Thursday, April 5, 2012

रघुनाथ मुखिया- विहनि कथा- नियति

नियति

कॉमरेड गनेसर कामति भोरे-भोर बलहा बाजारपर एलाह। हुनका संगमे सिंहजी रहनि। दुनू गोटऽ बनारसी पासीक घर धरिक कएक फेरी लगेलक। फेर मन्दिरक आगाँमे ठाढ़ भेल।

  आब एकटा करिया चश्माबला भीमकाय कायाधारी मिसरजीकेँ इशारा करैत बाजए लागल- घरो तोरे, पिनसिलो तोरे, लौनो तोरे, बीपैलो तोरे। बढ़मोत्तर तोरे, शिवोत्तर तोरे। आएल-गेल सेहो सभटा तोरे। तब अहीं कहियौ ने। हम गरिबाहा सभ की लेबै- “बापक हुरिया”।

  मिसरजी अपन जीहकेँ दाँतसँ कुचैत मुसकिएलाह। अपन डाँड़सँ एकटा कागचक पुड़िया आ आंगुर भरिकऽ चीलम निकालि कॉमरेडक हाथमे थम्हा देलक।
(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

No comments:

Post a Comment