Wednesday, March 27, 2013

नेनाक सनेस



“साँझकेँ छह बाजि गेलहि एखन धरि बौआ नहि आएल | भगवानपुर बालीक सेहो अता पता नहि | जा कए भगवानपुर बालीक अँगना देखै छी कि भेलहि |” ई द्वंद अछि एक गोट माएक मनक जीनक दस बरखक नेना दिनक एगारह बजे अपन काकी भगवानपुर बालीक संगे काली पूजाक मेला देखै लेल गेल छल मुदा साँझ परि गेला बादो एखन धरि नहि आएल छल | नेनाकेँ अपनासँ दूर केखनो छोरैक लेल ओ तैयार नहि मुदा नेनाक मेला देखैक लौलसाकेँ देखि ओकरा नहि रोकि पएलिह | जँ अपने जाइतथि तँ बोनिक हर्जाना आ ओहिपर सँ बेसी खर्चाक डर सेहो, कोनो ना पच्चीस रुपैयाक इन्तजाम कए नेनाकेँ काकी संगे पठा देने रहथि |
की भेलै किएक देरी भेलहि एहि उधेरबुनमे रहथि की भगवानपुर बालीक शव्द हुनका कानमे कतौसँ परलनि | देखलनि तँ भगवानपुर बालीक आ हुनक नेनाक संगे संग गामक आओर लोकसभ हँसैत बजैत हाथमे माथपर झोड़ा मोटरी नेने आबैत |
माए झटसँ आगू बढ़ि अपन नेना लग जा ओकर दाढ़ी छुबि, “ऐना मुँह किएक सुखएल छौ, किछु खेलएँ पीलएँ नहि? पाइ हएरा गेलौ की ?”
मुदा नेना चूपचाप ठार |
भगवानपुर बाली, “हे बहिन तोहर ई नेना, नेना नै बूढ़बा छौ |”
माए, “किएक की भेलै |”
भगवानपुर बाली, “सगरो मेला घूमक बादो किएक एक्को पाइ खर्च करत, नै खिलौना, नै मिठाइ, नै कोनो खाए पीबक चीज, भरि मेला पाइकेँ मुठ्ठीमे दबने चूपचाप सभ वस्तुकेँ देखैत रहेए |”
माए, “किएक बौआ, किछु खेलएँ पीलएँ किए नै |”
नेना चूपचाप अपन हाथ पाछू केने ठार | माएकेँ चूप भेला बाद अपन हाथकेँ पाछुसँ आगू अनि, हाथमे राखल डिब्बा माएकेँ दैत, “ई”
माए डिब्बाकेँ देख कए, “ई चप्पल, केकरा लेल ?”
नेना, “तोहर लेल, तुँ खाली पेएरे चलैत छलेँ ने |”
माए झट नेनाकेँ अपन करेजसँ लगा सिनेह करैत, “हमर सोन सन नेना, भरि दिन भूखे पियासे अपन सभटा सऽखकेँ मारि कए हमर चिन्ता कएलक, हमरो औरदा लए कऽ जीबए हमर लाल |”   
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 जगदानन्द झा 'मनु'                                                                                                                                

Monday, March 25, 2013

दर्दक खजाना

विहनि कथा- दर्दक खजाना

एकटा वृद्ध पथिक अति व्यस्त सड़कपर डगमगाइत डेगसँ चलैत जा रहल छल ।खन सड़कक कातमे तँ खन माँझमे चलैत, लागैत छल जे सुधि-बुधि हेरा गेल छै ।कतेको गाड़ी बाला ओहि पथिककें बचबैत चलि गेल मुदा एकटा मोटरसाइकिल बाला अपनाकें सम्हारि नै सकलै ।मोटरसाइकिलक अगिला चक्का वृद्ध पथिकक टाँगक मध्यमे सन्हिया गेलै ।एहि टक्करसँ ओ पथिक मुँहे भरे खसल ।मुँह हाथ आ ठेहुनमे बड जोरसँ चोट लागलै आ पथिक अचेत भऽ गेल ।फाटि गेल धोती खूनसँ ललिया गेलै ।मोटरसाइकिल बालाक संग अड़ोस-पड़ोसक लोक दौड़ल आ पथिककें उठा कऽ एकटा दोकानपर राखल बेन्चपर सुता देलकै ।किछु कालक बाद वृद्धकें होश एलै ।होश आबिते ओ जाए लागलै तँ एकटा नवयुवक कहलकै ,"बाबा, कने बिलमि जाउ ।डाँक्टर बाबू आबिते हेथिन्ह ।कमसँ कम पेन किलर तँ लऽ लिअ ।बड दर्द होइत हएत ।"

ई सुनिते पथिक घूरि गेल आ नवयुवक लऽग आबि शान्त स्वरमे बाजल, "बौआ, हमर अपन बेटा-पुतौह हमरा बोझ बूझि हमरे घरसँ निकालि कऽ जे दर्द देलक, ओहि दर्द लऽग ई दर्द पासङगो बराबर नै छै ।"

एहिसँ पहिने कि किओ किछु बाजितै ओ वृद्ध पथिक ईनाम भेटल दर्दक खजाना समेटने भीड़मे हेरा गेल ।

अमित मिश्र

अंग्रेज नेना

अंग्रेज नेना

दस वर्षक बाद श्याम बाबू गाम आएल छलाह । इंजीनियर बनलाक बाद दिल्लीएमे अपार्टमेण्ट कीन ओतै बसि गेल छलखिन ।10 वर्ष पहिने, जखन विआह ठीक भेल छलन्हि तखन गाम आएल छलाह ।दुनू प्राणी एक्के पेशामे तें बजारे बसनाइ नीक बुझेलन्हि ।मुदा आब माए अंतीम साँस लऽ रहल छन्हि तें कनियाँ आ बेटाक मोन नै रहितो, आबऽ पड़लनि ।गाम एलापर टोलक दोस्त-महिम सब भेंट करऽ आबऽ लागलनि ।एक दिन हुनक बेटाकें देख बुचनू कक्का पुछलन्हि ,"बौआ, अपनेक शुभ नाम की अछि ?"

6 वर्षक नेना बुचनू कक्काक नंग-धरंग देहपर गोबर लाग आ हाथमे छीट्टा देखैत बाजल,"ह्वाट आर यू टेलिंग, पूअर भिलेजर, आइ विल नाँट टाक विद यू ।"

बुचनू कक्काकें समझमे किछु नै एलै मुदा बूझि गेलखिन जे नेना इंग्लिस बाजै छै ,हुनका बड छगुन्ता भेलै ।मोने- मोन सोचऽ लागलाह जे श्याम बाबू मैथिल छथि, कनियों मैथिलानी छथिन्ह, तखन हुनकर अंशसँ कोना जनमि गेलै अंग्रेज नेना ।

अमित मिश्र

Friday, March 15, 2013

बाबाक हाथी


दिल्लीक कनाट प्लेशक प्रशिद्ध कॉफी हॉउसक आँगन | लूकझिक साँझ मुदा महानगरीय बिजलीक दूधसन इजोतसँ कॉफी हॉउसक आँगन चमचमाइत | एकटा गोल टेबुलक चारू कात रखल चारिटा कुर्सीमे सँ तीनटापर ’, ‘बैसल गप्प करैत संगे कॉफीक चुस्कीक आनन्द सेहो लैत |
केँ बिचक बात-चितमे गरमाहट आबि गेलै | ‘’, “रहए दियौ अहाँक बूते नहि होएत |”
’, “हाँ ई की कहलीयै हमरा बूते नहि  होएत, अहाँ बुझिते कि छियै हमरा बारेमे |”
’, “हम अहाँक बारेमे बेसी नहि बुझै छी परञ्च ई नै .......
’, “हे आगु जुनि किछु बाजु, अहाँकेँ नहि बुझल जे अहाँक सोंझा के बैसल अछि ? हमर बाबाकेँ नअटा बखाड़ी रहनि, दलानपर सदिखन एकटा हाथी बान्हल रहैत छलनि | हमर परबाबाकेँ चालीस गामक मौजे छलनि | हमर मामा एखनो बिहारक राजदरवारमे तैनात छथि | हम स्वम एहिठाम योगाक क्लास राष्टपतिकेँ दै छीयनि |”
क गप्प बहुते देरीसँ चुपचाप सुनैत अपन कॉफीक घूंट खत्म कएला बाद खाली कपकेँ टेबुलपर रखैत, “यौ हम आब चली, अहाँक दुनूकेँ हाइक्लासक गप्प हमरा नहि पचि रहल अछि, हम तँ बस एतबे बुझै छी जे हमर अहाँक बाबू-बाबा आ स्वयं हमरा सभमे एतेक बूता होइत तँ हम सभ एना दिल्लीमे १५-२० हजारक नोकरी कए कआ भराक मकानमे जीवन बिता कए अपन-अपन जिनगीकेँ नरकमय नहि बनाबितहुँ | ओनाहितो आजुक समयमे हाथी भिखमंगा रखै छैक आ दोसर राजमे पेट ओ पोसैत अछि जेकरा अपन घरमे पेट नहि भरि रहल छैक |”
केँ एकटुक तित मुदा सत्य गप्प सुनि दुनूक मुँह चूप | ‘सेहो ई गप्प बजैत हिलैत डुलैत निसाक सरूरमे ओतएसँ बिदा भए गेल | मुदा ओकर बगलक टेबुलपर बैसल हमरा केँ ई गप्प सए टका सत्य लागल |   
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जगदानन्द झा मनु’                                                               

Friday, March 1, 2013

आस्था


डोकहर राजराजेश्वर गौरी शंकरक प्राचीन आ प्रशिद्ध मंदिर | मंदिरक मुख्यद्वारकेँ आगू एकगोट अस्सी-पच्चासी बरखक वृद्धा, सोन सन उज्जर केश, शरीरक नामपर हड्डीक ढांचा, डाँर झुकि गेल | मुख्यद्वारक आँगाक धरतीकेँ बाहरनिसँ पएर तक झुकि कए बहारैत |
‘अ’ आ ‘ब’ दुनू परम मित्र, एक दोसरक गुण दोषसँ परिचीत, दुनू संगे मंदिरक आँगासँ कतौसँ कतौ जा रहल छलथि | मंदिरक सोंझाँ अबिते देरी ‘अ’ दुनू हाथ जोड़ि प्रणाम कएलनि | ‘ब’ सेहो तुरंते दुनू हाथ जोड़ि, झुकि कए मोने-मोन स्तुति करैत ओतुका धरतीकेँ छुबि माँथसँ लगा ओहि ठामसँ आगू बिदा भेला |
ओतएसँ दस डेग आगू गेलाक बाद ‘ब’, ‘अ’सँ – “हे यौ अहाँ कहियासँ एतेक आस्तिक भऽ गेलहुँ, जे मंदिरक सामने जाइत मातर कल जोड़ि लेलहुँ ओहो हमरासँ पहिले |” आगू आरो चुटकी लैत – “भगवानो देख कए हँसैत हेता जे देखू ई महापातकी आइ आस्तिक भऽ गेल |”
‘अ’ शांतिकेँ तोरैत – “पहिले तँ ई अहाँकेँ के कहि देलक जे हम नास्तिक छी, हमहूँ आस्तिक छी, हमहूँ देवता पितरकेँ मानैत छी परञ्च अहाँक जकाँ पाखण्डी नै छी |  अंतर एतवे अछि जे अहाँ मंदिर मंदिर भगवानकेँ तकैत रहै छी, हम हुनका अपन मोनमे तकैत छी आ अपन करेजामे बसेने छी | आ रहल एखनका गप जे हम मंदिरकेँ सामने हाथ जोड़लहुँ, ओ तँ हम सदिखन अपन मोनमे बसेने हुनका हाथ जोड़ैत रहैत छी मुदा एखुनका हाथ जोड़ब हमर भगवानकेँ नहि, भगवानक ओहि भक्तकेँ छल, ओहि बृद्धाकेँ जिनक बएसकेँ कारने डाँर झुकि गेल रहनि मुदा एतेक अवस्थोमे भगवानक प्रति एतेक अपार श्रधा भक्ति, कतेक प्रेमसँ मंदिरक मुख्यद्वार बहारि रहल छली | हम ओहि भक्तक भक्तिकेँ, हुनक भगवानक प्रति आस्थाकेँ, हुनक बएसकेँ नमन केने रही |”     
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जगदानन्द झा ‘मनु’