Thursday, May 17, 2012

एक करोड़क दहेज


संजना आ संजयकेँ ब्याहक तैयारीमे जोर-सोरसँ संजनाक  बाबूजी  आ हुनक सभ परिबार तन-मन-धनसँ लागल संजना आ संजय दुनू  एक्के संगे मेडिकलमे पढ़ै छल ओहि बिच दुनूमे पिआर भेलै आ आब सभक बिचारसँ ब्याह भए  रहल छैक । चूकी संजयकेँ  पिताजी अप्पन  ऑफिसक काजसँ युएसए गेल रहथि आ एहि ठाम हुनक सभटा काज हुनक छोट भेए  अर्थात संजयकेँ कक्का कएलनि
आब  काइल्ह ब्याह तँ  आइ  गाम एलथि  गाम परहक सभ तैयारी देख ओ प्रशन्न भेला बाते बातमे हुनका ज्ञात भेलनि जे कन्यागत दिससँ पंद्रह लाख रुपैया दहेज सेहो संजयकेँ  कक्का ठीक  केने छथि आ कन्यागत देबैक लेल सेहो मानि गेल छथि मानितथिन  किएक नहि उच्च कुल-खनदान, वर डॉक्टर,वरक बाबू बड्डका डॉक्टर, गाममे सए  बीघा खेत, बेनीपट्टीमे शहरक बीचो-बिच चारि बीघाक घड़ाड़ी 
मुदा  संजयक बाबूकेँ ई बातसँ किएक नहि जानि खुशी  नहि भेलन्हि  ओ तुरंत ड्रायबरकेँ  कहि गाड़ी निकलबा कन्यागत ओहिठाम पहुँचलाह काइल्ह ब्याह आ आइ  वरक बाबू उपस्थीत, मोनक संकाकेँ  नुकबैत कन्यागत दिससँ कन्याँक बाबू सहीत सभ दासोदास उपस्थीत पानि, चाह शरबत, नास्ता, पंखा सभ  प्रस्तुत कएल गेल संजयक बाबू ओहि  सभकेँ  नकारैत दू टूक बात संजनाक बाबूसँ बजलाह,  " समधि कनी हमरा अपनेसँ एकांतमे गप्प करैक अछि "
हुनक  संकेत पाबि सभ गोते ओहि ठामसँ हटि गेलाह, मुदा सभक मोनमे अंदेसा भरल, कतेको गोटा दलानक कोंटासँ सुनैक चेष्टामे सेहो सभकेँ गेला बाद संजयक बाबू संजनाक बाबूसँ,  "समधि ! हम तँ  एखने दू घंटा पहिने युएसएसँ एलहुँ क्षमा करब पहिने समाय नहि निकालि पएलहुँ, मुदा ई की सुनलहुँ अपने पन्द्रह लाख रुपैया दहेजमे दए  रहल छी "
संजनाक बाबू  दुनू  हाथ जोरने,  "हाँ समधि जतेक अपनेक सभक मांग रहनि हम अबस्य पूरा करबनि "
संजयक बाबू,  "जखन मांगेक गप्प छैक तँ  हमरा एक करोड़  रुपैया चाही "
सुनिते संजनाक बाबूक आँखिक आँगा अन्हार भए  गेलनि, आ आनो जे सुनलक सेहो दांते आँगुर कटलक संजनाक बाबू पुर्बबत दुनू हाथ जोड़ने,  "एहेन बात नहि कहु समधि पंद्रह लाख जोड़ैमे तँ  असमर्थ छलहुँ आ ई एक करोड़ तँ  हम अपनों बीका कए  नहि आनि सकै छी |"
कहैत निचा झुकलनि शाइद संजयक बाबूक पएर छुबैक चेष्टामे मुदा निचा झुकैसँ पहिले संजयक बाबू हुनका उठा अपन करेजासँ लगा,  "ई की पाप दए  रहल छी, पएर तँ  हमरा अपनेक पकरबा चाही जे अपने अपन बेटी दए रहल छी  आ रहल पाइ  तँ  हमरा एक्को रुपैया नहि चाही भगबानक कृपासँ हुनक देल सभ किछु अछि रहल एक करोड़क बात तकरा क्षमा करब ओ छ्नीक ठीठोली छल, जखन मांगने पंद्रह लाख भेटत तँ  एक करोड़ किएक नहि जे आगू  कोनो काजो नहि कर परेए आ की अपनेक बेटी आ हमर पुतौह एक करोड़सँ कमकेँ छथि हा हा हा .... ।“ 
एका एक चारू कात नोराएल आँखिसँ ड़बड़बेल खुशीक ठहाका पसरए लागल   
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जगदानन्द झा 'मनु'

Tuesday, May 15, 2012

अन्ध विश्वास- सन्दीप कुमार साफी


-काकी गोर लगै छियनि, बैसथु।
-के, उड़ीसावाली कनियाँ।
-हँ काकी, निके रहै छथि।
-की ठीक रहब कनियाँ, तैयो ठीक छी। बुढ़-पुरान भेलौं, हमरा सभकेँ तँ पुरबा हवा जान लेबऽ लगैए। सौँसे डाँर ठेहुन बातरससँ कनकनाइए। कोनो दवाइ नै काज करैए।
-आबथि, बैसथु। एक तँ कतेक दिन पर भेँट भेलथियऽ।
-नै कनियाँ। आँगनमे बड्ड काज छै। आइँ यै कनियाँ, भुखनो बच्चा आएल अछि?
-हँ काकी, मरनीक बाबुओ एलखिन।
-कनियाँ बच्चा सभ सेहो एल्न्हि।
-नै काकी। अखैन बच्चा सभक गरमीक परीक्षा चलै छै, तहि दुआरे ओकरा सभकेँ नै अनलिऐ। आब गर्मी छुट्टीमे सभ आम लिच्ची खाइ लए अबै छन्हि।
-आँइ यै कनियाँ, मरनी तँ आब बियाहैवाली भऽ गेल हएत।
-हँ काकी, ओकरे कतौ लड़का ताकै गेल छथिन। काकी माँथ केहेन लागै छनि। आबथु कनी तेल दऽ दै छियनि।
-नै कनियाँ। आइ जाए दिअ, आउर दोसरो दिन आएब।
-माँथ फहराइ छनि तेल बिनु।
-से तँ ठीके कहै छी कनियाँ। हमर रुसना डिल्लीसँ हमरा लए एगो नवरतन तेल ठंढ़ा बला, पाँचटा साबुन नहाइ बला, दू किलो सर्फ पठा देलक, जे माय लगा जे किछु घटतौ तँ फोन करिहिएँ।
ने अखैन कनियाँ रवि रायकेँ समय छै, भूसा गर्दा सभ माथमे भरि जाइत छै।
-बड्ड गपशप केलौं कनियाँ, आब कनी जाए दिअ कनियाँ।
-ठीक छै काकी जाथु। हमहूँ भानस करऽ जाइ छी काकी। काकी हिनका भनसा भऽ गेलनि।
-नै कनियाँ। हमहूँ जाइ छी। कनीक पछुआरमे सँ भोरे अरिकौंछ तोड़लिऐ, तकरे चक्का बना कऽ झोरेबै, कनीक आमिल दऽ कऽ। तेहन हमर पुतोहु भेल कनियाँ जे अखैन तक दालि तरकारी नून, से नून-जाउर बना दैए, कहियो अनूने। कहियो अन तीमन नीक नै बनबैए। कनियाँ अहाँकेँ नीक लगैए अरिकौंछ।
-हँ काकी, हमरा सबकेँ कतऽ पाबी।
-ठीक छै तऽ हम अपना छोटा नातिन दिया पठा देब बाटीमे। जाइ छी कनियाँ।
-बड़की दीदी, बड्ड गप्प सरक्का चलै छलै रुसना माएसँ। की बात छै, अहूँकेँ गुण जादू सिखबाक अछि की?
-नै छोटकी। तोरा सभकेँ यएह पपियाहा मन सभ दिन मन खराप राखै छौ।
-नै यै दीदी। एको महिना नै भेलै, सुगौनावालीकेँ देहपर पाँचटा देवी पठौने छलै। कतेक ओझा गुणी एलै, तखन जा कऽ कनीक अन्न-पानि खाए लगलैए। सभ कहै छै हकल डाइन छै। छोटका बेटाकेँ मारि कऽ सिखलकैए।
-छोड़ सभ बात। तूँ सभ गामघरमे रहि कऽ अहिना सबकेँ डाइन आउर जोगिन कहै छिहिन। सभ अन्धविश्वास छिऐ। समाजमे ईएह सभ बातसँ झगड़ा होइत रहैए आउर एक दोसरकेँ डाइन कहैए।

Sunday, May 13, 2012

पुनरन्वेषण

कनिक देर भऽ गेल छल अन्वेषिका (अन्वी ) के काज पर पहुँचय मे असलमे पहिल बेर तऽ बेसिये पहिने आबि गेल छली से भेलैन जे बाहर नास्ता कऽ क आबि जाथि। कॉलेज के पढ़ाई अखन पूरे भेल छलैन से एकटा सांस्कृतिक परिषद् मे स्टीवार्डक काज पकड़ि लेने छली। कस्टमर सर्विस के अनुभवक संगे मंगनी मे मनोरंजन सेहो होयत छलैन। गेट पर बैसर्ल बैसल लोकक गिनती वा टिकट चेक करू. ककरो किछु जानकारी चाही होय तऽ से दियऊ आ कार्यक्रमक आनन्द लीय।कखनो भारतीय संगीत समरोह तऽ कखनो डायमण्ड जुबली मनाबैत जैज बैण्ड के शो. कखनो आइरिस नृत्य तऽ कखनो जाइव. कखनो बच्चा सबहक नाटक मण्डली तऽ कखनो वृद्ध सबलेल पुरान फिल्म। आहि बॉलीवुड नृत्य सिखाबई वला संस्थानके वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह छल।  
बाहर सैण्डविच कीनली आ बसे के भोजनालय बूझैत काज दिस भगली तैयो कनी देर भऽ गेलैन।मुदा ई असगर नहिं छली जे देर छली। एकटा आर बालिका जकर पैर में मोच आबि गेल छलै सेहो कातमे बैसल छल।ओ जखन लोक सब अन्दर चलि जैतई तखन गेट लग जाय क बैसतई। अन्वी के मैनेजर ओकरे संगे काज दऽ देलकैन। कार्यक्रम शुरू भेल।मैनेजर कहलकैन जे अहॉं सब बालकोनी के सीट पर बैसू आ लोक सबपर नजरि राखू।अन्वी ओहि रोमन बालिका संगे बालकोनी मे जा कऽ बैसि गेली। ओ बालिका वैशाखी पर छलै। कनिये देर मे सबटा शान्त भऽ गेल आ कार्यक्रम शुरू भेल।इम्हर अन्वीजी के ओहि शान्त बालिका सऽ बातचीत सेहो शुरू भेल।स्वभाविक छलै जे अन्वीजी अपन बात ओकर पैरक स्थितिक कारण पूछैत केलखिन आ ओ होली जे अखने बीतल छल के विषय मे बात करै लागल।ओकर किछु नब सहेली भारतीय छलै जकरा संगे ओ भारतीय अन्दाज मे बात केनाई सीखने छल।ओ होलीमे अपन मित्र सब संगे खूब होली खेलायल छल।बातचीत सऽ अन्वीजीके ज्ञात भेलैेन जे ओकर चेहरा के उदासी मात्र पैरक दर्द सऽ नहिं आयल छहि वरन् ओकरा अपन पुरूषमित्र सऽ दू सालक गड़बड़ायल दोस्ती के कारण सऽसेहो छल। आ एहन समय मे ओकरा अपन नब संगी सब बड़ सहयोगी लागैत छल।  
ओहि बालिका के भारतीय विशेषतः बॉलीवुड संगीत बड़ रूचिगर लागैत छलै।से ओ बहुत आनन्द लऽ रहल छल संगीत के। बीच बीचमे अपन मायके प्रति कृत्रिम रोष सेहो प्रदर्षित कऽ रहल छल आ ओहि सब अदाकारी मे अन्वेषिकाजीके अपन देशक सुगन्ध आबि रहल छलैन।अतेक विविधता सऽ भरल शहरमे सेहो आइ फेर अन्वीजीके अपन जीवनशैली उत्कृष्ट लागि रहल छलैन। जीवन मे ऊँच नीच तऽ होयते रहैत अछि मुदा ओहि के कोन संस्कृतिमे सबसऽ बढ़िया समाधान छहि से ताक अन्वीजीके उड़ानक सीमा फेर छोट कऽ देलकैन।

Sunday, May 6, 2012

धोति‍क मान :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


धोतीक मान

जहि‍ना तेहैया बोखार तरे-तर अबि‍तो रहैत आ जेबो करैत रहैत तहि‍ना लाल काकाकेँ तीन दि‍नसँ विचि‍त्र सोग गहि‍ कऽ पकड़ि‍ लेलकनि‍। ओना जखन कोनो काजक अनमेनामे लगि‍ जाइ छथि‍ तखन छोड़ि‍यो दैत छन्‍हि‍। मुदा काज बदलि‍ते पुन: आबि‍ जाइ छन्‍हि‍। मुदा कहबो केकरा करथि‍न, घरेलू सोग छि‍यनि‍। सोगो तेहेन जे जहि‍ना ति‍आरि‍ जालमे माछ फँसि‍ जाइत। ने बंशी जकाँ जे बोरक सुगंधसँ फँसि‍ जान गमबैत आ ने सहतक ठनका जकाँ। मुदा तैयो तँ घाउ लगले छन्‍हि‍।
सोगक दोसरो कारण छन्‍हि‍। ओ ई छन्‍हि‍ जे दुनू परानी -पति‍-पत्नी- क बीच कहि‍यो वैचारि‍क संघर्ष, रक्का-टोकी नै होइत छलन्‍हि‍, जो सद्य: सोझामे देखि‍ पड़ैत छन्‍हि‍।
बात कि‍छु ने बुढ़ि‍या फूसि‍ मुदा सोग तेहेन जे रोगौने टा नै, सोगौने छन्‍हि‍। जइसँ कोनो काज करैमे मने ने लगए दैत छन्‍हि‍।
तीन दि‍न पहि‍ने जखन सढ़ूआरएसँ भरपूरा न्‍योंत एलनि‍ तखनेसँ सोगक आक्रमण भेलनि‍ जे धेनहि‍ छन्‍हि‍। ने छोड़ैत बनै छन्‍हि‍ आ ने पूरैत। साधारण जि‍नगी जीबैक अभ्‍यास तँए पाइ-पाइक हि‍साब जोड़ि‍ समुचि‍त काज करैत चैनसँ चलैत छन्‍हि‍। गति‍ अनुकूल आमद-खर्च रहने भातक उजड़ा आॅकर जकाँ दाँत तर खटखटाइत रहनि‍। ऑकर संग भातो फेकए पड़तनि‍। नजरि‍ उठा कऽ देखथि‍ तँ सोझेमे देखि‍ पड़नि‍ जे भारमे धोतीक खर्च वाह्ययात अछि‍, कि‍एक तँ धोतीक मान तँ ओइ समए सर्व सम्‍मति‍ छल जखन एकाधि‍कार बेपार जकाँ छल, मुदा जइठाम दू सए रूपैयाक धोती लऽ जाएब, तइठाम कि‍यो पहीरि‍नि‍हार नै अछि‍, मांगलि‍क काज छोड़ि‍ धोती म्‍यूजि‍यमक वस्‍तु बनि‍ गेल अछि‍। अपन तँ दू दि‍नक कमाइ दहा जाएत। मुदा पत्नी तँ मानती नै। अपना सीमामे सभ बताह होइए, भलहिं आन सीमामे नाङरि‍ पटपटबए आकि‍ दाँत चि‍आरए। मानबो उचि‍त नहि‍ये। कि‍अए तँ पत्नीक मान तँ परि‍वारमे दादीक छन्‍हि‍। बाबा-दादाक पकि‍या संगी। शुभ काजक शुरूहेमे खट-पट भेने कहीं अंत धरि‍ ने खटपटाइत रहि‍ जाए, तेकर डरो रहनि‍। वि‍चारि‍ लेब जरूरी बूझि‍ लालकाकीकेँ पुछलनि‍-
काल्हि‍ये ने न्‍योंत पूरए जाएब। आइये ने सभ ओरि‍यान-बात कऽ लेब।
लालकाकी- घरक ओरि‍यान ने हम करब, आकि‍ हाटो-बजारक करब।

लालकाकीक चढ़ल तर्क देखि‍ लालकाका दोहरौलखि‍न-
बजारक काज की सभ अछि‍।
आर कि‍छु ने अछि‍। खाली जोड़ भरि‍ धोती आ अंगा आ गमछा कीन लेब।
लालकाकी आढ़ति‍ सुनि‍ लालकाका मने-मन जोड़थि‍ तँ देखि‍ पड़नि‍ जे कि‍यो धोती पहीरि‍नि‍हारे परि‍वारमे नै अछि‍, जखन धोती नै तखन कुर्ता आ गमछा तँ सूखल नून-चूड़ा भेल। कतबो हएत तँ जलखैइये। मुदा बेवस भेल। तैयो पुछलखि‍न-
आब कि‍ कोनो भार-दौर चलै छै जे ई सभ लऽ जाएब?”
लालकाकाकेँ चि‍लहोरि‍ जकाँ झपटैत लालकाकी कहलखि‍न-
चाउर दहीक बदला रूपैया लऽ जाएब मुदा नव वस्‍त्र नै लऽ जाएब से केहेन हएत?”
कहैत नोर ढवढबा गेलनि‍। फटैत छातीक दर्द बाँसक झाँझन जकाँ झनझनाए लगली-
बहि‍न मरमा मरि‍ये गेल, मुदा अंतमे मुँह नै देखि‍ पेलौं। भगवानो तेहेन जे सभटा दुख ओकरे घरमे देलखि‍न। चढ़ल जुआनी दुनू परानी मरल, ढाइ बर्खक मइटुग्‍गर-बपटुग्‍गर बेटाक बि‍आह छि‍ऐ, तेकरा पाँच हाथ वस्‍त्र हम नै देबइ, तँ दुनि‍याँमे के देतइ।

जवाहर लाल कश्यप- हम्मर माय तोहर माय



बेमार बुढ मायक ठीका अहीं लेने छी, औरो बेटा छन्हि ने,  हुनकर कनियाँ सभ चैनसँ रहथि आ हम बुढ आ बच्चामे परेशान रहू। ई नै हएत।
कनियाँक बात सुनि हम सोचलहुँ जे छोटकाकेँ फोन कऽ कहि देब जे  मायकेँ छ महिना अपना लग राखि लहक ,तोरो  तँ माय छथुन्ह्।
तखने बचपनक एकटा बात मोन पड़ि गेल ,बच्चामे दुनु भाय झगड़ा  करैत छलहुँ जे हम्मर माय-हम्मर माय आ आब ओकरासँ पिन्ड छोड़ा रहल छी तोहर माय -तोहर माय।

कुसि‍यारक मारि‍ -उमेश मंडल




चैत मास। तीनू गोटे सखरा जाइत रही। तीनू गोटे बच्‍चेक संगी मुदा तीन जाति‍क छी। एक सि‍ंहजी दोसर रायजी तेसर अपने। तीख रौद मुदा पूर्वा सह दैत। रास्‍ता कातेमे कुसि‍यारक खेत। डमहाएल कुसि‍यार रससँ तड़तड़ करैत। पि‍यासो लगि‍ गेल रहए। कुसि‍यार देख मोन डोलि‍ गेल। हुनका दुनू गोटेकेँ कहलि‍यनि‍ एक छड़ कुसि‍यार खाइक मोन होइए। मन हुनको दुनू गोटेकेँ रहनि‍ मुदा आगू भऽ कऽ बजलौं हमहीं। तीन छड़ कुसि‍यार तोड़ैक सहमति‍ भऽ गेल। एक तँ जुआन दोसर तीन गोटे छी। असगर दुसगर बगबार रोकत तँ मारि‍यो खएत। तीनू गोटे तीन छड़ तोड़ि‍ लेलौं।

शुरूमे जँ बुझि‍ति‍ऐ जे असगरोमे तागत होइ छै तँ एहन काजे नै करि‍तौं। पछाति‍ बुझलि‍ऐ। कुसि‍यारक खेतसँ नि‍कलि‍ते रही आकि‍ बगबार आबि‍ कऽ आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। हि‍यौलक मुदा बाजल कि‍छु नै। रस्‍तापर आबि‍ गाछक छाहरि‍मे तीनू गोटे कुसि‍यार खाए लगलौं। बगबारो आबि‍, कनी हटि‍ कऽ ठाढ़ भऽ सि‍ंहजीकेँ इशारा देलक‍। कुसि‍यार खाइते सि‍ंहजीक कानमे फुसफुसा कऽ कि‍दैन कहि‍ देलक। तहि‍ना राइयोजीकेँ केलक। हम असगरे छुटि‍ गेलौं। सनकल आबि‍ कुसि‍यार छीनि‍ पच्‍चीस कुसि‍यार मारलक आ पचास बेर कान पकड़ि‍ कऽ उठौलक बैसौलक। माइरि‍क चोट ओते नै लागल जेतैक संगीक कि‍रदानी। रूष्‍ट भऽ असगरे वि‍दा भऽ गेलौं। थोड़े आगू बढ़ि‍ पाछू घुरि‍ तकलौं तँ रायजीक उपरमे तड़ातड़ि‍ कुसि‍यार बरि‍सति‍ देखलि‍ऐ।
हमर मारि‍ तँ सभ देखनहि‍ छल। तँए कहैक जरूरते नै मुदा रायजीक मारि‍ तँ हम नहि‍ देखने। कनैत देख पुछलि‍यनि‍- “भाय, कि‍अए ठुनकै छी?”
मुदा तैयो सोझ डारि‍ये नै चि‍क्कारि‍येमे कहलनि‍- “जएह गति‍ अहाँक सएह अपनो।”
एते गप होइते छल आकि‍ फटाक-फटाकक अबाज हुअए लगल। सि‍ंहजी आ बगबारो गाड़ि‍ गड़ौबलि‍ आ ललका-लककी सेहो करैत छल। हम दुनू गोटे वामा कानक बगलमे हाथ लगा ठीकसँ सुनए लगलौं। गाड़ि‍ पढ़ि‍ बगबार बाजल- “बापेक खेत छलह?”
सि‍ंहजी जबाब देलखि‍न- “जेकरा बात नै ओकरा बाप नै। मुँह चुकरि‍यबैत की बाजल रहह?”

जहि‍ना मारि‍ खेलापर चोट लागल रहए आ दुखी भेल छलौं तहि‍ना सबहक देख कऽ खुशि‍यो भेल। हँसी-मजाक करैत तीनू गोरे सखरा भगवतीक दर्शन कऽ घुमलौं। 

उमेश मण्‍डल - कनफेड़सँ मुँहफेड़




बरसपति‍बाबाकेँ एहेन दुख  जि‍नगीमे नै भेल छलनि‍ जेहन आइ भेलनि‍।
जखन हुबगर छलाह तखन परोपट्टाक लोक उचि‍त वक्ता मानि‍ ओझराएलसँ ओझराएल पनचैती करबैत छल। मुदा हुबा घटने एहेन दि‍न देखए पड़लनि‍।

कृष्‍णदेव मधुबनी कोर्टमे कि‍रानीक नोकरी करैत। जे कि‍यो काजे ओइ ऑफि‍स गेल सभ बुझैत जे कृष्‍णदेव केहेन घुसखोर अछि‍। रेलवे टि‍कट जकाँ सभ काजक रेट बनौने। संयोगसँ बरसपति‍बाबा सेहो एक ि‍दन एकटा काजे गेलाह। मुदा बुझि‍ नै सकलथि‍ जे घुस दऽ कऽ काज भेल। भेलनि‍ जे सरकारी फीस लगल हएत।
ऑफि‍ससँ नि‍कलि‍ते एक गोटे पुछि‍ देलकनि‍- “कते घुस लागल।”
“घुस कि‍अए लागत। सरकारी फीस लागल।”
एक्के-दुइये जखन चारि‍-पाँच गोटे कहलकनि‍ तखन मन मानि‍ गेलनि‍ जे फीस नै घुस लागल। मुदा आब उपाए की? कोनो सबूत तँ नै अछि‍। एकटा उपाए फुड़लनि‍। ओ ई जे अखनेसँ बाजब शुरू कऽ देब जे कृष्‍णदेव घुसखोर अछि‍। सएह केलनि‍। खूब बदनाम केलनि‍।

समए मोड़ लेलक। बरसपति‍बाबाक हूबा सेहो कमलनि‍। सौ रूपैयाक बेगरता भेलनि‍। गाममे कृष्‍णदेवक महाजनी चलैत।
बरसपति‍बाबा कृष्‍णदेवकेँ कहलखि‍न- “कि‍सुन, एक साए रूपैयाक बेगरता अछि‍, सम्‍हारि‍ दाए।”
मौका पाबि‍, जहि‍ना बगड़ापर बाझ झपटैत तहि‍ना कृष्‍णदेव ठोकले मुँहेँ उत्तर देलकनि‍- “बाबा, जँ अहाँकेँ बजैऐक छल तँ हमरो पुछि‍ लइतौं। हम लेलि‍ऐ तँ चौरासी परचार केलौं आ डेढ़ लाख लऽ कऽ जे नोकरी भेल, आ तइपर सँ महीना-महीने भरए पड़ैए, से के बाजत?”
कृष्‍णदेवक बात सुनि‍ बरसपति‍बाबा मने-मन वि‍चार करए लगलथि‍। ठीके कनफेड़सँ मुँहफेड़ भऽ गेल।