Wednesday, April 4, 2012

बिहनि कथा-बुच्चू भइया


बिहनि कथा-बुच्चू भइया

करमान लागल लोक..अनघोल भेल सौंसे गाम..जकरे देखू तकरे आँखि मे नोर..सगरो संताप पसरल..नहि रहलथि बुच्चू भैया आब एहि दुनिया मे.पचासी बरखक अवस्था भ गेल रहन्हि तइयो सभ बुच्चू भइये कहैत छलन्हि. नेना-भुटका, जर-जवान, बुढ-पुरान,स्त्री-पुरूख..सभक भैया..बुच्चू भैया छलाह. अनकर कोन कथा अपनो बेटा-पोता सभ त' बुच्चू भइये कहैत छलन्हि.कोनो बेशी पढल-लिखल नहि छलाह मुदा बेबहारिक गेयान सँ परिपूर्ण.समाज मे घुलल-मिलल लोक.ककरो-कहियो कोनोटा खराप नहि सोचलखिन्ह जीवन भरि.सभके हरदम नीके रस्ता देखबैत रहलाह.भरि गाम मे ककरो ओहिठाम कोनो तरहक दसगरदा काज मे बिन-बजौनहु पहुँचि जाइत रहैत.कोनो तरहक राग-द्वेश नहि.एकदम शुद्ध-मना.एही गुण सभ दुआरे तऽ एतेक सम्मान भेटै छलन्हि सभठाँ.अनकर कोन कथा बड़का पण्डिजी सेहो हिनकर मान करै छलखिन्ह.उमेर मे नमहर रहितौ ओहो बुच्चुए भइया कहैत छलखिन्ह.
दलान पर कुरसी लगा बैसल बुच्चू भइया...अबैत जाइत लोक..के छोट..के पैघ..सब बइस रहैत छल हुनका सँ दू आखर सुनबा लय..... जिनगीक उँच-नीच गुनबा लय.....खिस्सा-पिहानी सुनबा लय.कल्ला तर पान..ठहक्का मारैत बुच्चू भइया नजरि के सोझाँ ओहिना नाचि रहल छथि.आँखि हमरो नोरा गेल.
माँझ अँगना उत्तर मूँहे सूतल छथि बुच्चू भइया.मूँह पर एखनो हँसी पसरल..दिव्य ललाट. गौदान-वैतरनी भ' गेल...बाँसक रथ सवार बुच्चू भइया विदाह भेल छथि अंतिम यात्रा पर...कन्नारोहट उठल सगरो..शांत बुच्चू भइया ..आइ नहि पोछलखिन्ह ककरो नोर.सिरहौना-पोछौना..आमक लकड़ी बोझल गेल..सभ काठी चढौलक श्रद्धांजलि-सवरूप.मुखाग्नि पड़ल..सरर..धुमन..गमकथि बुच्चू भइया.चर्चा-परिचर्चा..केयो बजलइ-"एकबेर बुच्चू भइया के कोनो बात लेल तामश उठि गेलनि.बौसति कियो कहलकन्हि -अहूँ के बड्ड तामश उठैत अछि. हमरा त़ऽ हरदम तामश उठले रहैत अछि, चट्ट दऽ कहने रहथिन्ह बुच्चू भइया"-सभ हँसऽ लागल...धधरा जोर भऽ गेलइ..हँसैत बुच्चू भइया.

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