Sunday, July 14, 2013

श्रेष्ठ विहनि कथाक गुण


शंक्षेप्तमे एक गोट श्रेष्ठ विहनि कथामे निचाँ लिखल गुणँ होबाक चाही –

Ø  सम्पूर्ण कथा मात्र एकटा दृश्यमे होबाक चाही। जेना नाटकक मंचन मंचपर होइत छैक आ ओहिमे कतेको बेसी दृश्य भऽ सकैत छैक मुदा विहनि कथाक कथ्य आ कथा दुनू एके दृश्यमे सम्पन्न भए जेबाक चाही।

Ø  विहनि कथाक मुख्य अंग संवाद अछि। जतेक सटीक आ नीक संबाद होएत ओतेक नीक। शव्द चयन एहेन हेबा चाही जे पाठककेँ अर्थ बुझैक लेल सोचअ नहि परनि। तुरन्त आ जे हम कहै चाहै छी ओ पाठकक मानस पटलपर जेए।

Ø  कथाक गप्प पाठकक करेजाकेँ छूबि लनि आ पढ़ला बादो करेजामे दस्तक दैत रहनि ओकर परिणाम वा समाप्तिक फरिछौँटमे नहि परि कए पाठकपर छोरि दी।

Ø  जँ अहाँक कथा कोनो सार्थक उदेश्य वा गप्पकेँ प्रस्तुत करैक मे सफल अछि, समाजकेँ कोनो नीक बेजए पक्षकेँ दखा रहल अछि तँ सर्वोतम।

Ø  पढ़ैक कालमे पाठकक मोनमे मनोरजन केर संगे-संगे रूचि आ कौतुहल जगा सकेए। एना नहि बुझना पड़े जे कोनो प्रवचन सुनि रहल छी।

Ø  भए सके तँ इतिहास बनि चुकल नाम आ पात्रसँ बचअकेँ चाही।


उपरोक्त गुणक समाबेससँ कोनो विहनि कथाकेँ श्रेष्ठ विहनि कथा बना सकैत छी।

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