनो आकारमे फूटि सकैए, विहनि कथा। विहनि, बिया, सीडमे सँ केहन गाछ पुट्टै कोनो आकारक सीमा नहि। लघु कथा मने एकटा छोट कथा जेकर आरम्भ आ अन्त दुनू छैक।
अनमोल झा जीक एहि संग्रहक एक एकटा कथा जबरदस्त विहनि कथा अछि। तहन लघु कथाक जामा किएक ? हाँ, किछु गोट लघु कथाक श्रेणीक कथा सेहो अछि मुदा अल्प मात्रामे, जेना पृष्ट संख्या ७६ पर बढ़ैत चलू, ७९ पर समाज, ८० पर मर्माहत, ८२ पर सपूत सब, ८३ पर शोध, ८५ पर प्रायश्चित, ९० पर बड़का लोक, ९५ पर समय समय केर बात आ पृष्ट संख्या १०१ पर अप्पन जकाँ"। पृष्ट संख्या ८८ पर मिथिला राज्यक तँ नहि विहनि कथा अछि आ नहि लघु कथा, एहिपर जँ कनीक आओर मेहनत कएल गेल रहथि तँ एकटा नीक आलेख अवश्य भए सकैत छल।
प्रकाशक, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकत्ता केर मन्त्री श्री गंगाधर झाजी अपन प्रकाशकीयमे लघु कथा"केँ एकटा नवीन विधा कहि सम्बोधित कए रहल छथि, एहिठाम जँ ओ विहनि कथा कहितथि तँ साइद उचितो रहितए मुदा लघु कथा आ नवीन विधा हास्यपद। हम एहि कथा संग्रहक कथाकेँ आँगाक  उल्लेखमे विहनि कथा कहि सम्बोधित करब।
टेकनोलजी विहनि कथा संग्रह रूपी मालामे कुल १५५ गोट विहनि कथा गाँथल गेल अछि। संग्रहक पहिले विहनि कथा टेकनोलजी एकरे नामपर संग्रहक नामकरण भेल अछि। अनुपम विहनि कथा, विहनि कथाक सबटा गुण कुटि-कुटि कए भरल अछि। जतेक प्रसंशा करी कम। एहि विहनिमे, कोना एकटा परदेशीया पुतहु अपन ससुरकेँ मात्र एहि द्वारे पाइ पठाबैक इक्षा रखैत छथि, जाहिसँ समाजमे हुनक नाम होइन। एहि द्वारे ओ नव टेकनोलजी बैंकिंगकेँ छोरि मनीआडर द्वारा पाइ पठबै छथि।
टेकनोलजी नाम धरी ई विहनि कथा संग्रह नामक भ्रम उत्पन्य कए रहल अछि। पहिल नजरिमे टेकनोलजी नामसँ एना बुझा रहल अछि जे विज्ञान, टेकनोलजी आदिसँ सम्बंधित विषय बस्तु होएत मुदा एहन कोनो गप्प नहि। समस्त पोथीमे एकसँ एक नीक, रुचिगर विहनि कथा अछि मुदा टेकनोलजी, विज्ञान, तकनीकीसँ सम्बंधित एकौटा नहि।
विहनि कथाक मुख्य अंग संबाद अछि आ अनमोल जीक विहनि कथा संबादसँ डूबल अछि, जबरदस्त ! मुदा संबाद -------- इनवरटेड कोमामे बन्द कए कऽ नहि लिखल अछि, एकर अभाब सम्पूर्ण पोथीमे अछि।
दोसर कमी जे हमरा सम्पूर्ण पोथीमे, कथासँ प्रकाशकीय तक लागल, विभक्ति। विभक्ति अप्पन पहिलुका आखरसँ हटा कए लिखल अछि जाहि कारण कतौ कतौ अर्थकेँ फरिछौंतमे असमंजसकेँ स्थिति उत्पन्न भऽ रहल अछि।
पृष्ट १३ पर लिखल विहनि कथा टेकनोलजी आ २७ पर लिखल लोक बुझाउन दुनू एक्के सन कथा थिक मात्र नामेटा बदलल अछि।
एहि संग्रहमे कोनो एहन पक्ष नहि जाहिपर अनमोल जीक कलम नहि चलल होइन। मनक भावसँ समाजकेँ बिडम्बना धरि, अन्तरंग अम्बन्धसँ हँसी ठठा धरि सभ पक्षक उचित स्थान देल गेल अछि। पृष्ट ३३ पर ड्यूटी, ३८ पर चिन्ता (एक), ३९ पर बेटा बेटी, ४३ पर दुख, ४५ पर खोराकी, ४६ पर गोहारि, ५८ पर भीख, ६० पर मोनमे, ९८पर अन्हरजाली, १०१ पर अप्पन जकाँ, १०३पर मनुक्ख के कुकुर के, मनकेँ छुबैत करेजाकेँ मोम जकाँ गला कए आँखिक रस्तासँ  बाहर आबैक पर मजबूर कए कऽ मोनक कोनो कोनामे एकटा टीस छोरि दै छैक। ओतए पृष्ट संख्या ३२ पर एकदम ठीक आ ३७ पर टास्क  समाजक कुप्रथाकेँ देखार कए रहल अछि।
पृष्ट ३४ पर सुरक्षित (एक)”, ४० पर मन्त्र, ७७ पर आन्हर, आ ८७ पर व्यवस्था, आजुक राजनीति आ व्यवस्थापर प्रहार करैत उत्तम विहनि कथा अछि। तँ दोसर दिस पृष्ट ३५ पर जागरण, ४२ पर चेतना(एक), ४६ पर विज्ञान, आजुक जागरूक लोकक सत्य विहनि थिक। बाल मोनकेँ कागदपर उतारैत अनमोल जी एहि पोथीक पृष्ट ६५ पर प्रश्न (दू), आ ६९ पर चिन्तित, वास्तबमे मोनकेँ चिन्तामे झोँकैक लेल प्रयाप्त अछि। ओतए ६३ पर उत्तर आ ७१ पर भरमकेँ सवाल जबाव एहन अछि जेना शेरपर सबा शेर। सम्बन्धकेँ उजागर करैत पृष्ट ४८ पर बुद्धू, ६७ पर महक, आ ८१ पर श्रधा अछि तँ ३६ पर सअख आ ६० पर लिखल युद्ध पढ़ि हँसीसँ मुँह मुनेबे नहि करत। 

कनीक साहित्यक पक्षकेँ छोरिदि तँ कुल मिला कऽ नीक विहनि कथा संग्रह। पाठकक मोनमे शिक्षा संगे संग जिज्ञासा आ रूचि जगबैमे पूर्ण सफल। एक बेर किनको हाथमे ई पोथी आइब गेल तँ बिना पूरा पढ़ने चेन नहि

खैरातमे खून

155. खैरातमे खून

"हौ सुनलो...कल्याण भऽ गेलऽ सब गोटाकेँ ...जकर-जकर माल-जाल, घर-दुआरि भासि गेलै ओकरा सरकार 5 लाख टाका खैरातमे देतै...ओतेमे तँ हमर भागे सुधरि जेतै ।" राघो काका रोडियो हाथमे मचानसँ चिचिया रहल छलथि मुदा बाढ़िक पानिक गर्जन हुनक सुखाएल कण्डसँ निककल स्वरक मर्दन कऽ रहल छल ।बाढ़ि गेलै ।लोक सरकारी दफ्तरक चक्कर लगाबऽ लागल ।राघो काकाक पूरा परिवार भासि गेल छलै ।बेचारे एसगरे जिलामे जाथि ।सब ठाम अश्वासन तँ झोरा भरि-भरि भेटै मुदा टाकाक दरश नै भेटै ।राघो काका दफ्तरक आगू जमि गेलथि ।कोनो अफसर देखबो नै केलकै ।रसे-रसे कमजोरी बढ़ैत गेलै ।एक राति हुनक हिम्मत टूटि गेलै आ ओ अपन परिवारक लऽग चलि गेलथि ।भोरमे लोक देखलकै जे हुनक लहाशक चारू कात चारि-पाँच टा कुकुर टहलि रहल छल ।

अमित मिश्र

नवतुरिया

154. नवतुरिया

एक बेर फूल आ फूलक गाछमे बकझक भऽ गेलै ।फूल आन्दोलन ठाढ़ कऽ देलक "नै...आब जुलुम नै सहबौ ।आब हम नै मौलेबौ ।"
गाछ शान्त करैत बाजल "एना किए बाजै छें ।तोरा कोन दिक्कत होइ छौ ?तूँ तँ हमर अंग छें ।तोरा तँ प्रेमसँ मौलेबाक चाही ।"
"अरे वाह रे वाह !हम हिनक अंग छी! हमरे सुगंधक कारण लोक तोरा पूछै छौ आ तूँ हमरे मौलाइ लेल कहैत छें ।" फूल आक्रोशित होइत बाजल ।
गाछ ओकरा बुझबैत बाजल "देख दुनियाँ परिवर्तनक पर्याय छैक । जा धरि तूँ नै मौलेबें ता धरि नव फूलक जनम नै हेतै ।"
फूल क्रोधे थरथराए लागल "तैसँ हमरा कोनो मतलब नै ।नवतुरियाकेँ हम कोनो रोकने छियै, आबौ ने...मुदा हम रहबे करबै ।"
"एतेक जिद जुनि कर ।समाजमे देखै नै छहीं बुढ़बा-बुढ़ियाकेँ कतेक गंजन होइत छैक ।पुरनका सब सबटा अधिकार अपने लऽग राखऽ चाहै छै आ नवतुरिया अपना लऽग चाहै छें ।बूढ़-पुरानकेँ किछु बरदाश्त नै होइ छैक आ नवकाक खूनक गरमी लऽग हारि कऽ मारि खाइ छैक । ऐसँ बढ़ियाँ जे अपन इज्जत बचा कऽ नवतुरिया लेल स्थान खाली कऽ दी ।"
गाछक बात सूनि फूल सब बात समझि गेल आ दोसरे दिन मौला कऽ गाछसँ खसि पड़ल ।

अमित मिश्र

Friday, October 4, 2013

सुइया भोंकि रहल

153. सुइया भोंकि रहल

"हे...हे...सुनलियै यौ...जुलुम भऽ गेलै...छोपि देलकै...बाप रे बाप...रमचनराक घेंटि छोपि देलकै ..."
"एँ यौ कतऽ, के घेंटि काटि देलकै ?"
"सरबनमा बढ़मोतरमे मसोमात बला खेतक आरिपर रमचनराक घेंटि काटि देलकै ।" जंगलक आगि जकाँ कानोकान भरि गाममे ई घटना पसरि गेल ।लोकक हुजुम बढ़मोतर दिस दौड़ पड़ल ।एक्कै आरिमे रामचन्द्र आ सरबनक आरि छलै ।बाप रे बाप !बड विभत्स दृश्य छल ।रामचन्द्रक खेतमे रामचन्द्रक धर पड़ल छल आ सरबनक खेतमे जीउ आ आँखि निकालने सिर पड़ल छलै ।आरिपर पड़ल कटल गर्दनसँ शोणितक गंगा-यमुना बहैत छल ।बगलेमे खूनसँ नहाएल कोदारि पड़ल छलै ।किछु लोक सरबनकेँ कसि कऽ पड़ने छल ।ओ चिचिया रहल छल "एक्कै आरिक खेतमे एते जुलुम भेलै यै ! सार रमचन्द्रक खेतमे मोनक मोन धान आ हमरामे खाली खखरी...साला अपन खेतसँ माँटि कटबा कऽ खत्ता कऽ लेलकै ।हमर खेतक पानि ओकरा खेतमे जतै ! ले ने सारकेँ उठाइये देलियै ।हमर बापे बैमान छलै जे नीक खेत ओकरा देलकै ।ओकर खेतक हरियरी हमरा सुइया भोंकि रहल छल । आब लैत रहौ मोनक-मोन धान ।"
सब सोचि रहल छल जे अपन दोष देखने बिना लोकक अरारि एतेक पैघ घटना घटा सकै छै ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 1, 2013

गंगाजल

152. गंगाजल

शोभन राम ट्युशन पढ़ेबाक काज करैत छलथि ।पंडित सीताराम झा शोभनक योग्यता देख अपन बेटा-बेटीकेँ पढ़बैक लेल शोभनकेँ बजेलनि ।हवेलीक बाहर बनल एकचारीमे पठन-पाठन शुरू भऽ गेल ।एक दिन कोनो बातसँ तमसा कऽ गुरू जी पंडित जीक बेटाकेँ एक थापर लगा देलनि ।थापर लागिते पंडित जीक बेटा शोभनपर चिकरैत बाजल "हौ तूँ हमरा छुअल नै करऽ , हमरा गंगा जलसँ नहाय पड़त ।एकटा बात और हमरापर हाथ नै उठाएल करऽ । एक मिनटमे जेल पठबा देबऽ ।तोरासँ बेसी मातबर छी हम ।बुझलहक ने ?"
छोट नेनाक बात सूनि शोभन सोचमे पड़ि गेल छल 'आखिर पाँच बरखक अवोध नेनाकेँ अमीरी-गरीबी, जाति-पातिक पाठ के पढ़लकै ?गंगामे तँ हमहूँ नहाइत छी तखन हम अछूत कोना ?' शोभन सोचिते छल तखने पंडिजीक बेटा गंगाजलक डिब्बा हाथमे लेने घरसँ बाहराएल ।

अमित मिश्र