Friday, May 24, 2013

डेराउन चिन्ता

विहनि कथा-28
डेराउन चिन्ता

बड़की टा हवेलीक बड़का आँगनमे भाए-बहिन खेलैमे व्यस्त अछि ।भाए डकैतक आ बहिन बटोहीक अभिनय कऽ रहल छल ।भाए बहिनकें पकड़ैत बाजल " सुन बटोही, जतेक पाइ, सोना-चानी छौ सबटा निकाल ।नै तँ एतै टपका देबौ ।"
बहिन कानैत बाजल "हमरा लऽग किछु नै छै ।हमरा छोड़ि दे ।"
भाए भरिगर आवाजमे "छोड़ि कोना देबौ ।संगमे नै तँ घरपर हेतौ ।चल घर ओतै दऽ दिहें ।"
बहिन जोरसँ कानैत "नै नै ।हमरा घरोपर तोरा दै बाला किछु नै छै ।धन स्वरूप मात्र माँ-बाबू छथि ।"
भाए बहिनकें छोड़ैत बाजल "दुर, सबसँ पैघ भीखमंगा तूँ छें ।माँ-बाबू लऽ कऽ की हम अचार बनेबै, राख अपने लऽग ।
दुनूक वार्तालाप सूनि बगलमे बैसल माए-बापकें भविष्यक डेराउन चिन्ता धऽ लेलकै ।

अमित मिश्र

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