Tuesday, July 3, 2012

रहस्य



बाबा-बाबीक विवाहक चालीसम बर्खगांठ | दुनू गोटे अपन सम्पूर्ण परिवारक बिच घेरएल  बैसल | चारूकात एकटा खुशीक वातावरण बनल | सभकेँ मुँहपर हँसी आ प्रशन्ता झलकि रहल छल | बाबीक पंद्रह बरखक पोती, बाबीक गरदनिपर पाछूसँ लटकि कए झुलति पुछलक,  "बाबी एकटा गप्प पुछू |'
बाबी,  " हाँ पूछै"
पोती, "बाबा-बाबी हम अहाँ दुनूकेँ कहियो झगडा करति नहि देखलहुँ, एकर की रहस्य छैक |"
बाबी लजाइत अपन पोतीकेँ कन्हासँ उतारैत, "चल पगली, एकरा ई की फुरा गेलै |"
बाबीक छोटका बेटा, "नहि माए ई तँ  हमरो बुझैक अछि, ओनाहितो हमर नव-नव ब्याह भेलए ई मन्त्र तँ चाहबे करी |"
बाबी, " चल निर्लज, सब एक्के रंगक भए गेलै, अपन बाबूसँ पूछै हुनका सब बुझल छनि |"
छोटका बेटा बाबूसँ , "हाँ बाबू अहीँ कहु न अपन सफल विवाहिक जीवनक रहस्य | हमहूँ अहाँ दुनूमे  कहियो झगड़ा नहि देखलहुँ, ई मन्त्र हमरो दिअ  न ' ( अपन कनियाँ दिस देख कए) देखू ने निर्मल तँ  सदिखन हमरासँ लड़िते रहैत अछि |"
बाबा, एकटा बड्डकाटा साँस लैत जेना अतीतकेँ देखैक प्रयास कए रहल छथि | छोटकाकेँ माथपर सिनेहसँ हाथ फेरैत  बजला, "एकरा कियो झगडा कहैत छैक ? अहाँ दुनूमे जे सिनेह अछि ओहिमे किछु नोक-झोंक भेनाइ  सेहो आवश्यक छैक | जेना भोजनमे चटनी, जीवनमे सब पक्षक अपन-अपन महत्व छैक मुदा हाँ ई मात्र नोक-झोंक तक रहवा चाहि झगडा नहि, नहि तँ  एहिसँ आगू जीवन नर्क भए जाइत छैक | पती पत्नीक  बिचक आपसी सम्बन्ध नीक अछि तँ  स्वर्गक कोनो जरुरी नहि आ यदि सम्बन्ध नीक नहि अछि तँ  नर्कक कोनो आवश्यकता नहि ओहि अवस्थामे ई जीवने नर्क अछि |"
सभ कियो एकदम चूप एकाग्रतासँ हुनक गप्प सुनैत | चुप्पीकेँ तोड़ैत  बाबा आगू बजलाह,  "रहल हमर आ तोहर माएकेँ बिचक सम्बन्ध तँ  ई बहुत पुरान गप्प छैक, जखन हमर दुनूकेँ ब्याह भेल आ हम दुनू एक दोसरकेँ पहिल बेर देखलहुँ तखने हम तोहर माएसँ वचन लेलहुँ जे जखन हमर मोन तमसेए  तँ  ओ नहि तमसेती आ जखन हुनकर मोन तमसेतनि तखन हम नहि तमसाएब | बस ओ दिन आ आइ  धरि  हमरा दुनूकेँ बिच नोक-झोंक भेल झगडा कहियो  नहि |"
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जगदानन्द झा 'मनु'
    

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