Thursday, January 24, 2013

जुग-जुग जीबए...


“एखन ओ कतए अछि, कोना अछि, की करैत अछि, हमरा किछु पता नै, बस एतबेए बुझल अछि जे आइ ओकर जन्म दिन छैक |”
पचपन बर्खक, उज्जर सारीमे लपटल बूढ़ बिधबा माएक दिमागक ई गप्प | एककेँ बाद एक खोल हुनक इआदक केथरीसँ निकैल-निकैल कए इन्द्रधनुषी आकाशमे हिलकोर मारि रहल छल | बैसल, हुनक सामने माटिक एकचूल्हीयापर चढ़ल भातक हाँड़ीसँ बरकैकेँ खड़-खड़-खड़केँ अबाज आबि रहल छल | भात जड़ि कए कोयला भऽ गेल रहति जँ चेराक आँच अपने जड़ैत-जड़ैत चूल्हासँ निकैल कए बाहर नहि जड़ए लगितै |
“पन्द्रह बर्ख पहिने कहि गेल दिल्ली जाइ छी, खूब पाइ कमाएब | नीक घर बनाएब | तोरा नीक नीक सारी कीन कऽ आनि देबौ | बाबूक लेल सुन्नर साईकिल कीनब | मुदा ! सभ बिसैर गेल | शुरू-शुरूमे दू-तिन मासपर चिठ्ठीयो आबेए, छह महिना बरखपर किछु पाइयो आबेए मुदा बादमे सभ बन्द | कोनो खोज खबरे नै | ओकर गेलाक छह बरखक बाद बलचनमा मुँहे सुनलहुँ जे ओ दिल्ली बाली मेमसँ बियाह कए लेलक | आर कोनो समाद नाहि | बापोकेँ मुइला आइ पाँच बरख भऽ गेलन्हि, ओइहोमे नहि आएल | ओकरा तँ बापक दिया बुझलो हेतै की नै---- | आइ ओकर जन्म दिन छैक, लऽगमे रहैत तँ बड्ड रास आशीर्वाद दैतियैक मुदा दूरे बड्ड अछि | जतए अछि खुश रहेए.... जुग-जुग जीबए... हमर लाल |”   

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जगदानन्द झा ‘मनु’        

Wednesday, January 2, 2013

समय चक्र


किशुनक विशाल ड्राइंग रूम । तीन बीएचके फ्लेटमे आलीशान 250 वर्गफूटक हॉल नूमा ड्राइंग रूम ओहिमे 48 इंचक सोनीक एलसीडी  टीवी लागल । डीस टीवी, म्यूजिक प्लेयर, फर्सपर जड़ीदार लाल रंगक विदेशी  क़ालीन । दवाल सभपर मनभावन मधुबनी पेंटिंग घरक सोभामे चारि चान लगाबैत । मोट- मोट गद्दाक बनल मखमली सोफा सेट, ओहिपर किशुनक मामा-मामी ओकर वेसबरीसँ बाट जोहैत, जे कखन ओ आएत आ ओकरासँ दूटा गप्प कए अपन समस्याक समाधन करी । हुनक दुनू प्राणीक  दू घंटाक प्रतीक्षा बाद किशुन, बोगला सन उज्जर चमचमाइत  बरका कारसँ आएल । घरक डोरवेल बजेलक घर खुजल । भीतर प्रवेश कएलक । भीतर पएर धरैत देरी ओकर नजैर अपन मामा- मामीपर परलैक । तुरन्त आगू बढ़ि हुनकर दुनू पएर छुबि आशीर्वाद लेलक । हाल समाचार पुछैत अपनो एकटा सोफापर बैसैत - "कएखन एलीऐ" ।
मामी - "इहे करीब दू घंटा भएले" ।
किशुन अप्पन कनियाँकेँ आवाज़ दैत - "यै, सुनैछीयै ! किछु चाह पानि नास्ता देलियैन्हेकी" ।
मामा - "ओसभ भए गेलै, बस अहाँसँ किछु जरूरी गप्प करैक  छल" ।
किशुन - "हाँ हाँ कहु ने, हमर सोभाग्य जे अपनेक किछु सेबाक मोंका भेटत" ।
मामा कनखीसँ इसारा कए मामीक दिस देखलाह, आ ओकर बाद मामी - " बौआ ! अहाँ तँ सभटा बुझिते छियै जे मामाक नोकरीक आइ- काल्हि की दशा छनि । कएखनो छनि तँ कएखनो नहि । रहलो उत्तर ई सात- आठ हजार रुपैया महिनाक नोकरीसँ की है छैक ...... (कनी काल चूप, आगू  सोचैत ) अहाँकेँ तँ बुझले अछि, बरुण आइ आइ टीक प्रवेश परीक्षा पास कए लेलक । आब ओकर एडमिशनकेँ आ किताब आदी लेल दू लाख रुपैया चाहीऐ । हिनका अपना लग तँ एको रुपैया नहि छनि, आ अहाँ तँ बुझिते छियै दियाद बाद कएकराकेँ दै छैक । बहुत आशा लए कए अहाँ लग एलहुँहेँ , अहाँ किछु रुपैयाक व्यवस्था कए देबै तँ छौड़ाक जिनगी बनि जेतै" ।  
सभ चूप्प । पिन ड्राप सैलेन्श । किशुन अपन आँखिसँ चश्मा निकालि दुनू आँखिक कोन कए सभसँ नूका कए पोछ्लक । कियो ओकर आँखिक कोनसँ खसैत नोरकेँ नहि देखने हेतै मुदा ओकर दुनू आँखिक कोनसँ नोरक दू दू टा मोती सरैक कए ओकर रुमालमे हड़ा गेलै । पुनः अपन चश्मा पहिरलक आ अपन आँखिक नोरक पाँछाँ करैत बीस बर्ख पाछू चलि गेल ।
जखन किशुनक माए बाबू आ मामा मामी एके झोपड़पट्टीक एके गलीमे रहैत छला । एक दिन ! महिनाक अन्त तक ओकर बाबूक हाथ खाली भए जेबाक कारण घरमे अन्नक अभाबे ओ अपन माएकेँ कहलापर एहि मामीसँ जा कहने रहनि दू सेर चौर देबएक लेल । मामी चौर तँ देलखिन मुदा ओहिसँ पहिने ठोर चिब्बैत कहने रहथिन - " की बाप पाइ नहि दए क गेलाह, एहिठाम कोन बखाड़ी  लागल छैक " ।
ओ गप्प किशन आइ तक नहि बिसरल । आ ओकर आँखिक नोरक कारण इहे गप्प छल । ओहि  गप्पक कारणे आइ ओ झोपरपट्टीसँ निकैल एकटा नव दुनियाँमे पएर रखलक । पुनः अपनाकेँ वर्तमानमे आनैत किशन चट्टे अपन कोटक जेबीसँ चैक बुक निकालि, ओहिपर दू लाख रुपैया भरि मामाक दिस बढ़ेलक ।
मामा चैक लैत - "बौआ अहाँक ई उपकार हम कहियो नहि बिसरब, एखन तँ नहि चारि वर्खक बाद वरुणक नोकरी लगलापर सभसँ पहिने अहींक पाइ वापस करत" ।
किशन - "की मामा अहुँ लज्जित करै छी ई सभ कएकर छैक, की वरुण हमर भाइ नहि अछि । ई हमरा दिससँ एकटा छोट भेंट अछि । एकर चिंता अहाँ नहि करब ।
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जगदानन्द झा 'मनु'