Tuesday, May 21, 2013

किछु भऽ जाए विआह करबे करब

विहनि कथा-24
*किछु भऽ जाए विआह करबे करब *

अरे . . .एना जुनि कर . . .खसि पड़बें . . .रे छौड़ा . . .कोठीसँ उतर चोकलेट देबौ . . .रे . . .
आधा घंटासँ झा जीक घरसँ एहने आवाज आबि रहल छलै ।हुनकर पाँच बर्षक बेटा कोनो बातपर रूसि कऽ कोठीपर बैस गेल छलै ।ओकरे उतारबाक प्रयासमे लागल छल झा जीक परिवार ।
"बौआ, की चाही अहाँकें ।हम एखने देब " झा जी बेटाकें पोल्हबैत कहलनि ।
बेटा ठेसगरसँ बाजल "कनियाँ ।"
सबहक होश उड़ि गेलै ।बाबा तमसाइत कहलनि "कनियाँ !ई सब के सिखेलकौ ।"
"आइ मैडम पढ़बै छलखिन जे लड़कीक संख्या तेजीसँ घटि रहल छै।लोक एखने कुमारे जीब रहल छथि ।तखन तँ हमर समयमे एक्को टा नै बचतै ।पापा तँ मम्मी बिना खाइतो नै छथि , हम कोना रहब ।तें किछु भऽ जाए विआह करबे करब ।" पाँच वर्षक नेनक मुँहे ई कटु सत्य सूनि सब सोचमे पड़ि गेलाह ।

अमित मिश्र

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