Friday, May 24, 2013

न्याय




मुखिया जीक दलानपर भोरे भोरे अन्हरोखे भीर लागल | तीन चारि गोटे एकटा स्त्रीकेँ पकरि कए अनने आ कहैत ई चोरनी अछि | ई चोरनी मुखिया जीक खेतसँ धान काटि कए ल जा रहल छल | सबूतक तौरपर एकटा धानक बोझ सेहो संगे उठा कए अनने | चोरनीकेँ देखैक बास्ते भीर लागल मुदा ओ अधबेसु स्त्री जेकरा की सभ चोरनी कहैत छल अपन नुआंसँ लाजे नीकसँ मुँह झपने |
भीरमे सँ एकटा, “राम राम स्त्री भए कए चोरी |”
दोसर, “देखै की छी एकरा देहपर दू बाल्टी पानि ढारि कए घोरनक छत्ता झारि दियौ |”
तेसर, “ओइ सभसँ किछु नहि होएत, एकर केश काइत मुँह रंगि भरि गाम घुमेएल जए |”
चारीम, “सबसँ पहिले मुँह उघाइर, ई तँ देखल जेए की ई अछिकेँ |”
सभ एक्के संगे, “हाँ हाँ पहिने मुँह तँ उघारु |”
एक गोटा, “चोरी करैत काल लाजे नहि एखन केहन लाजवंती बनल अछि |” ई कहि ओ स्त्रीक दिस बढ़ैक चेष्टामे अछि, ओकर हाथ स्त्रीक मुँहतक पहुंचैऐ बला छल की,
“रुकू !” मुखिया जीक रौबदार आवाज आएल | ओहि व्यक्ति केर डेग आ हाथ दुनू ठामे रूकि गेल | सभ चुप्प | वातावरणमे पीनड्रॉप साइलेंश | मुखियाजी आबि, अप्पन कुर्सीपर बैसैत, “कि भए रहल छै, आ अपने बड्ड पुरुषमान बनै छी ? एकटा स्त्रीक लाज, ओकर मुँह देखैक चेष्टा कए रहल छी | छीः डूबि कए मरि जाउ | एकरामे आ अहाँमे भेदे की रहल | ओनाहितो एकर चोरी करैक कोनो कारण हेतै मुदा अहाँ सभ बिना कारणे एकटा मूकस्त्रीक अपमान करैपर उतारू छी |”
“मालिक ई चोरनी अहाँक खेतसँ धान काइत कए ल जा रहल छल ... ”
मुखियाजी अपन पाँचो आंगुरसँ चूप होबैक संकेत दैत, आगू, “हाँ दाइ, तोरापर लगाएल गेल आरोप सत्य छै की असत्य |”
“मालिक ई गप्प सत्य छै |”
चोरनीकेँ मुँहसँ एतेक सुनति, सभ एकसंगे, “चोरनी चोरनी चोरनी.... एकरा पुलिसकेँ हबाले कए दिअ |”
मुखियाजी जोरसँ, “चूप्प” सभ सकदम आगू, “धान केकर कटलकै, हम्मर की तोहर सभक, मुखिया के हम की दुँ सभ ... तखन एतेक हल्ला किएक | (स्त्रीसँ ) हाँ दाइ, चोरी तँ तुँ अपन स्वीकार केलह, आगू कोनो सफाइ |”
स्त्री, “मालिक, घरबला एक बर्ख पहिले शराब पी-पी कए मरि गेल | घरमे चारिटा छोट छोट बच्चा भूखे, अन्नकेँ एकोटा दाना नहि | ओकरा सभक भूखसँ बिलखैत मुँह नहि देखल गेल तैँ एहन सहाश कएलहुँ |”
सभ सकदम, मुखियोजी चुप | मुखियाजी एकटा नम्हर हुँकार लैत, “हूँऽऽ ठीक छै | तोहर ई पहिल अपराध क्षमा कएल जाइ छ | रामअवतार, (अपन नोकरकेँ अबाज दैत) एकर बच्चा सबकेँ लेल एक मोन धान बोरामे बान्हि दए दहक | आर हाँ ! दाइ तुँ, आगूसँ कहियो भविष्यमे एहन काज नहि करियह | एहिठाम तोहर परिचय गुप्त रहै तैँ कारण हम नाम गाम नहि पूछे छिअ मुदा कखनो भविष्यमे जरूरत परअ तँ (अपन जेबीसँ एकटा दस रुपैयाक नोटपर शाइन कए क दैत ) एकरा दखा कए हमरासँ बेरोक टोक मदत लए सकै छ |”
ई कहि ओ अपन कुर्सीसँ ठार भए गेला |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

No comments:

Post a Comment