Monday, June 10, 2013

बदनाम के ?

84. बदनाम के ?

चारि-पाँच गामक पंच सब कंक्रीटक मंचपर जुटल छल ।गौआँ-अनगौआँक भीड़ मुक दर्शक बनि पीपर तऽर बैसल छल ।मंचक एक कोन लऽग निच्चामे सतरऽ-अठारऽ वर्षक लड़की घेंट तानने ठाढ़ छल ।एकटा पंच पुछलकै " गै परबतिया, तूँ जे विआहसँ पहिने ढीढ़ फुला कऽ बैस रहलें, तोरा डऽर नै लागलौ ।"
परबतिया ठेसगरसँ बाजल "केहन डर लागितै ?"
"देखियौ यौ भाइ ।गलती कऽ आँखि तरेरैत अछि ।उनटे चोर कोतबालकेँ डाँटय ।गै, बदनाम हेबाक डऽर ।"
" जँ पुरूष जाति जे हमरा बिनु विआह माए बना देलक तकरा बदनामीक डऽर नै भेलै तँ हमरा किए हएत ? हमर तँ शारीरीक गुण अछि माए बननाइ, विआहसँ पहिने वा विआहक बाद ।एहि कुकृत्यसँ पुरूष बदनाम भेल अछि, हम नै ।"

अमित मिश्र

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