Wednesday, April 4, 2012

अंतर

किछु बर्खक पछाति मैरिज सेरेमनीक शुभ अर्धनिशाभाग रातिमे बर अपन कनियाँसँ पुछलखिन्ह----- कहू तँ हमर सासुर आ अहाँक सासुरमे की अंतर भेटल ?

कनियाँ औंघाएल मुदा चोटाएल स्वरे कहलखिन्ह------"इएह जे अहाँ अपन सासुरमे मालिक रहैत छी आ हम अपन सासुरमे बहिकिरनी"

1 comment:

  1. लघुकथा ’अंतर’ को संवाद-शैली मे पूर्ण वैचारिकता के साथ निभाया गया है. कथा में ऐसे तथ्य का बखान हुआ है जो मानों कलेजे को कचोटता हुआ अपने लिए हामी ले लेता है.
    बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.

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