Tuesday, June 11, 2013

रश्ता क्लियर

90. रश्ता क्लियर

कोहबर घरमे बर मुँह लटकेने बैसल अछि ।एक घण्टा . . .दू घण्टा . . .घड़ीक सुइया बढ़ैत-बढ़ैत चारि घण्टा बीत गेल छल ।थाकि-हारि कनियाँ अपनेसँ घोघ उठेलनि ।बरक लटकल मुँह देख कहलनि " अहाँ एना उदास किए छी ?"
"आइ हमर करेजक बुकनी-बुकनी भऽ गेल ।भविष्यक रंगबिरही महल बनैसँ पहिने ढहि गेल ।"
"से किए ?तबियत तँ ठीक अछि ?
"सब किछु ठीक अछि, मुदा हमर प्रेम हारि गेल ।कसैया बाप टाकाक लोभमे अहाँसँ विआह कऽ देलक ।"
" मने अहूँ ककरोसँ पियार करै छी ? "
"अहूँ मने की? की अहूँ ई विआहसँ खुश नै छी ?"
"हँ यौ ।"
"तखन तँ दुनू गोटाक रश्ता क्लियर छै ।काल्हिए दुनू गोटे अपन-अपन पियार लऽग चलि जाएब ।"
" ठीक कहलौं ।हमरा तँ ई समझ नै आबैत अछि जे जखन प्रेम गोबरछत्ता जकाँ समाजमे पसरि गेल छै तखन समज एकरा मोजर किए नै दै छै?"
" ई सब समाजक राजनीति छै ।ओहितो पियार कऽरऽ बलाक रश्ता तँ क्लियर भैये ने जाइ छै ।"

अमित मिश्र

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