Tuesday, June 11, 2013

पछतावा

89. पछतावा

ओ टाकाक भूखल छलथि ।भगवान एक्के टा बेटा देने छलन्हि ।केनाहुतो बेटाकेँ सरकारी नोकरीमे ढुका देलनि ।नोकरी लागलै अपनासँ दूर मुंबईमे ।आब बेटाक विआह बाँकी छलन्हि ।कतेको कन्यागतकेँ घुरा देलनि किएक तँ हुनका कमौआ पुतौह चाहिएन ।भगवानक दयासँ दिल्लीमे कार्यरत पुतौह भेँटि गेलनि ।किओ पुछलकनि" एक्के टा बेटा अछि ।दुनू प्राणी कमौआ अछि ।बुढ़ारीमे के सेवा करत ?"
ओ कहने छलथि " तखन पुतौहक नोकरी छोड़ा देबै ।"
आब ओ दुनू प्राणी बुढ़ भऽ गेल छथि ।पुतौहकेँ नोकरी छोड़ऽ लेल कहलनि तँ ओ मना कऽ देलक ।कहलक "कने दिनमे हमर प्रमोशन हएत ।मैनेजर बनि जाएब तेँ हमरासँ नै छोड़ल हएत ।" बेटोक इएह जबाब छलनि ।आब मृत्युशैयापर पड़ल अपन गलतीपर पछता रहल छथि ।जँ कमौआ कनियाँ नै रहितै तँ पोता-पोतीसँ घर भरल रहितए ।सब सुखी रहितए ।

अमित मिश्र

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