Tuesday, June 11, 2013

आधा इज्जत

88. आधा इज्जत

ओकर निर्णय सूनि बिमरियाह माए अवाक् रहि गेली ।केनाहुँतो खाटपर उठि कऽ बैसली ।काँच-कुमारि सोलह वर्षक बेटीकेँ कहलनि "तूँ एहन सोचबो कोना केलें ?ई समाज की कहतौ ? नै, तूँ हमरा जीबैत एहन काज नै कऽ सकै छें ।ई बेज्जती हम नै सहि सकब ।"
बेटी माएकेँ सहारा दऽ खाटपर बैसेलकै फेर माएक नोर पोछैत बाजल " माए, तूँ चिन्ता नै कर ।तोहर इलाज लेल ई कऽरऽ पड़त ।हमरा मातृसेवा कऽरऽ दे ।"
"कोना कऽरऽ दियौ ?तूँ थियेटरमे नाँचबें तँ की इज्जत रहि जेतौ तोहर ?"माए गंगा-यमुना बहा रहल छलीह ।
माएक हाथ अपन हाथमे लैत बेटी बाजल " जँ नै करब तँ पूरा इज्जत निलाम भऽ जाएत ।बिनु बापक बेटीपर कतेको गिद्ध आँखि गड़ेने रहै छै ।थियेटरमे काज केलापर कमसँ कम ककरो छत्रछायामे तँ रहब ।जा धरि मंचपर रहब लोक गलत नजरिसँ देखत ।ओतऽ हमर मजबूरी बुझने बिना लोक आधा इज्जत उतारि सकत, खाली इशारा कऽ, अश्लील बाजि कऽ ।बाहर रहब तँ बहुत आगू धरि निकलि जेतौ तोहर समाज तेँ हमरा जाए दे . . .जाए दे हमरा ।"
माएकेँ बकौर लागि गेल छलै ।मुक भऽ गेल छली ।

अमित मिश्र

No comments:

Post a Comment