Friday, December 28, 2012

लाशसँ भरल ट्रेन



दिल्लीसँ चलल ट्रेन । सेकेंड क्लास स्लीपर आरक्षित डिब्बा । ठसाठस भीड़सँ  भरल डिब्बा सभ । एकटा डिब्बाक एक हिस्सामे; तीन व्यक्तिक सीटपर एक पुरुष हुनक स्त्री आ तीनटा  सँ १२ बर्खक बच्चा,  अर्थात कुल पाँच गोटे बैसल । ई  परिवार दिल्लीएसँ आबि रहल छलथि । हुनकर सभक सामनेक सीटपर सेहो पाँच व्यक्ति बैसल आ करीब-करीब सम्पूर्ण डिब्बाक कही तँ  सम्पूर्ण ट्रेनक एहने हाल । नाम मात्रक आरक्षित डिब्बा, हालत जेनरलोसँ बत्तर ।
अपन लक्ष्यक पाँछा करैत ट्रेन बिहारक सीमामे प्रवेश कएलक । ट्रेन बक्सर स्टेशनपर रुकल । तीनटा, २४-२५  सँ ३० बर्खक बिचक बलिस्ट युवक एके संगे भीड़केँ चिड़ैत जबड़दस्ती डिब्बामे प्रवेश कएलक । ओ तीनू सभकेँ ठेलैत धकलैत आगू बढ़ि ओतए जा कए ठार भेल जतए दिल्लीसँ चढ़ल परिवार बैसल छल । ओ तीनू अपनामे हा-हा-ही-ही ठठ्ठा करैत ओतेकदूरक वातावरणकेँ अभद्र बना देलक । ओतबोपर नहि माइन तीनूकेँ तीनू सिगरेट निकाइल कए ओकर नम्हर - नम्हर कश मारै लागल । तीनूक विषाक्त गप्पेकेँ पचेनाइ मुश्किल भए रहल छल ओहिपर आब सिगरेटक लछेएदार धुवाँक जहर, असहनीय होएत । दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष विनम्र भए बजलनि, "भाइ साहब, सिगरेट बंद करू, एहिठाम स्त्री धिया-पुता सभ छैक एकर  धुवाँ सहनाइ असहनीय s रहल अछि ।"
तीनू उदण्डमे सँ एकटा, "अरे वाह ! सिगरेट हमर, पाइ हमर, मुँह हमर तेँ हम सभ किएक नहि पीबू ?"
दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष, "मुदा हमरा सभकेँ असुबिधा भs रहल अछि ।"
 "
असुबिधा, बेसी असुबिधा अछि तँ अहीँ सभ दोसर डिब्बामे चलि जाउ ।"
 "
हम सभ दोसर डिब्बामे किएक चलि जाउ,  हमरा सभ लग रिजर्वेशन अछि, बिना रिजर्वेशनक तँ अहाँ सभ छी ओहूपर अनैतिक काज कए रहल छी । ट्रेनमे बीड़ी सिगरेट पीनाइ अपराध छैक ।"
 "
अरे वाह ! अपने तँ उकील साब छी (दुनू हाथ जोरैत ) धन्य छी उकीलसाब, अपराध ! हा हा हा .... अपराध ई कोन अपराध भेलैह, अपराध होएत जखन अहाँक सुन्नर कनियाँकेँ लs कए भागि जाइ ।"
एतबा कहैत तीनूकेँ तीनू भीतर आगू बढ़क प्रयास कएलक आ एहि प्रयासमे किछु  धक्का-मुक्की सेहो भेलै । तीनू आगू बढ़ि मर्यादाक सीमासँ बाहर बढ़ैए बला छल की रेलवे पुलिसक दूटा जवान कन्हापर बन्दूक रखने गस्त लगबैत ओहि डिब्बामे आएल । ओकरा देखते मातर तीनू ओहिठामसँ लंकलागि कए भागि गेल ।
मुदा ओहि डिब्बाक ठसाठस भरल भीड़मेसँ केकरो सहास नहि भेलै जे मात्र तीन गोट कपाटक मनुखसँ बाजि लड़ि कए एकटा नीक परिवार, जेकरा संगे की करीब १७-१८  घंटा पाछूसँ यात्रा कए रहल छल रक्षा करी । आ ओ सहास हेतैक कोना । कियो जीबित होए तहन ने । सभ के सभ लाश अछि । एहन लाश जे अखबार पढ़ैत अछि, समाचार सुनैत अछि, यात्रा करैत अछि मुदा कोनो अनैतिक बातक पाँछा आबाज नै उठाबैत अछि ।

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जगदानन्द झा 'मनु'

Wednesday, December 12, 2012

हाउ(मुखौटा)

विहनि कथा-हाउ(मुखौटा)

मनोहर बाबूकेँ के नै चिन्है छै?समाजकेँ दहेज मुक्त करबाक संकल्प लेने छथि मनोहर बाबू ।कतेको बेर ,कतेको मंचसँ दहेजक विरोधमे भाषण देने छथि ।दहेज लेनाइ-देनाइकेँ सबसँ पैघ पाप बुझै छथि ।

आइ इलाका भरिमे हुनक नामक चर्चा छै ।जनताक नजरि हुनक जेठ बेटाक विआहक कार्डपर छै । कार्डपर की रहतै ,ओहिपर छपल एकटा पाँतिपर टकटकी लगेने छै लोक ।जे पाँति छल "ई विआह दहेजक दानवी क्रियाकलापसँ कोसों दूर अछ
ि ।"

मनोहर बाबूक घरपर कऽर-कुटुमक भीड़ जुटल छै आ मनोहर बाबू दुनू प्राणी एकटा घरमे बतियाइत छथि ।

मनोहर बाबू-"इ विआह आइ हेबाक अछि मुदा लागि रहल छै जे नै हएत ।"

पत्नी-"से किएक ? विआह किए नै हेतै?"

मनोहर बाबू-"साँझक चारि बाजि गेलै मुदा तीलकक 12 लाखमेसँ 50 हजार टाका एखनो बाँकिए अछि ।"

अमित मिश्र

-हाउ(मुखौटा)

विहनि कथा-12-हाउ(मुखौटा)

मनोहर बाबूकेँ के नै चिन्है छै?समाजकेँ दहेज मुक्त करबाक संकल्प लेने छथि मनोहर बाबू ।कतेको बेर ,कतेको मंचसँ दहेजक विरोधमे भाषण देने छथि ।दहेज लेनाइ-देनाइकेँ सबसँ पैघ पाप बुझै छथि ।

आइ इलाका भरिमे हुनक नामक चर्चा छै ।जनताक नजरि हुनक जेठ बेटाक विआहक कार्डपर छै । कार्डपर की रहतै ,ओहिपर छपल एकटा पाँतिपर टकटकी लगेने छै लोक ।जे पाँति छल "ई विआह दहेजक दानवी क्रियाकलापसँ कोसों दूर अछ
ि ।"

मनोहर बाबूक घरपर कऽर-कुटुमक भीड़ जुटल छै आ मनोहर बाबू दुनू प्राणी एकटा घरमे बतियाइत छथि ।

मनोहर बाबू-"इ विआह आइ हेबाक अछि मुदा लागि रहल छै जे नै हएत ।"

पत्नी-"से किएक ? विआह किए नै हेतै?"

मनोहर बाबू-"साँझक चारि बाजि गेलै मुदा तीलकक 12 लाखमेसँ 50 हजार टाका एखनो बाँकिए अछि ।"

अमित मिश्र

Sunday, December 9, 2012

सभसँ प्रिय बस्तु



दादाजी दिन भरिकेँ थाकल झमारल  घरमे अबैत  छथि । हुनका बैसति देरी दादीक तेज स्वर गुइज उठै छनि,  " आबि गेलहुँ दिन भरि बौवा कए । ई जे दिन भरि छिछियाइत रहै छी से एहि मिथिला मैथिलीसँ की घरक चूल्हो जड़त ।"
दादाजी शांत गंभीर होइत,  "चूल्हा तँ नहि जड़त मुदा हमर सभ्यता संस्कृति हमर माएक भाषा जे हमर सभक हाथसँ छूति रहल अछि एनाहिते छुटैत रहल तँ एक दिन लोप भए जाएत आ एहन अवस्थामे कि जरुड़ी अछि ? घरक चूल्हा जड़ेनाइ की अपन माति पानि सभ्यता आ सरोस्वतीक कंठसँ निकलल मैथिलीक मिझएल आगिकेँ जड़ा कए प्रचंड केनाइ ।"
दादीजी हुनकर गप्प सुनि चुप्प । ओ शाइद सभ्यता संस्कृति माएक भाषा माति पानि एहेन भारी भारी  शव्दक कोनो अर्थ नहि बूझि पएलि मुदा दादाजीक छोड़ैत साँससँ एतेक  तँ अबस्य बूझि गेलि जे हुनकासँ  हुनक कोनो सभसँ प्रिय बस्तु दूर भए रहल छ्लनि ।