Saturday, June 8, 2013

बाबीक पिआर




बेरुपहरकेँ चारि बाजि रहल छल | ओ दुनू भोरेसँ एहि गप्पपर चर्चा कए रहल छल कि हमर जनम दिनपर हमरा की उपहार देल जेए | नी कोनो डिपार्टमेंट स्टोरसँ एकटा रिस्ट वाच देख कए आएल छल जेकर दाम अठारह सए रुपैया छल | मुदा ओकरा दुनू लग मात्र बारह सए रुपैया छलै | ओ दुनू हमरा नहि कहलक जे ओ हमरा ओहे रिस्ट वाच देबअ चाहैत अछि | बस हमरा एतबे कहलक जे ओकरा छह सए रुपैया चाही |
“किएक |”
“ई सरपराईज छैक, बस ई बुझि लिअ जे अहाँक जनमदिनक उपहार आनैक अछि |”
“की आनब |”
“इहे तँ सरपराईज छै, ओ तँ अहाँ देखे कऽ बुझब |”
“अच्छा ! की लेबैक अछि ई छोरु, ई कहुँ अहाँ दुनू अप्पन-अप्पन जनम दिनक की उपहार लेब |”
“किछु नहि “
“तहन तँ हमहूँ अहाँ सभसँ किछु नहि लेब, नहि तँ पहिले ई कहू जे अहाँ दुनूकेँ अप्पन-अप्पन जनम दिनपर की लेबैक मोन होइए |”
“माए बाबूक संगे बाबीक पिआर |”
“मतलब |”
“मतलब बाबीकेँ गामसँ एहिठाम नेने आबू अओर हमरा सभकेँ किछु नहि चाही |”

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