Friday, December 28, 2012

लाशसँ भरल ट्रेन



दिल्लीसँ चलल ट्रेन । सेकेंड क्लास स्लीपर आरक्षित डिब्बा । ठसाठस भीड़सँ  भरल डिब्बा सभ । एकटा डिब्बाक एक हिस्सामे; तीन व्यक्तिक सीटपर एक पुरुष हुनक स्त्री आ तीनटा  सँ १२ बर्खक बच्चा,  अर्थात कुल पाँच गोटे बैसल । ई  परिवार दिल्लीएसँ आबि रहल छलथि । हुनकर सभक सामनेक सीटपर सेहो पाँच व्यक्ति बैसल आ करीब-करीब सम्पूर्ण डिब्बाक कही तँ  सम्पूर्ण ट्रेनक एहने हाल । नाम मात्रक आरक्षित डिब्बा, हालत जेनरलोसँ बत्तर ।
अपन लक्ष्यक पाँछा करैत ट्रेन बिहारक सीमामे प्रवेश कएलक । ट्रेन बक्सर स्टेशनपर रुकल । तीनटा, २४-२५  सँ ३० बर्खक बिचक बलिस्ट युवक एके संगे भीड़केँ चिड़ैत जबड़दस्ती डिब्बामे प्रवेश कएलक । ओ तीनू सभकेँ ठेलैत धकलैत आगू बढ़ि ओतए जा कए ठार भेल जतए दिल्लीसँ चढ़ल परिवार बैसल छल । ओ तीनू अपनामे हा-हा-ही-ही ठठ्ठा करैत ओतेकदूरक वातावरणकेँ अभद्र बना देलक । ओतबोपर नहि माइन तीनूकेँ तीनू सिगरेट निकाइल कए ओकर नम्हर - नम्हर कश मारै लागल । तीनूक विषाक्त गप्पेकेँ पचेनाइ मुश्किल भए रहल छल ओहिपर आब सिगरेटक लछेएदार धुवाँक जहर, असहनीय होएत । दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष विनम्र भए बजलनि, "भाइ साहब, सिगरेट बंद करू, एहिठाम स्त्री धिया-पुता सभ छैक एकर  धुवाँ सहनाइ असहनीय s रहल अछि ।"
तीनू उदण्डमे सँ एकटा, "अरे वाह ! सिगरेट हमर, पाइ हमर, मुँह हमर तेँ हम सभ किएक नहि पीबू ?"
दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष, "मुदा हमरा सभकेँ असुबिधा भs रहल अछि ।"
 "
असुबिधा, बेसी असुबिधा अछि तँ अहीँ सभ दोसर डिब्बामे चलि जाउ ।"
 "
हम सभ दोसर डिब्बामे किएक चलि जाउ,  हमरा सभ लग रिजर्वेशन अछि, बिना रिजर्वेशनक तँ अहाँ सभ छी ओहूपर अनैतिक काज कए रहल छी । ट्रेनमे बीड़ी सिगरेट पीनाइ अपराध छैक ।"
 "
अरे वाह ! अपने तँ उकील साब छी (दुनू हाथ जोरैत ) धन्य छी उकीलसाब, अपराध ! हा हा हा .... अपराध ई कोन अपराध भेलैह, अपराध होएत जखन अहाँक सुन्नर कनियाँकेँ लs कए भागि जाइ ।"
एतबा कहैत तीनूकेँ तीनू भीतर आगू बढ़क प्रयास कएलक आ एहि प्रयासमे किछु  धक्का-मुक्की सेहो भेलै । तीनू आगू बढ़ि मर्यादाक सीमासँ बाहर बढ़ैए बला छल की रेलवे पुलिसक दूटा जवान कन्हापर बन्दूक रखने गस्त लगबैत ओहि डिब्बामे आएल । ओकरा देखते मातर तीनू ओहिठामसँ लंकलागि कए भागि गेल ।
मुदा ओहि डिब्बाक ठसाठस भरल भीड़मेसँ केकरो सहास नहि भेलै जे मात्र तीन गोट कपाटक मनुखसँ बाजि लड़ि कए एकटा नीक परिवार, जेकरा संगे की करीब १७-१८  घंटा पाछूसँ यात्रा कए रहल छल रक्षा करी । आ ओ सहास हेतैक कोना । कियो जीबित होए तहन ने । सभ के सभ लाश अछि । एहन लाश जे अखबार पढ़ैत अछि, समाचार सुनैत अछि, यात्रा करैत अछि मुदा कोनो अनैतिक बातक पाँछा आबाज नै उठाबैत अछि ।

*****
जगदानन्द झा 'मनु'

Wednesday, December 12, 2012

हाउ(मुखौटा)

विहनि कथा-हाउ(मुखौटा)

मनोहर बाबूकेँ के नै चिन्है छै?समाजकेँ दहेज मुक्त करबाक संकल्प लेने छथि मनोहर बाबू ।कतेको बेर ,कतेको मंचसँ दहेजक विरोधमे भाषण देने छथि ।दहेज लेनाइ-देनाइकेँ सबसँ पैघ पाप बुझै छथि ।

आइ इलाका भरिमे हुनक नामक चर्चा छै ।जनताक नजरि हुनक जेठ बेटाक विआहक कार्डपर छै । कार्डपर की रहतै ,ओहिपर छपल एकटा पाँतिपर टकटकी लगेने छै लोक ।जे पाँति छल "ई विआह दहेजक दानवी क्रियाकलापसँ कोसों दूर अछ
ि ।"

मनोहर बाबूक घरपर कऽर-कुटुमक भीड़ जुटल छै आ मनोहर बाबू दुनू प्राणी एकटा घरमे बतियाइत छथि ।

मनोहर बाबू-"इ विआह आइ हेबाक अछि मुदा लागि रहल छै जे नै हएत ।"

पत्नी-"से किएक ? विआह किए नै हेतै?"

मनोहर बाबू-"साँझक चारि बाजि गेलै मुदा तीलकक 12 लाखमेसँ 50 हजार टाका एखनो बाँकिए अछि ।"

अमित मिश्र

-हाउ(मुखौटा)

विहनि कथा-12-हाउ(मुखौटा)

मनोहर बाबूकेँ के नै चिन्है छै?समाजकेँ दहेज मुक्त करबाक संकल्प लेने छथि मनोहर बाबू ।कतेको बेर ,कतेको मंचसँ दहेजक विरोधमे भाषण देने छथि ।दहेज लेनाइ-देनाइकेँ सबसँ पैघ पाप बुझै छथि ।

आइ इलाका भरिमे हुनक नामक चर्चा छै ।जनताक नजरि हुनक जेठ बेटाक विआहक कार्डपर छै । कार्डपर की रहतै ,ओहिपर छपल एकटा पाँतिपर टकटकी लगेने छै लोक ।जे पाँति छल "ई विआह दहेजक दानवी क्रियाकलापसँ कोसों दूर अछ
ि ।"

मनोहर बाबूक घरपर कऽर-कुटुमक भीड़ जुटल छै आ मनोहर बाबू दुनू प्राणी एकटा घरमे बतियाइत छथि ।

मनोहर बाबू-"इ विआह आइ हेबाक अछि मुदा लागि रहल छै जे नै हएत ।"

पत्नी-"से किएक ? विआह किए नै हेतै?"

मनोहर बाबू-"साँझक चारि बाजि गेलै मुदा तीलकक 12 लाखमेसँ 50 हजार टाका एखनो बाँकिए अछि ।"

अमित मिश्र

Sunday, December 9, 2012

सभसँ प्रिय बस्तु



दादाजी दिन भरिकेँ थाकल झमारल  घरमे अबैत  छथि । हुनका बैसति देरी दादीक तेज स्वर गुइज उठै छनि,  " आबि गेलहुँ दिन भरि बौवा कए । ई जे दिन भरि छिछियाइत रहै छी से एहि मिथिला मैथिलीसँ की घरक चूल्हो जड़त ।"
दादाजी शांत गंभीर होइत,  "चूल्हा तँ नहि जड़त मुदा हमर सभ्यता संस्कृति हमर माएक भाषा जे हमर सभक हाथसँ छूति रहल अछि एनाहिते छुटैत रहल तँ एक दिन लोप भए जाएत आ एहन अवस्थामे कि जरुड़ी अछि ? घरक चूल्हा जड़ेनाइ की अपन माति पानि सभ्यता आ सरोस्वतीक कंठसँ निकलल मैथिलीक मिझएल आगिकेँ जड़ा कए प्रचंड केनाइ ।"
दादीजी हुनकर गप्प सुनि चुप्प । ओ शाइद सभ्यता संस्कृति माएक भाषा माति पानि एहेन भारी भारी  शव्दक कोनो अर्थ नहि बूझि पएलि मुदा दादाजीक छोड़ैत साँससँ एतेक  तँ अबस्य बूझि गेलि जे हुनकासँ  हुनक कोनो सभसँ प्रिय बस्तु दूर भए रहल छ्लनि ।

Wednesday, October 31, 2012

विहनि कथा- परिभाषा

विहनि कथा- परिभाषा

माएक मोन एकाएक बड खराप भऽ गेल ।गाममे एहि रोगक डाँक्टर नै छथि तँए एकटा मित्रक संग शहर एलौँ ।रवि दिन ,क्लिनिक बंद ।डाक्टर साहेबक डेरापर जाएबाक योजना बनल ।मुदा . . . ।
पिछला दू घंटासँ गली-गली भटकि रहल छी ।जालमे फँसल माछ जकाँ मोहल्ला भरिमे अहुरिया काटि रहल छी ।लोक सबसँ पूछि रहल छी ,मुदा . . .। डाँक्टर साहेबक डेरा नै भेटल ।मोन खौंझा गेल ।
मित्र बजलनि ,"जानबरसँ पूछि रहल छी तँए जबाब

नै भेटैत अछि ।"
ई सुनि एकटा लड़का रूकि गेल आ कहल ,"भाइजी एकरे नाम तँ शहर छै ।गामक लोक अगल-बगलकेँ दस गामक लोककेँ चिन्हैत अछि मुदा शहरमे बायाँ हाथ ,दायाँ हाथकेँ नै चिन्है छै ।एक फ्लैटमे जन्मदिन होइ छै आ दोसरमे श्राद्ध ,ककरोसँ कोनो मतलब नै ।शहर तँ शमसान थिक जतऽ तांत्रिक बनि लोक अपन स्वार्थपूर्तिक लेल तपस्या कऽ रहल छथि ।किओ ककरो खोज-खबरि नै लै छथि , नै तँ तपस्या भंग भऽ जेतै ।इएह तँ थिक शहरक परिभाषा ।"

इम्हर सह-सह करैत मनुखक बीच डेरा खोजबामे असमर्थ भेलहुँ आ उम्हर माएक साँसक डोर टूटल ।

सभार-www.videha.co.in

Friday, September 28, 2012

विहनि कथा


प्रोग्रेसिभ
                              शर्माजी आ हुनकर कनियाँ पूरा समाजमे प्रोग्रेसिभ कहाबैत छलथि। एकर कारण ई छल जे दूटा बेटीक जन्मक उपरान्त शर्माजी बिना बेटाक लालसा केने फैमिली पलानिंगक आपरेशन करा लेने छलाह आ दूनू बेकती बेटी सभक लालन पालनमे कोनो कसरि नै छोडने छलखिन्ह। बेटी सबकेँ पढेबा लिखेबामे पूरा धेआन देने छलखिन्ह आ ओकरा सभकेँ तमाम सुख सुविधा देबामे पाँछा नै रहैत छलखिन्ह। समाजमे शर्माजी दूनू बेकती बहुत आदरणीय आ उदाहरण छलथि। बेटी सभकेँ आ शर्माजीक कनियाँकेँ कोनो दिक्कत नै होई, ऐ लेल शर्माजी किछो करबा लेल तैयार रहैत छलाह। घरक काजमे मदतिक लेल एकटा दाई राखल गेल छल जे चौबीसो घण्टा हुनकर घरे पर रहैत छलैन्हि। ओकर नाँउ छलै मीतू आ ओ बयसमे बारह-तेरह बरखक छल। ऐ हिसाबेँ ओ एखन बच्चे छलै आ पेटक मजबूरीमे हुनकर घरमे काज करबा लेल बाध्य छलै। घरक पूरा साफ सफाई, पोछा, बासन माँजनाई आ कपडा धोनाई ओकरे जिम्मा छलै। दिन भरि खटिकऽ ओ थाकि जाईत छल आ साँझुक बाद झपकी लेबऽ लागैत छल। जखने ओकरा झपकी आबै की मलकिनीक प्रवचन ओकर निन्न तोडि दैत छलै। रातिमे सभक खएलाक उपरान्त ओ सभटा बासन माँजि लैत छलै आ तकर बादे खाई लेल बैसै छलै। खएबामे सबहक बचल खुचल ओकरा नसीब होईत छलै।

                              शर्माजी अपन बेटी सभक सब फरमाईश पूरा करैत छलखिन्ह आ कोनो वस्तुक माँग भेला पर बाजारसँ तुरंत ओ वस्तु आनैत छलथि, चाहे ओ कोनो खेलौनाक फरमाईश होई वा कोनो भोज्य सामग्रीक। जँ कखनो मीतू बाल सुलभ लालसामे ओइ वस्तु सभ दिस ताकियो दैत छलै की शर्माजीक कनियाँ अनघोल उठा दैत छलखिन्ह जे आब हमर बेटी सभकेँ ई वस्तु सब नै पचतै, देखू कोना नजरि लगा देलक ई निराशी। एकर अलावे आरो ढेरी गपक प्रसाद मीतूकेँ भेंट जाईत छलै, तैं बेचारी ऐ सब फरमाईशी वस्तु दिस धेआन नै देबाक प्रयास करैत छल, मुदा बच्चे छलै तैँ कखनो कालकेँ गलती भइये जाईत छलै।

                              एकदिन शर्माजीक बडकी बेटी गुलाबजामुनक फरमाईश केलकै। शर्माजी साँझमे घर आबैत काल बीसटा गुलाबजामुन सबसँ नीक मधुरक दोकानसँ कीनिकऽ नेने अएलाह। पहिने तँ दूनू बेटी आ हुनकर कनियाँ दू-दूटा गुलाबजामुनक भोग लगेलखिन्ह आ तकर बाद बचलाहा मधुरकेँ फ्रिजमे राखि देल गेलै। मीतू कुवाचक डरे ऐ मधुर दिस ताकबो नै केलक आ नै ओकरा खएबा लेल भेंटलै। मुदा मधुरक सुगंध ओकरा बेर-बेर अपना दिस आकर्षित करऽ लागलै। ओ एकटा योजना मोने मोन बनेलक आ चुपचाप घरक काज करऽ लागल। रातिमे भोजन कएलाक उपरान्त शर्माजीक कनियाँ ओकरासँ बासन मँजबेलखिन्ह आ एकर बाद ओकरा खएबा लेल बचलाहा सोहारी आ तरकारी दैत ई ताकीद केलखिन्ह जे हम सुतै लेल जाई छियौ, तूँ खा कऽ अपन छिपली माँजि सुतै लए जइहैं। ओ स्वीकृतिमे अपन मुडी हिलेलक आ खएबा लेल बैसि गेल। शर्माजीक कनियाँ तकर बाद सुतै लए चलि गेलीह। आब मीतू मधुर खएबाक अपन योजना पर काज शुरू केलक। पहिने तँ जल्दीसँ सोहारी तरकारी समाप्त कएलक आ तकर बाद नहुँ नहुँ डेगे फ्रिज दिस बढल। एकदम स्थिरसँ ओ फ्रिजक फाटक खोललक आ फ्रिजसँ मधुरक पैकेट निकालि कऽ एकटा गुलाबजामुन मुँहमे राखलक। फेर ओ सोचऽ लागल जे जखन एकटा खाइये लेलौं तखन एकटा आर खा लेबामे कोनो हर्ज नै छै। तैँ ओ एकटा आर गुलाबजामुन निकालि मुँहमे धरिते छल की पाँछासँ शर्माजीक कनियाँ ओकर केश पकडि घीचि लेलखिन्ह। असलमे खटपटक आवाज सुनि हुनकर निन्न टूटि गेल छलैन्हि। आब तँ मीतूक जे हाल भेलै से जूनि पूछू। मुँहमे गुलाबजामुन ठूँसल छलै तैँ ओ गोंगिया लागल। शर्माजीक कनियाँ ओकरा पर थापड आ लातक बौछार कए देलखिन्ह। संगे अपशब्दक नब महाकाव्यक रचना सेहो करैत पूरा घरकेँ जगा देलखिन्ह। सब मिलिकऽ मीतूक अपशब्द आ थापडक खोराक दए गेलखिन्ह। जखन ओ सब गारिक पूरा शब्दकोश पढि गेलखिन्ह आ मारैत हाथ दुखाबऽ लागलैन्हि तखन ओ सब हँपसैत ठाढ भऽ गेलथि। शर्माजीक कनियाँ मीतूक झोंटा घीचैत कहलखिन्ह जे हम सब प्रोग्रेसिभ छी, तैं छोडि देलियौ नै तँ आन रहितौ ने तँ बलि चढेने बिना नै छोडितौ। ई कहि ओ सब अपन बेडरूम दिस विदा भेलथि आ मीतू कानैत अपन बोरा लेने ओसारा दिस सुतै लेल बढि गेल।

Monday, September 10, 2012

पटोटन :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


पटोटन

अद्राक पहि‍ल बरखा। मास्‍टर सहाएब आ बड़ाबाबू, दुनू गोटे एक्के मोटर साइकि‍लसँ गामसँ झंझारपुर जाइत रहथि‍। साते कि‍लोमीटर झंझारपुर तँए दुनू गोटे गामेसँ जाइ अबै छथि‍। थानाक बड़ाबाबू नै कोर्टक बड़ाबाबू देवनन्‍दन आ हाइस्‍कूलक शि‍क्षक प्रेमनन्‍दन। ओना दुनू गोटे शहरूआसँ बेसी गमैइये छथि‍ मुदा तैयो कलप कएल कपड़ा पहीरि‍ कऽ ऐबे-जेबे करै छथि‍।
पँचकोशीमे सि‍ंहेश्वरक नाओं एकटा नीक घरहटि‍याक रूपमे लोक जनैत। ओना नाउऍं तँ नाआें छी, तइमे तँ कमी नै भेलनि‍ अछि‍ मुदा परदेशि‍याक कमाइ आ इन्‍दि‍रा आवासक चलैत काजमे कमी तँ भइये गेलनि‍ अछि‍। उमेर बेसी भेने मनमे खुशि‍ये होइत रहै छन्‍हि‍ जे भने काज कमि‍ रहल अछि‍। एक तँ परदेश भगने नव घरहटि‍या नै बनि‍ रहल अछि‍, दोसर हमहीं सभ जे पुरना पाँच गोटे छी सएह कते सम्‍हारब।
ब्रह्मपुर गाममे प्रवेश करि‍ते बुन्‍दाबुन्‍दी पानि‍ शुरू भेल। बड़ाबाबू ड्रइवरी करैत आ मास्‍टर सहाएब पाछूमे बैसल। बुन तँ गोटगर पड़ैत रहै मुदा कम-सम। बीत-डेढ़ बीतक दूरीपर बुन खसै तँए कपड़ा सोखनहि‍ चलि‍ जाइत मुदा जते आगू बढ़ैत छलाह तते मानि‍यो बेशि‍आएल जाइत। बढ़ैत-बढ़ैत सि‍ंहेश्वर घर लग अबि‍ते अँटकि‍‍ जाएब नीक बुझलनि‍। सड़केपर गाड़ी लगा दुनू गाटे सि‍हेश्वरक दरबज्‍जापर पहुँचलाह। दरबज्‍जा कि‍ मालक घर। अाधा घरमे माल बन्‍हैत आधामे दरबज्‍जा बनौने। दरबज्‍जा कि‍ एकटा चौकी मात्र। सि‍ंहेश्‍वर अपने दरबज्‍जेपर। चारसँ चुबैत बुन्नकेँ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखैत जे रौदमे फाटि‍ गेल अछि‍ आ कि‍ कौआ खोदने अछि‍। मुदा लगले मन पड़ि‍ गेलनि‍ आद्रा आबि‍ गेल, घर कहाँ छाड़लौं। तखने दुनू गोटे पहुँचलाह। चौकीपर उठि‍ सि‍ंहेश्वर दुनू गोटेकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ चौकीपर बैसबैत अपनो बैसलाह। तड़तड़ौआ बरखा शुरू भेल। कलप कएल कपड़ापर खढ़क चुबाटसँ कपड़ा दुइर होइए। एक तँ बेचारेकेँ अपने मनमे दुख होइत हेकतनि‍ जे केना साल खेपब तइपरसँ हमहूँ भारी बना दि‍अनि‍ ओ उचि‍त नै। दागे लगत तँ कि‍ हेतै, कोनो कि‍ केरा-दारीमक दाग छी जे नै छूटत। मुदा बड़ाबाबूकेँ मुँहसँ बजा गेलनि‍-
अहाँक नाओं पँचकोसीमे अछि‍ सि‍ंहेश्वर भाय, मुदा अपना घरक हालत एहेन बनौने छी?”
बड़ाबाबूक वि‍चारसँ सहमत होइत सि‍ंहेश्वर बाजल-

बड़ाबाबू, गामसँ लोककेँ भगने गाममे काज बढ़ि‍ गेल अछि‍, मुदा काजक धुनि‍ तेहेन पकड़ि‍ लेलक जे ठेकाने ने रहल जे बरखा मास आबि‍ गेल। आब पानि‍ छुटैए तँ नै छाड़ल हएत तँ पटोटनो तँ दइये देबै।

मुसाइ पंडि‍त :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मुसाइ पंडि‍त

गाममे वि‍ख्‍यात मुसाइ पंडि‍त छथि‍। ओहन पंडि‍त जि‍नकर बात मुसाइये पंडि‍तक नाओंसँ वि‍ख्‍यात अछि‍।

मध्‍यम् जाति‍क मुसाइ पंडि‍त, माइक कोरपच्‍छु बेटा भेने, दौजी फड़ जकाँ तीन सालमे माए आ सात सालमे पि‍ताक श्राद्ध केलनि‍। मुदा बाल-वि‍वाहक शुभ फल भेटि‍ गेल रहनि‍। पि‍ताक श्राद्धसँ तीन मास पहि‍ने बि‍आह भऽ गेलनि‍। जँ कहीं तीन मास पछुऐतथि‍ तँ सि‍मरि‍या गाड़ी जकाँ मास नै कऽ पबि‍तथि‍, मुदा भाग्‍य तँ भाग्‍य छी, से मुसाइ पंडि‍तकेँ सुतरलनि‍। जेकरा माए-बाप रहै छै तेकरा तँ पोथी-पतरा काज दइते छैक जे बि‍नु-भाइयो-बापबलाकेँ सुतरल। मुसाइ पंडि‍त पि‍ताक श्राद्धक तीन दि‍न पछाति‍ ससुरकेँ अरि‍आतए काल पुछलनि‍-
बाबू, आब तँ यएह सभ ने माता-पि‍ता भेला, हमरा कि‍ हएत? भाय-भौजाइक हालत अपनो गाममे देखि‍ते हेथि‍न।
जमाइक प्रश्न सुनि‍ कमलाकान्‍त गुम्‍म भऽ गेलाह। मने-मन वि‍चारए लगलाह जे बेटी-जमाइक भार उठाएब भारी होइ छै। फेर मन घुमलनि‍ जे भगि‍नमान तँ कुलश्रेष्‍ठ होइए। मुदा लगले मन बदलि‍ गेेलनि‍। घी-जमाए भगि‍ना, जहि‍ना घरमे सि‍दहामे नै रहने भूखक लहरि‍ जोर पकड़ै छै तहि‍ना आगूक जि‍नगी मुसाइकेँ जोर मारलक। दोहरबैत बाजल-
बाबू, कि‍छु बजलखि‍न नै?”
कमलाकान्‍तक मन फेर बहटलनि‍। पत्नीसँ पूछि‍ लेब जरूरी अछि‍, मुदा से खोलि‍ कऽ केना समधि‍यौरमे जमाए लग बाजब। बेटोकेँ तँ पूछि‍ लेब अछि‍। मुदा पुतोहु बेरमे पुछबे ने केलौं आ बेटी-जमाए बेरमे कि‍अए पुछबै। मन बनि‍ते बजलाह-
दुनू भाय-भौजाइकेँ बजबि‍औ। आखि‍र माता-पि‍ताक परोछ भेने तँ वएह सब ने माता-पि‍ता भेलाह।
मुसाइ दुनू भाँइकेँ पुछलक। एक तँ ओहना लोकक घराड़ी घटल जाइ छै तइपर जँ बढ़ि‍ जाए, ई के नै चाहत। दुनू भाँइयो आ भौजाइओ मुसाइकेँ सासुर जाइक आदेश दऽ देलक। गाए-नेरूक मि‍लान तँ ठेहुने-पानि‍ दुहान।
कमलाकान्‍त संगे चलए कहि‍ पुछलखि‍न-
कपड़ो-लत्ता लेब।
मुसाइ- हँ, हँ, जते सरधुआ कपड़ा अछि‍ ओ जँ नै लऽ लेब तँ ऐठाम मूसे-दि‍वार खा जाएत।

एक तँ ओहि‍ना मुसाइ सहलोल, तइपर सासुरक वि‍द्यालय पहुँचि‍ गेल। सासुरँ जँ सारि‍-सरहोजि‍सँ गलथोथरि‍मे हाि‍र जाएब तँ कोन डोराडोरि‍बला भेलौं। जहि‍ना वि‍षुवत रेखाक समान दूरीपर दुनू दि‍शा समान मैसम होइत तहि‍ना अन्‍हार-इजोतक बीच सेहो होइत अछि‍।

पच्‍चीस बर्खक अवस्‍थामे मुसाइ सासुरसँ मुसाइ पंडि‍त भऽ दूटा धि‍या-पुता नेने गाम आबि‍ गेलाह। जहि‍ना फुटलो खपटाक जरूरति‍ समए पाब होइ छै तहि‍ना मुसाइ पंडि‍तक जरूरति‍ गाममे आइ भेल।
मौसमी बेमारीक जानकारी दि‍अ गाममे बहरबैया सभ औताह जखने सँ मुसाइ पंडि‍त सुनलक तखनेसँ मटि‍या तेल देलहा कुत्ता जकाँ मनमे उड़ी-बीड़ी लगि‍ गेलनि‍।

जहि‍ना समए ि‍नर्धारि‍त छल तहि‍ना कार्यक्रम शुरू भेल। अभ्‍यागती सुआगत सभकेँ भेलनि‍। बारहो मासक मौसमी बेमारी आ ओइसँ पथ-परहेजक नीक जानकारी देलखि‍न। गाममे नव फल भेटल। बीचमे बैसल मुसाइ पंडि‍त सुनैपर कम धि‍यान देने रहए। संगसोरमे जहि‍ना लोक हरेलहो जगहपर गपे-गपमे पहुँचि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना मुसाइ पंडि‍त सेहो पहुँचि‍ गेलाह। हड़लनि‍ ने फुड़लनि‍ उठि‍ कऽ बीचमे ठाढ़ भऽ गेला। ठाढ़ होइते बैसि‍नि‍हारक आँखि‍ पड़ै लगलनि‍। दुनू हाथसँ शान्‍ति‍ बना रखैक इशारा दैत बजलाह-
अभ्‍यागत लोकनि‍क वि‍चार उत्तम अछि‍, सभकेँ अनुकरण करैक चाहि‍यनि‍।

अपन समर्थन पाबि‍ बाहरी लोकनि‍ आरो अगि‍ला बात सुनैले जि‍ज्ञासा जगौलनि‍। मुदा जे पहि‍ने बाजत ओ चोर गाम-घरक खेलक मंत्र छै। तँए आँखि‍, कान तँ मुसाइ पंडि‍त दि‍स सभ देलनि‍ मुदा मुँह घुमौनहि‍ रहला। मुसाइ पंडि‍त लेल धनि‍ सन। कहि‍या लोक हमर बात सुनलक आ देखलक। सुनह नै सुनह, मनक उदगार छी, बजबे करब। मुदा सइयो आँखि‍ भीष्‍म–पि‍तामह जकाँ गड़ल देखि‍ सम्‍हरैत मुसाइ पंडि‍त बजलाह-
आम-जामुन इलाकाक हाड़-पाँजर टुटब, कि‍सानी ज्ञानमे साँप-कीड़ा काटब, हाड़मे पैसल जाड़केँ सेहो तँ देखए पड़त?”
गौंआँ वक्‍ता बूझि‍ जोरसँ सभ थोपड़ी बजौलक मुदा थोपड़ी सुनि‍ मुसाइ पंडि‍त अकवकमे पड़ि‍ गेलाह जे लोकक थोपड़ीक अवाज की छल। हास हँसी आकि‍ हँसी हास।

गुहारि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कमला कातक नवटोलीक गहबर बड़ जगताजोर। सएह सुनि‍ अपनो गुहारि‍ करबैक वि‍चार भेल। भाँज लगेलौं तँ पता चलल जे तीनू वेरागन-सोम, बुध आ शुक्र- भगता भाउ खेलाइ छथि‍ मुदा शुक्र दि‍नकेँ तँ साक्षात् भगवति‍येक आवाहन रहै छन्‍हि‍। मन थि‍र भेल। डाली लगबए पड़ै छै तँए ओरि‍यौनक वि‍चार भेल। मन भेल जे पत्नीकेँ डाली ओरयौनक भार दि‍यनि‍। मुदा बोलकेँ रोकि‍ वि‍चार कहलक- देवालयक काज छी, एकोरत्ती कुभाँज भेने गुहारि‍यो उनटे हएत। डालीक बौस बाजरसँ कीनए पड़त। मुदा सस्‍ता दुआरे जनि‍जाति‍ उनटा-पुनटा बौस कीन लेतीह।
मन उनटि‍ गेल। अपने हाथे कि‍नैक ि‍नर्णए केलौं।

बाजार पहुँच फूल काढ़ल सीकीक रँगर डालीक संग बेसि‍ये दाम दऽ दऽ नीक-नीक बौस कीनलौं। मन पड़ल जे भरि‍ दि‍न उपास करए पड़त। चाहो तक नै पीब सकै छी। जँ पीबैओक मन हएत तँ गोसाँइ उगैसँ पहि‍ने भलहि‍ं पीब लेब।
तनावसँ भरि‍ दि‍न मन उदग्‍नि‍ रहैए। ने काज करैक मन होइए आ ने कि‍यो सोहाइए। एहेन तनाव दुि‍नयाँमे ककरो भरि‍सके हेतै।
कोन जालमे पड़ि‍ गेल छी। तहूमे एकटा रहए तब ने। जालक-जाल लागल अछि‍। जमीन-जत्‍थाक जाल, जन-जाल, मन-जाल, तन-जाल, शब्‍द-जाल, अर्थ-जाल, वि‍चार-जाल, वाक्-जाल नै जानि‍ कते जाल बनौनि‍हार कते जाल बना कऽ पसारि‍ देने अछि‍। एक तँ ओहि‍ना इचना माछ जकाँ लटपटाएल छी तइपरसँ जालक-जाल। गैंचीक नजरि तँ‍ नै जे ससरि‍-फसरि‍ छछारी कटैत जान बचा सोलहन्नी जि‍नगी पाबि‍ लेब। तँए नवटोलीक गहबरमे डाली लगेलौं।

गुहरि‍याक कमी नै। अकलबेरेसँ गुहरि‍या पहुँच पति‍यानी लगा बैस गेल। गहबरक भीतर भगत बैस धि‍यान मग्‍न भऽ गेलाह। गहबरसँ उदेलि‍त भाव भगतक हृदैकेँ कम्‍पि‍त करैत। गुहारि‍ करए बाहर नि‍कलल। हाथमे जगरनथि‍या बेंतक छड़ी लेने। भगत गुहारि‍ शुरू करैत कहलखि‍न- भगत-अश्रमसँ श्रमक बाट पकड़ि‍ चलि‍ जाउ। आगू कि‍छु ने हएत।
भगतक पछाति‍ डलि‍वाह कहथि‍न- पाछु घुि‍र नै ताकब। कतबो जोगि‍न सभ कानि‍-कानि‍ कि‍अए ने बजए मुदा घुरि‍ नै ताकब।

हमरो नम्‍बर लगि‍चएल। मुदा एक्के वाक् सुनि‍ उत्‍सुकता ओते नहि‍ये रहए जते नव वाक् सुनैक होइत। अनेरे मनमे तुलसीक वि‍चार उठि‍ गेल। कहने छथि‍ जे जेकरा जंजाल रहै छै तेकरा ने चि‍न्‍ता होइ छै। जकरा नै छै?
तही बीच भगत सोझमे आबि‍ गेलाह। पैछले बातकेँ दोहरबैत एकटा नव बात पुछलनि‍- छुटि‍ गेल कि‍ने?”
बि‍नु तारतमे बजा गेल- हँ।

वि‍दा भेलौं। बाटमे वि‍चारए लगलौं जे अश्रमक अर्थ कि‍ होइ छै। मुदा कोनो अर्थे ने लागल। हारि‍ कऽ ऐ नि‍ष्‍कर्षपर एलौं जे एक सोगे आएल छलौं दोसर लेने जाइ छी।

गाम अबि‍ते टोल-पड़ोसक लोक भेँट करए आबए लगलाह। सभ एक्के बात पुछथि‍- की भेल?”
कि‍छु गोटेकेँ प्रश्ने बना कहलि‍यनि‍- अश्रमक अर्थे ने बुझलौं। अहीं कहू। मुदा जते मुँह तते रँगक उत्तर भेटऽ लगल। सुनैत-सनैत मन घोर-मट्ठा भऽ गेल। पछाति‍ जे कि‍यो पूछथि‍ तँ कहए लगलि‍यनि‍- जहि‍ना छलौं तहि‍ना छी।-2
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सजाए :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


बजैत लाज होइए मुदा नहि‍यो बाजब तँ पुरुख कथीक। जहि‍ना सभकेँ होइ छै तहि‍ना जूति‍-भाँति‍ लए पत्नीसँ मुँहाँठुट्ठी भऽ गेल दुनू दू दि‍शाक बुझनूक! खि‍सि‍या कऽ अपने काज करए खेत चलि‍ गेलौं। जलखै नै पहुँचल। सबूर केलौं। मुदा खीस आरो तबैध गेल। अबेर धरि‍ खेतेमे खटैत रहलौं।

गामपर आबि‍ नहा-सोना खाइले गेलौं। ओढ़ना ओढ़ि‍ पत्नी घरमे सुतल। तामसे नै टोकलि‍यनि‍। मुदा तैयो अनठा कऽ बच्‍चाकेँ पुछलि‍ऐ- बुच्‍ची, माए कतए छथुन?”
कहलक- मन खराप छै सुतल अछि‍।
तोरा बुत्ते खाएक परसल हेतह?”
कहलक- भानसो कहाँ भेलहेँ।

मुँहक बात मुँहेमे :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




पछबारि‍ गामबलाकेँ एहेन दशा कहि‍यो ने भेल हेतनि‍ जेहेन आइ बहि‍रा माए केलकनि‍?
पछबारि‍ गामक घटक बहि‍रापर अबैत छलाह। गाम, घर-बरक चर्च सुनि‍ नेने छेलखि‍न। मन मानि‍ गेल छलनि‍ जे अपना जोगर कुटुमैती नीक अछि‍।

गामक सीमानपर अबि‍ते एक गोटेकेँ पूछि‍ देलखि‍न। सभ गुणक चर्च नीके बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा बहि‍‍रा नाओं सुनि‍ मन भनभना गेलनि‍। मन भनभनाइते, बैलून जकाँ देहक शक्‍ति‍ नि‍कलए लगलनि‍। आमक गाछ देखि‍, नि‍च्‍चामे बैस सोचए लगलाह जे आबि‍ की करब?

घटकक भाँज बुझि‍ते बहि‍रा माए वि‍दा भेल। घटक लग पहुँच बाजलि‍- कोन गाॅ रहै छी, कतए जाएब?”
घटक- एतै एकटा लड़का उदेसे आएल छलौं मुदा लड़ि‍काक नौए बहि‍रा छि‍ऐ। मन भटकि‍ गेल। आबि‍ घुरि‍ जाएब।
बहि‍रामाए- जँ बेटा-बेटी खेलाइ पाछू बेहाल रहए आ माए-बापक आदेश नै मानए, ते कि‍ बाप-माए ओकरा मारतै आकि‍ बहि‍रा कहि‍ छोड़तै?”
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कनफुसकी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




गामेक स्‍कूलमे सोहनक संग दोस्‍ती भेल। ओना एक्के गाममे कनि‍ये हटि‍ कऽ दुनू गोरेक घरो अछि‍ मुदा आने गाम जकाँ। तीस साल पूर्व जखन एक्के वि‍द्यालयमे नोकरी भेटल तखन नजदीकी आएल। पाँच बर्ख पछाति‍ अबर-जात नौत-पि‍हानमे बदलि‍ गेल। दू जाति‍ रहि‍तो छान-बान कमल।

तीस बर्ख बाद, आइ एहेन भऽ गेल जे नजरि‍ दि‍स‍ नजरि‍ मि‍लए नै चाहैत अछि‍। सभ गुण मि‍लतो एकटा अवगुन सोहनमे शुरूहेसँ रहल जे अनका कानमे फुसफुसा वि‍चार कऽ घुसका-फुसका दैत। जे ऐबेर बुझलौं। सेहो केना बुझलौं तँ जेकरा लग बजलाह ओ आबि‍ जड़ि-‍सँ-अंत धरि‍ कहलनि‍। मन तुरूछि‍ गेल। संग केने जखन सोहन लग पहुँच पुछलि‍यनि‍- भाय, की सभ भोला भायकेँ कहलि‍यनि‍हेँ?”
प्रश्न सुनि‍ जना सोहनक बीख ओइ साँप सदृश्‍य बूझि‍ पड़ल जे हबक मारैले ककरो खेहारए लगैत, तइ बीच दोसरकेँ पाबि‍ काटि‍ लैत, तहि‍ना! ने ओ कि‍छु बजलाह आ ने दोहरा कऽ कि‍छु पुछलि‍यनि‍।
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अप्‍पन हारि :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




मनकेँ कतबो अपना दि‍ससँ बहटारए चाहै छी तैयो कुकुड़ जकाँ दुआर-दरबज्‍जा छोड़बे ने करैए। छोड़बो केना करत? कोनो कि‍ आइयेक संगी छी आकि‍ जहि‍ये पशु-पक्षी दि‍स तकलौं तहि‍येसँ ने ओहो संग लगि‍ परि‍वारमे सटि‍ गेल।

अपन दुरागमन भेल। आने सभ जकाँ अपनो बूझि‍ पड़ए लगल जे सौंसे दुनि‍याँ दुलहनि‍येसँ भरल अछि‍। तहि‍ना पत्नि‍योक आँखि‍ हमरा छोड़ि‍ कि‍छु देखबे ने करनि‍। थोपड़ी की कोनो एक्के हाथे बजैए। ओइले तँ दुनू हाथ चाही। से भेबो कएल। बूझि‍ पड़ए जे सौंसे दुनि‍याँ फूसि‍ आ दुइये प्राणी सत्‍ छी। एहन स्‍थि‍ति‍मे मेल-मि‍लानक कथे की। कान्‍हीसँ वि‍चार धड़ि‍क।

जहि‍ना दुनू कसमकस पार्टीक बीच फैसला उचि‍त होइत तहि‍ना भगवान नि‍साफो केलनि‍। तइसँ फलो नीक भेटैत। जौआँ बेटा भेल। जँ दुनू दू रहैत तँ बेइमानि‍यो होइतै से एक्के रहए। खुशी तँ दुनू प्राणीकेँ भेल मुदा दू दि‍शामे। अपना मनमे हुअए जे हे भगवान दसो साल जँ एहेन उपजा देलह तँ गाममे बीस भऽ जाएब। तरे-तर माघक खेसारी जकाँ मन गदगदाएल। मुदा पार्टनरक वि‍चार दोसरे रहनि‍। एकहरी बच्‍चाक होन्हहारी-दर्द दोहराएल रहनि‍ तँए पाण्‍डु रोग जकाँ पीड़ी पकड़ने।

चारि‍-पाँच मासक पछाति‍ फेर दुनि‍याँ ि‍दस दुनू पार्टनर तकलौं। मुदा वि‍चारमे खट-पट हुअए लगल। खट-पट एते बढ़ि‍ गेल जे एक-एक बेटा बाँटि‍ दुनू दू दि‍स भऽ गेलौं।

तीन बर्ख भऽ रहल अछि‍। पत्नि‍क हि‍स्‍सा बच्‍चा फूल सन लहलह करैए। वएह अपन दहि‍ना हाथक चटकन दि‍न-राति‍ खाइए। कोन दुर्मति‍या कपारपर चढ़ि‍ गेल जे औझका थापर एहेन लागि‍ गेलै जे मुँहेँ भरे माटि‍पर खसल।

अपन कोखि‍क कनैत बच्‍चाकेँ देख पत्नी गड़ि‍यबैत बजलीह-पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
सुनि‍ क्रोध नै उठल। जना मनक सभ ताप-संताप मेटा गेल हुअए। लजाएल आँखि‍, आँखि‍पर देलि‍यनि‍ तँ बूझि‍ पड़ल जे झपटि‍ लेतीह। मुदा जहि‍ना रौद पानि‍मे आ पानि‍ रौदमे सटि‍ नव जीवन धड़ैत तहि‍ना आब अपनो वि‍चारै छी।
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