Saturday, July 6, 2013

तास




दलानपर तास बजरल, हा हा ही ही होइत। पानपर पान चलैत। तास फेकैत क०जी, “की यौ भाइ सुनलीयैए रमेशरा बेटाक नाम डॉक्टरी कॉलेजमे लिखा गेलै।”
“हाँ, किछु बर्ख बाद ओ डॉक्टर बनि हमरा सभक इलाजो करत।”
“केहन समय आबि गेलै.... आ एकटा हमरा सभक धिया-पुताक कोनो गैँरे बथान नहि छै।”
हुनक दुनूक गप्प सुनैत आ ओहिसँ पहिने अपन माएकेँ कहलापर बाबूकेँ बजबै लेल आएल क०जीक चौदह बर्खक बेटा, “अहाँ सभ भरि दिन तासमे लागल रहू आ अप्पन अप्पन धिया-पुताकेँ कोसैत रहू, देखियौ गऽ रमेशराकेँ एखनो अप्पन खेतमे लागल छथि तँ डॉक्टर केकर बेटा बनतै रमेशराक की अहाँ सभक।”

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