Sunday, May 6, 2012

कुसि‍यारक मारि‍ -उमेश मंडल




चैत मास। तीनू गोटे सखरा जाइत रही। तीनू गोटे बच्‍चेक संगी मुदा तीन जाति‍क छी। एक सि‍ंहजी दोसर रायजी तेसर अपने। तीख रौद मुदा पूर्वा सह दैत। रास्‍ता कातेमे कुसि‍यारक खेत। डमहाएल कुसि‍यार रससँ तड़तड़ करैत। पि‍यासो लगि‍ गेल रहए। कुसि‍यार देख मोन डोलि‍ गेल। हुनका दुनू गोटेकेँ कहलि‍यनि‍ एक छड़ कुसि‍यार खाइक मोन होइए। मन हुनको दुनू गोटेकेँ रहनि‍ मुदा आगू भऽ कऽ बजलौं हमहीं। तीन छड़ कुसि‍यार तोड़ैक सहमति‍ भऽ गेल। एक तँ जुआन दोसर तीन गोटे छी। असगर दुसगर बगबार रोकत तँ मारि‍यो खएत। तीनू गोटे तीन छड़ तोड़ि‍ लेलौं।

शुरूमे जँ बुझि‍ति‍ऐ जे असगरोमे तागत होइ छै तँ एहन काजे नै करि‍तौं। पछाति‍ बुझलि‍ऐ। कुसि‍यारक खेतसँ नि‍कलि‍ते रही आकि‍ बगबार आबि‍ कऽ आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। हि‍यौलक मुदा बाजल कि‍छु नै। रस्‍तापर आबि‍ गाछक छाहरि‍मे तीनू गोटे कुसि‍यार खाए लगलौं। बगबारो आबि‍, कनी हटि‍ कऽ ठाढ़ भऽ सि‍ंहजीकेँ इशारा देलक‍। कुसि‍यार खाइते सि‍ंहजीक कानमे फुसफुसा कऽ कि‍दैन कहि‍ देलक। तहि‍ना राइयोजीकेँ केलक। हम असगरे छुटि‍ गेलौं। सनकल आबि‍ कुसि‍यार छीनि‍ पच्‍चीस कुसि‍यार मारलक आ पचास बेर कान पकड़ि‍ कऽ उठौलक बैसौलक। माइरि‍क चोट ओते नै लागल जेतैक संगीक कि‍रदानी। रूष्‍ट भऽ असगरे वि‍दा भऽ गेलौं। थोड़े आगू बढ़ि‍ पाछू घुरि‍ तकलौं तँ रायजीक उपरमे तड़ातड़ि‍ कुसि‍यार बरि‍सति‍ देखलि‍ऐ।
हमर मारि‍ तँ सभ देखनहि‍ छल। तँए कहैक जरूरते नै मुदा रायजीक मारि‍ तँ हम नहि‍ देखने। कनैत देख पुछलि‍यनि‍- “भाय, कि‍अए ठुनकै छी?”
मुदा तैयो सोझ डारि‍ये नै चि‍क्कारि‍येमे कहलनि‍- “जएह गति‍ अहाँक सएह अपनो।”
एते गप होइते छल आकि‍ फटाक-फटाकक अबाज हुअए लगल। सि‍ंहजी आ बगबारो गाड़ि‍ गड़ौबलि‍ आ ललका-लककी सेहो करैत छल। हम दुनू गोटे वामा कानक बगलमे हाथ लगा ठीकसँ सुनए लगलौं। गाड़ि‍ पढ़ि‍ बगबार बाजल- “बापेक खेत छलह?”
सि‍ंहजी जबाब देलखि‍न- “जेकरा बात नै ओकरा बाप नै। मुँह चुकरि‍यबैत की बाजल रहह?”

जहि‍ना मारि‍ खेलापर चोट लागल रहए आ दुखी भेल छलौं तहि‍ना सबहक देख कऽ खुशि‍यो भेल। हँसी-मजाक करैत तीनू गोरे सखरा भगवतीक दर्शन कऽ घुमलौं। 

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